इस बार काफी कवितायें पढने का मौका मिला. (गजल, गीत आदि को भी फिलहाल इसी श्रेणी में ही रखा जा रहा है). ये मन को झकझोरते हैं, चिंतन के लिये प्रेरित करते हैं, एवं चिंतन के लिये पौष्टिक भोजन प्रदान करते हैं. उम्मीद है कि आप भी इन्हें पढ कर लाभान्वित होंगे:
उनका लोकतंत्र तो
परलोक में बसता है
यहां बात करते हैं आजादी की
पर दिल उनका डंडा बजने वाले
देशों में ही रमता है [पूरी कविता पढें …]
कुछ किताबों से चुन लिए वाक्य
लोगों से सुनकर गढ़ लिए
कुछ अपने और कुछ उधार के कथन
उस पर ही बरसों तक
चलता है उनका प्रहसन [पूरी कविता पढें …]
पर शब्दों के तीर से
किसी अपने का मन घायल न करना
गजलों के शेरों की दहाड़ से
किसी का दिल विचलित न करना
लड़ना मिलजुलकर (नूरा कुश्ती )
पर अपने मन मैले न करना
अभी तो शुरूआत है
हमें बहुत दूर जाना है [पूरी कविता पढें …]
बीच में अपने जो दूरियाँ हैं.
कुछ तो समझो ये मज्बूरियाँ हैं.
उम्र भर हम तो भागा किये हैं,
हाथ आती हैं कहाँ तितलियाँ हैं. [पूरी गजल पढें …]
सोचा न था कि आयेगा ये दिन भी फिर कभी
इक बार हम मिले हैं ज़रा मुस्कुरा तो लें
क्या जाने अब न उल्फ़त-ए-देरीना याद आये
इस हुस्न-ए-इख़्तियार पे आँखें झुका तो लें [पूरी कविता पढें …]
इन में से आखिरी दो की पूरी गहराई समझने के लिये किसी समर्थ टीकाकार द्वार सन्दर्भ सहित व्याख्या की जरूरत है —
— शास्त्री जे सी फिलिप
शुक्रिया!!!
अच्छा चुनाव रहा…।
apne pryass jaree rakhiye
deepak bharatdeep