प्रस्तुत हैं पांच चुने हुए मोती, पद्य विधा में. उम्मीद है कि पाठकगण पूरी माला को जरूर देखेंगे. अकेले मोती आकर्षित जरूर करते हैं, लेकिन वे अपनी पूर्णता तभी पाते हैं जब उनको माला में पिरो दिया जाये. इन पद्यों की भाषा, रस, एवं बहाव में इतना अंतर है कि एक पूरा पढने से पहले ही आपको मालूम हो जायगा कि आगे क्या आने वाला है, तो दूसरा इतना गूढ है कि शायद तीसरे पाठ में ही अपना तिलिस्म आपके लिये खोले. पारखी को सभी एक समान आनंद प्रदान करते हैं, लेकिन एक ही प्रकार का आनंद नहीं.
अपने चेहरे पर….
कई चेहरे लगाये……
शाम को लौटते हो…
चेहरे उतारते हो…
और फ़िर एक बार…
देखते हो मुझे…. [पूरी कविता पढें …]
अलबत्ता बहाना बन लेता उत्साही कार्यकर्ता
जश्न मना लेते थोड़े पी लेते कुछ लुढ़क जाते
फिर अगली बैठक तक तसल्ली बन जाती
मज़े में खींच लेते चादर सोये रहते लम्बी. [पूरी कविता पढें …]
अभी यहाँ है तो अभी वहाँ है
ढूँढो इसे न जाने ये कहाँ है,
तुझसे मिलने ये चला था
तेरी राहों में खो गया है । [पूरी कविता पढें …]
ब्लॉग़िंग ऎसी खोह है जामे सब खो जात
मनसा वाचा कर्मणा, जीवन वहीं बितात [पूरी कविता पढें …]
कहीं राह में कोई बाधा खडी नही है
बस बन्धक हूं मैं अपने चिन्तन का
चाहूं, क्षण भर में हृदयहीन हो जाऊं
तदोपरान्त क्या हो जीवन स्पंदन का [पूरी कविता पढें …]
बहुत अच्छा लगा जो आपने इन सभी कविताओं को एक माला मे पिरो दिया है।
माला शानदार बनी है. बधाई.
वाह अत्यंत सुन्दर संकलन किया गया है ! ऎसी कडियां प्रस्तुत करते रहें !