अपना चिट्ठा/जालस्थल लुटेरों से बचायें 7

जब से अंतर्जाल हिन्दुस्तान में आया है तब से मैं उस पर सक्रिय हूं, एवं मेरे कडुवे अनुभवों (एवं दुनियां भर के सैकडों अन्य लोगों के भी कडुवे अनुभवों) के आधार पर मेरा सुझाव है कि हर व्यक्ति को अपना व्यक्तिगत डोमेन खरीद लेना चाहिये. इसका खर्चा बहुत कम हो गया है, एवं सुरक्षा करना भी अधिक आसान है.

हिन्दुस्तान के लगभग हर बडे शहर में अब डोमेन के पंजीकारक मिल जाते हैं. ये 350 से 450 रुपया प्रति नाम, प्रति वर्ष के लिये लेते हैं. इनके द्वारा पंजीकरण करने से पहले निम्न बाते स्पष्ट होनी चाहिये, क्योंकि लूट की शुरुआत यहां पर होती है.

1. वे आपको अपना खुद का कूट-शब्द द्वारा सुरक्षित “डोमेन कंट्रोल पेनल” देंगे क्या. जरूरत पडने पर इसका कूट-शब्द आप बदल सकते हैं क्या.

2. जरूरत पडने पर आप सीधे पंजीकारक के दफ्तर जाकर उससे मिल सकते हैं क्या.

3. जरूरत पडने पर आप उसका अता-पता जान सकते हैं क्या.

इन में से 2 और 3 की जरूरत इसलिये पडती है कि कई बार नौसीखिये लोग (या पुराने मंजेघिसे खिलाडी) पंजीकरण प्रतिष्ठान खोल कर बैठ जाते हैं, लेकिन मौका आने पर ऐसे गायब हो जाते हैं कि तीनों लोकों में न मिलें. नौसीखिये जान बचाने के लिये भागते फिरते हैं, जबकि पुराने खिलाडी आदत से मजबूर हैं. (चोर चोरी न करे तो भी उठाईगिरी से नहीं जायगा). मेरे साथ यह प्रकरण हो चुका है. जब अंतर्जाल केरल में आया ही आया था. पंजीकारक यहां से सौ किलोमीटर दूर था. जब भी पैसा देने का समय आता था तो फोन आ जाता था, एवं मैं ड्राफ्ट भिजवा देता था. दो साल मे दस के ऊपर डोमेन हो गये. तब डोमेन इतना सस्ता नहीं था. एक बार सभी डोमेनों को एक साथ 3 से 5 साल नवीनीकरण करवाने के लिये एक बडी राशि का ड्राफ्ट भेजा. उसके बाद उस सज्जन का अता पता ही गायब हो गया. जब भी दफ्तर फोन लगाओ तो एक कन्या सुरीली आवाज मे स्वागत जरूर करती थी, लेकिन उसके लिये “डोमेन” शब्द काला अक्षर भैंस बराबर था. मालिक की पूछो तो बस रटाटाया वाक्य “कह कर नहीं गये हैं”. संयोग (?) से उस सज्जन का मोबाईल भी बंद हो गया. मैं जहां नौकरी करता था वहं से तीन बस चढकर ही उस जगह पहुंचा जा सकता था, अत: जाने में भी मुझे देरी हुई. इस बीच उस “सज्जन” द्वारा समय पर नवीकरण न करने के कारण मेरे दो जालस्थल हाथ से निकल गये. इसमें से एक को अमरीका के एक जालदादा के हाथ से किसी तरह मेरे फुफेरे भाई ने मुझे दिलवा दिया, लेकिन $10 के बदले उनको अब चाहिये था $1000 (40,000) प्रति वर्ष क्योंकि उस नाम के चाहने वाले अमरीका में बहुत से प्रतिष्ठान थे. ऊपर से शर्त यह कि डोमेन कंट्रोल पेनल मुझे नहीं मिलेगा. मेरा बेहद महत्वपूर्ण एक डोमेन इस तरह हाथ से निकल गया.

हां ईश्वर की दया से अपने हिन्दुस्तानी पंजीकारक से मैं ने अपना डोमेन कंट्रोल पेनल काफी पहले ही प्राप्त कर लिया था. (उसने बहुत नानुकुर करने के बाद दे दिया था, और फिर भूल गया था कि इस तरह की जानकारी मेरे पास है). अत: जैसे ही मुझे पता चला कि एक काम का डोमेन हाथ से निकल गया है, वैसे ही घर के पास ही एक पंजीकारक से मिला. (तब तक ये यहां के हर गली मुहल्ले मे फैल चुके थे). उसके साथ बैठ कर पहले तो पुराने डोमेन कंट्रोल पेनल से सारे के सारे बचे डोमेन हटा कर इस पंजीकारक के द्वारा दिये गये डोमेन कंट्रोल पेनल में स्थानांतरित कर दिया. आधे घंटे में यह काम हो गया. जान बची (कुछ अच्छे डोमेन बचे रहे) तो लाखों पाये. इतना महत्वपूर्ण है डोमेन कंट्रोल पेनल. इसके बारें में सचित्र चर्चा करेंगे अगले लेख में [क्रमश:] — शास्त्री जे सी फिलिप

अपना चिट्ठा/जालस्थल लुटेरों से बचायें 1
अपना चिट्ठा/जालस्थल लुटेरों से बचायें 2
अपना चिट्ठा/जालस्थल लुटेरों से बचायें 3
अपना चिट्ठा/जालस्थल लुटेरों से बचायें 4
अपना चिट्ठा/जालस्थल लुटेरों से बचायें 5
अपना चिट्ठा/जालस्थल लुटेरों से बचायें 6

Share:

Author: Super_Admin

1 thought on “अपना चिट्ठा/जालस्थल लुटेरों से बचायें 7

  1. शास्त्री जी, आपने बहुत उपयोगी, बहुत अच्छी ज्ञान-परम्परा चलाई है। आशा है अन्य टेक्नोक्रेट्स जो अपने ज्ञान को गुप्त रखना और काफी महंगा बेचना चाहते हैं, वे आपसे प्रेरणा लेकर इसी प्रकार ज्ञान-गंगा बहाकर अज्ञान-सूखा दूर करेंगे।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *