परमजीत बाली
एक-एक कर पत्ते टूटेगें।
जानते हुए भी क्या
उस वृक्ष के सम्बंध
हमसे छूटेगे?
नही…नही
मुझे भूलने दो
किसी भी प्रश्न का उत्तर
मैं ना दे पाऊंगा।
एक प्रश्न बन कर आया था
प्रश्न बना चला जाऊंगा।
यदि तुम्हें उत्तर मिल जाए कभी
मुझे भी बताना।
मेरे बीते साल
मुझे मिल जाएगें
जिन्हें मै चाहता था
सजाना । [http://paramjitbali-ps2b.blogspot.com/]
शास्त्री जे सी फिलिप की टिप्पणी एक चीनी कहावत के रूप में: “एलान किया जाता है कि मेरी स्वर्णिम घडी पर चौबीस हीरे जडे थे. कल मैं ने उन में से दो को खो दिया. पाने वाले को कोई पारितोषिक नहीं दिया जायगा क्योंकि वे सदासर्वदा के लिये खो जा चुके हैं.”
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कविता अच्छी है और टिप्पणी अर्थपूर्ण.
शास्त्री जी
आपने परमजीत जी के बारे मे लिख सुन्द् र लगा. वह सच्चे आदमी है.
दीपक भारतदीप