हर तरह के विषय (एवं बिना किसी विषय के भी) कई लोग विवाद पैदा करके अपने ब्लोग की रेटिंग बढाने की कोशिश कर रहे हैं. मैथिली गुप्त, रवि रतलामी, एवं अन्य कई लोग यह याद दिला चुके हैं कि ऐसे लेख किसी भी चिट्ठे को अधिक दूर नहीं ले जायेंगे. इसके बावजूद कुछ दिनों से एक नये विषय पर बडी (अ)चर्चा चल रही है — कि अब एग्रीगेटर-युद्ध शुरू हो गया है. लेकिन एक एक करके एग्रीगेटरों ने इस अनुमान को गलत सिद्ध करना शुरू कर दिया है.
इस लेख में प्रदर्शित पहला चित्र चिट्ठाजगत से लिया गया है जहां उन्होंने बाकी तीनों साथियों की सचित्र कडी दी है. दूसरा चित्र नारद् से लिया गया है जो अन्य सभी के सचित्र कडी दिखा रहा है.
तीसरा चित्र ब्लोगवाणी का है जिन्होंने नारद एवं चिट्ठाजगत की सचित्र कडी अपने जालस्थल पर है. यह चित्र मेरे पहले लेख में नही था क्योकि ब्लोगवाणी की कडियों के प्रगट होने से पहले ही मेरा लेख छप चुका था, लेकिन इस लेख के द्वारा मैं इस तथ्य को हिन्दी चिट्ठा जगते के सामने रखना चाहता हूं. मेरे पहले लेख पर जो टिप्पणियां आई थीं उनको भी मैं एक एतिहासिक द्स्तावेज के रूप में यहां जोड रहा हूं:
*** अच्छा है. यह बंधुत्व हिन्दीचिट्ठों के लिए फायदे का सौदा है, संजय तिवारी
*** शस्त्रीजी मैं चिट्ठासंसार से पीछले दो-ढ़ाई साल से जुड़ा हुआ हूँ, तब काफी बन्धूत्त्व की भावना से कई प्रोजेक्ट पर सब साथ मिल कर काम करते थे. फिर एक चिट्ठे के आगमन के बाद दुसरा दौर शुरू हुआ, बहुत से नए चिट्ठाकार शामिल हुए और माहौल पहले जैसा न रहा, मगर अभी भी कहीं न कहीं अन्दरूनी जुड़ाव है जरूर. जिसे मजबुत किया जाना चाहिए, संजय बेंगाणी
*** अलगाव कम से कम इन एग्रीगेटरों के पीछे के लोग तो महसूस नहीं करते शास्त्री जी। आलोक जी भी अपने ही हैं और मैथिली जी भी, प्रतीक भी अपना ही भाई है, अब कोई अलगाव की भावना फैलाता है तो फैलाता रहे, किसी के कहने से इस तरह अपना भाईचारा तो समाप्त नहीं होगा। Amit
*** हिंदू मुस्लिम सिख ईसाई आपस में हैं भाई भाई, अविनाश
*** अच्छा है इससे उन लोगों को एक संदेश जाएगा जो फालतू का एग्रीगेटर युद्ध का हौव्वा खड़ा करते हैं। वर्तमान में कार्यरत सभी एग्रीगेटरों के संचालकों के मधुर संबंध हैं, इसके लिए किसी प्रमाण की आवश्यकता नहीं, श्रीश शर्मा
अब सवाल यह है कि झगडा कौन कर रहा है — वे या हम ?? इस तरह की पहल करने के लिये चिट्ठाजगत एवं नारद का अभिनंदन — शास्त्री जे सी फिलिप
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हिन्दी ही हिन्दुस्तान को एक सूत्र में पिरो सकती है
अच्छा है. यह बंधुत्व हिन्दीचिट्ठों के लिए फायदे का सौदा है.
शस्त्रीजी मैं चिट्ठासंसार से पीछले दो-ढ़ाई साल से जुड़ा हुआ हूँ, तब काफी बन्धूत्त्व की भावना से कई प्रोजेक्ट पर सब साथ मिल कर काम करते थे. फिर एक चिट्ठे के आगमन के बाद दुसरा दौर शुरू हुआ, बहुत से नए चिट्ठाकार शामिल हुए और माहौल पहले जैसा न रहा, मगर अभी भी कहीं न कहीं अन्दरूनी जुड़ाव है जरूर. जिसे मजबुत किया जाना चाहिए.
अलगाव कम से कम इन एग्रीगेटरों के पीछे के लोग तो महसूस नहीं करते शास्त्री जी। आलोक जी भी अपने ही हैं और मैथिली जी भी, प्रतीक भी अपना ही भाई है, अब कोई अलगाव की भावना फैलाता है तो फैलाता रहे, किसी के कहने से इस तरह अपना भाईचारा तो समाप्त नहीं होगा। 🙂
हिंदू मुस्लिम सिख ईसाई
आपस में हैं भाई भाई
अच्छा है इससे उन लोगों को एक संदेश जाएगा जो फालतू का एग्रीगेटर युद्ध का हौव्वा खड़ा करते हैं।
वर्तमान में कार्यरत सभी एग्रीगेटरों के संचालकों के मधुर संबंध हैं, इसके लिए किसी प्रमाण की आवश्यकता नहीं।
मेरे हिसाब से तो ये भी कोई हाईलाईट करने वाली बात नहीं थी ना ही जैसे की अविनाश नें व्यँग्यात्मक टिप्पणी की है उसका ही कोई स्कोप था. [हाँ मैं उसकी टिप्पणी पीछे छुपे भाव को समझता हूँ.]
हर तकनीकी आदमी को अपनी खुरक मिटानी होती है, कभी हिंदी लिखने के टूल्स का दौर था आज एग्रीगेटर्स का है कल कुछ और होगा.
[और आपकी जानकारी के लिये ये भी बता दूँ की कुशिनारा का जो टूल हिंदी आप लगाए हैँ उसके अदर हिंदिनी के हग का कोड चल रहा है. ये सब विवाद गैर तकनीकी लोगों के दिमाग की चीजें है 🙂 ]