इस हफ्ते हिन्दी चिट्ठों बहुत सारी कवितायें पढीं. इन में से कई बहुत मर्मस्पशी लगें. चुने हुए उद्धरण प्रस्तुत हैं. उम्मीद है आप इन कविताओं को पढ कर लाभान्वित होंगे. अंग्रेजी लिपि की हिन्दी कविताएं हम सामन्यता नहीं चुनते लेकिन इस बार एक को शामिल किया है:
कैसे नहीं तू तड़पता है, कैसे नहीं तू रोता है
ऐसी विनाश लीलाओं के दर्द में
कैसे नहीं तू विफड़ता है……
तीसरी आँख का यह कैसा ढंड विधान है
जो बरसते हैं तेरी अंशों पर हीं,
गिर पड़ते हैं तेरी भावनाओं की
मर्म हथेलियों पर हीं……. [पूरी कविता पढें …]
तुम भी तो कभी बढ़ाओ पहला कदम
अब न पहल कर पाऊँगी मैं।
कह दो तुम्हें नहीं है इंतज़ार मेरा
ये झूठ तो न कह पाऊँगी मैं। [पूरी कविता पढें …]
HIND KI IS DHARTI PAR
PHUL KHILTE HI RAHENGE
KUCHLE JAYENGE TO KYA HUA
FIR ISI DHARTI “MAA” KI GOD ME SO JAYENGE !
[पूरी कविता पढें …]
लम्हा लम्हा ज़िंदगी को हमने मरते देखा है
सांसो को बिना धड़कन हमने चलते देखा है
क्या करें क्या कहें बात भी है ख़ामोशी भी
लबों को उनके सामने हमने सिलते देखा है [पूरी कविता पढें …]
तिमिर, तुम ही तो हो बंधु मेरे !
है वक्ष तेरा इतना विशाल,
बन गया वेदना का दुशाल,
सुख निंद्रा में जब जग सोया
तू ही मेरे संग रोया, [पूरी कविता पढें …]
अनसुनी कर दो हर वह दस्तक
जों दिल के दरवाजो पर होती है
आज कल का वक़्त सही नहीं है [पूरी कविता पढें …]
अनसुनी कर दो हर वह दस्तक
मेरे शब्दो को कविता कहने के लिये धन्यवाद
अच्छा कार्य कर रहे हैं आप । शुक्रिया !
शास्त्रीजी आपका धन्यवाद। अधिकांश पोस्ट और चिट्ठे नहीं देख पाता इसलिए आपके चुने मोतियों का आनन्द मैं जरूर लेता हूँ।
bahut badhiya pryaas hai.
Deepak Bharatdeep
कहते हैं मोतियों को चुनना भी एक कला है और लोगों को इसका लाभ भी मिल रहा है कई ऐसी कविता है जो आँखों से निकल जाती है पर यहाँ उनको देखकर बहुत सुकून मिलता है…।
बढ़िया अवलोकन, शास्त्री जी.