दर्द का रिश्ता

तेरा मेरा रिश्ता,
लगता है जैसे…
है दर्द का रिश्ता,
हर खुशी में शामिल होते है,
दोस्त सभी
परन्तु
तू नहीं होता,
एक कोने में बैठा,
निर्विकार
सौम्य
मुझे अपलक निहारता
और
बॉट जोहता

कि
मै पुकारूँ नाम तेरा…
मगर
मै भूल जाती हूँ,
उस एक पल की खुशी में,
तेरे सभी उपकार,
जो तूने मुझ-पर किये थे,
और तू भी चुप बैठा
सब देखता है,
आखिर कब तक
रखेगा अपने प्रिय से दूरी,
“अवहेलना”
किसे बर्दाश्त होती है,
फ़िर एक दिन,
अचानक
आकर्षित करता है,
अहसास दिलाता है,
मुझे
अपनी मौजू़दगी का,
एक हल्की सी
ठोकर खाकर
मै
पुकारती हूँ जब नाम तेरा,
हे भगवान!
और तू मुस्कुराता है,
है ना तेरा मेरा रिश्ता…
लगता है जैसे,
दर्द का रिश्ता…

सुनीता(शानू)
[http://shanoospoem.blogspot.com/]

चिट्ठाजगत पर सम्बन्धित: काविता, काव्य-विधा, काव्य-अवलोकन, सारथी, शास्त्री-फिलिप, hindi-poem, hindi-poem-analysis, hind-context,

Share:

Author: Super_Admin

3 thoughts on “दर्द का रिश्ता

  1. शानू जी हमेशा से ही काफी अच्छा लिखती हैं उसमें से यह भी एक कुंदन ही है…।

  2. शास्त्री जी बहुत्-बहुत शुक्रिया आपने मेरी कविता को पसँद किया…
    और दिव्याभ आपको भी बहुत्-बहुत धन्यवाद आप हमेशा मेरी कविताओँ को पसँद करते है…भविष्य मेँ भी मै कोशिश करूँगी की मेरी कवितायेँ आप सब की पसँद बनी रहेगी…

  3. कविता वाकई में अच्छी है। हालांकि शुरू में मैं इस पर एक सरसरी नजर डालकर आगे बढ़ गया था। मुझे लगा था कि इस कविता को मैंने किसी और ब्लाग पर पढ़ा है, लेकिन जब रुककर पढ़ना शुरू किया तो मैं गलत साबित हुआ। सुनीत जी इतनी अच्छी रचना के लिये बधाई स्वीकारें।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *