“परंतु मैथिली जी विनम्र ही बने रहे. उन्होंने मुझे अलग से बताया कि कृतिदेव, देवलिज, आगरा, अमन, कनिका, कृतिपैड इत्यादि श्रेणी के 400 से अधिक हिन्दी, गुजराती व तमिल फ़ॉन्ट्स की रचना इन्होंने की है तो मैं आश्चर्यचकित रह गया.” ये पंक्तियां रवि रतलामी के एक लेख से ली गई है.
रवि ने मैथिली गुप्त के द्वारा संगणकजगत में किये गये हिदीसेवा के बारे में जो रह्स्योद्घाटन किया है वह हर हिन्दीभाषी की नजर में आना चाहिये. सारथी भी रवि रतलामी के साथ आदर के पात्र श्री मैथिली गुप्त को शत शत नमन अर्पित करता है. रवि के पूरे लेख को यहां देखें (http://raviratlami.blogspot.com/2007/07/blog-post_16.html) एवं मैथिली जी के चिट्ठे को यहां देखें (http://www.cafehindi.com/)
सारथी जी अब सब लोग तो एक जैसे नही होते ना,हमने जब आपको पढा तो पता चला कि चुप रहकर भी लोग क्या कर जाते है,और यही मैथिली जी भी कर रहे है वह भी आप और रतलामी जी से ही पता चला. आप दोनो ही कोई महानता का बखान करते हुये कभी नही दिखाई दिये.कि आप लोगो ने हिंदी की कितनी सेवा कर दी है,यही विनम्रता तो आप लोगो की महानता है.वरना हिंदी से जुडे लोगो मे मैने कितनी सेवा की है मै कितना महान हू लोगो बताने की प्रतियोगिता जारी है…:)
@अरुण
हिन्दीजगत का दुर्भाग्य है कि हम लोग आत्मकेन्द्रित
रहे हैं. इस खोल से निकल कर एक दूसरे को
प्रोत्साहित करना ही होगा, तभी हिन्दी का वजन
बढेगा.
sir
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regds
rachna
हमारा नमन भी स्विकारा जाये.
वाक़ई मैथिली जी को योगदान अद्भुत और अनमोल है । मैं तो अभी भी अकसर कृतिदेव इस्तेमाल करता हूं । और धन्य धन्य होता रहता हूं ।
मैथली जी से मैं जितना भी मिला हूँ उनसे मिलकर हमेशा ही प्रसन्नता ही होती है … उनके हाव भाव में जरा भी गरूर नही …. मुझ जैसे नए और कम अनुभवी ब्लागरों से भी वो जिस सादगी से मिलते हैं उससे उनकी शक्सियत की सुन्दरता नज़र आती है …. मेरा भी उनको नमन दीजियेगा ….. saarthi जी
शास्त्री जी अच्छा लगा पढ़कर..मैथिली जी भी आप ही की तरह मेहनती,कर्मठ और विनम्र है…जैसे की रवि जी ने कहा है कि फ़लो से लगा वृक्ष हमेशा झुका ही रहता है…एक बात और हमने पढ़ा था बचपन में “विद्या ददाति विनयम” विद्वान ही हमेशा विनम्र होते है…
सुनीता(शानू)
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