पराई कैसे यहां स्वामिनी हो गई 2

आज यदि हिन्दुस्तान में एक विदेशी भाषा अंग्रेजी राज कर रही है तो यह अचानक नहीं हुआ. यदि हिन्दी को राजभाषा का महत्व एवं आदर नहीं मिल रहा तो यह भी अचानक नहीं हुआ. अंग्रेजी भाषी देशों ने बहुत पहले ही समझ लिया था कि दुनियां पर राज करना है तो पहले दुनियां को अपने अंग्रेजी तौर तरीके सिखाओ. उनको यकीन दिला दो कि अंग्रेजी ही एकमात्र स्तरीय भाषा है जो सभ्य एवं सुसंस्कृत लोगों के लिये उचित है. इस नतीजे को अंजाम देने के लिये अंग्रेजी-राज ने एवं अन्य अंग्रेजी (एवं कुछ गैर अंग्रेजी) देशों ने बहुत से हथकण्डे अपनाये थे जिसमें से एक है ELBS की स्थापना.

इंग्लिश लेन्गुएज बुक सोसाईटी एवं इसके सफेद-पीले रंग के आवरण मेरे पाठकों में से उनको याद होगा जो पचासादि उमर के हैं. ELBS के द्वारा इंग्लेंड में छपी पुस्तकें मूल कीमत के दस प्रतिशत या कम पर हिन्दुस्तान में बेची जाती थीं. यही हाल अमरीकी एवं सोवियत संघ से आवक उच्च शिक्षा से संबन्धित पुस्तकों का था. अपने देश की जनता पर करोडों रुपये का टैक्स लगा कर ये देश ये किताबें हिन्दुस्तान मे सस्ती कीमत पर जो बेचते थे, वह भारतीयों का कल्याण करने के लिये नहीं बल्कि अपने अंग्रेजी प्रकाशकों के लिये हिन्दुस्तान में एक बाजार तय्यार करने के लिये था. (इनमें से सोवियत संघ टूट चुका है, अत: उसे हम इस विश्लेषण में नहीं ले रहे). इसके कई परिणाम हुए जो ये देश चाहते थे:

1. हिन्दुस्तान में उच्च शिक्षा पर अंग्रेजी भाषा एवं माध्यम का नियंत्रण निश्चित हो गया. इसके साथ ही एक बहुत बडा, सुनिश्चित, एवं स्पर्धा से रहित पुस्तक बाजार हिन्दुस्तान में अंग्रेजी देशों के लिये खुल गया.

2. उच्च शिक्षा प्राप्त लोगों के मन पर अंग्रेजी इस तरह से हावी हो गई कि हिन्दुस्तानी भाषायें उनको हेय एवं बडी आदिम लगने लगीं जो उन जैसे “परिष्कृत” लोगों के लिये शर्म की बात है.

3.अन्य प्रकार के अंग्रेजोन्मुखी बाजार हिन्दुस्तान में तय्यार हो गये. [क्रमश:]

Share:

Author: Super_Admin

5 thoughts on “पराई कैसे यहां स्वामिनी हो गई 2

  1. अंग्रेजों ने हिन्दुस्थान पर अंग्रेजी थोपने के पहले स्वयं हिन्दी सीखी थी।

    ढाका के मल-मल के सारे कारीगरों की अंगुलियाँ काट दी थी, ताकि वैसा महीन मजबूत कपड़ा कोई न बना पाए और उनकी मिलों का कपड़ा खूब बिके।

    प्राचीन भारतीय भाषाई वेद-शास्त्रों, पाण्डिलिपियों, पुस्तकों को भारी संख्या में जला कर नष्ट कर डाला था।

    किन्तु घबराएँ नहीं, समय बदल रहा है, अब समग्र विश्व में एक तकनीकी की कसौटी पर सर्वश्रेष्ठ भाषा /लिपि सर्वसम्मति से स्वीकृत होनेवाली है।

  2. “किन्तु घबराएँ नहीं, समय बदल रहा है, अब समग्र विश्व में एक तकनीकी की कसौटी पर सर्वश्रेष्ठ भाषा /लिपि सर्वसम्मति से स्वीकृत होनेवाली है।”

    यह तभी होगा जब हिन्दी को पहले हिन्दुस्तान में उचित मानसमान एवं स्थान मिलेगा.

  3. “मान-सम्मान, मानसिकता, प्रेम और प्रोत्साहन से, थोपी नहीं जाएगी”, आदि शब्द “राजनेताओं” के भाषणों की उपज-मात्र हैं। असल समस्या है देवनागरी/भारतीयों लिपियों के कम्प्यूटर-कूटों के निर्धारण में ‘तिगड़ी’ ‘तिमंजिली’ (3 tier) जटिल अवधारणा… जिसे समतल बनाने की आवश्यकता है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *