[ममता टी वी, रचनात्मक सामान्य प्रतिलिपि अधिकार] परिवार मे माता-पिता दोनो का समान स्थान होता है क्यूंकि अगर माँ घर बार संभालती है तो वो पिता ही है जिनकी वजह से हम बच्चों को सब सुख-आराम मिलते है।पिताजी,बाबूजी,पापा,ये सारे संबोधन हमे ये अहसास दिलाते है कि हमारे सिर के ऊपर उनका प्यार भरा हाथ है और हमे किसी भी बात की चिन्ता या फिक्र करने की कोई जरूरत नही है क्यूंकि जो भी चिन्ता या फिक्र है उसे पापा के पास से होकर गुजरना पड़ता है और हम बच्चों तक सिर्फ और सिर्फ खुशियाँ ही पहुंचती है। हमे अच्छी तरह से याद है कई बार लोग पापा से कहते थे कि भई तुम्हारे तो चार-चार लडकियां है कैसे करोगे । तो पापा हमेशा हंस कर कहते थे कि जब भगवान् ने चार बेटियाँ दी है तो भगवान् ने कुछ सोचकर ही हमे चार बेटियाँ दी होंगी। और उनका ऐसा जवाब सुनकर लोग चुप हो जाते थे। क्यूंकि साठ के दशक मे चार-चार लडकियां का होना बहुत ख़ुशी की बात नही मानी जाती थी। वैसे तो साठ के दशक मे क्या आज भी बेटियों को बोझ से ज्यादा कुछ नही समझा जाता है । आज भी लोग बेटियों की हत्या कर रहे है।
बचपन से आज तक हम सभी भाई-बहन पापा से हमेशा ही ख़ूब बातेंकरते रहे है। हमे कभी याद नही है की पापा ने हम लोगों को कभी जोर से कुछ कहा हो। हाँ हम पाँचों मे से अगर कोई गलती करता था या है तो पापा उसे प्यार से समझा देते है। हमने कभी भी पापा को बहुत ग़ुस्से मे नही देखा है । हाँ मम्मी जब हम लोगों मे से कोई भी गलती करता था तो उसे समझाती थी और कभी-कभी डांटती भी थी। हम सभी भई-बहनों की आदत थी की जैसे ही पापा शाम को घर आते थे हम सब शाम की चाय पीने के बाद उनके कमरे मे एक साथ बैठकर गप्प मारा करते थे। जहाँ पापा अपने दिनभर के किस्सेसुनाते थे और हम सब अपनी स्कूल की बातें । ना तो पापा ने और ना ही मम्मी ने कभी ऐसा कहा की पापा थके हुए है अभी जाओ पापा को आराम करने दो बल्कि किसी दिन हम पाँचों मे से कोई उस बैठक मे ना हो तो पापा परेशान हो जाते थे की क्या बात है।और ये शाम की चाय और गप्प की आदत हम लोगों की अभी तक बनी हुई है। अपने घर मे भी हमने वही system रक्खा है जब हमारे पतिदेव घर आते है तो हम सब शाम की चाय एक साथ पीते है और गप्प मारते है.
पापा ने हम बच्चों से कभी भी दूरी बनाकर नही रक्खी और हम बच्चों ने भी कभी पापा को ऐसा मौका नही दिया जिससे उन्हें कोई दुःख हो। हम सभी भाई-बहनों को बिल्कुल छूट थी ,हम अपनी मर्जी से जो चाहे कर सकते थे ,जहाँ चाहे जा सकते थे । पापा को हम सभी पर पूरा विश्वास था और हम सबने का वो विश्वास कभी टूटने नही दिया। ऐसा ही एक किस्सा उस समय का है जब हमारी शादी तै की जा रही थी और हम मन ही मन थोडा डर रहे थे हालांकि ये डर बिल्कुल बेमानी था पर फिर भी एक दिन सुबह-सुबह जब पापा ऑफिस मे बैठे थे तो हम पहुंच गए उनके पास और उन्हें अपने मन का डर बताया जिसे सुनकर पापा ने हमे समझाया की इस तरह डरने वाली कोई बात नही है क्यूंकि लड़का मतलब हमारे पतिदेव और ससुराल वाले बहुत अच्छे है। और ये जरूरी नही है की अगर लखनऊ मे किसी के साथ बुरा हुआ है तो वहां शादी ही ना की जाये। और उन्होने प्यार से हमारे सिर पर हाथ फेरा और कहा की अब सब चिन्ता अपने दिमाग से निकाल दो। और आज हम अपने परिवार ,अपने पति और बच्चों के साथ बहुत खुश है।
आज मम्मी को गए हुए दो साल हो गए है पर अब पापा मम्मी की तरह ही हर तीज-त्यौहार पर हम सबको शगुन भेजते है। मई २००७ मे जब हम इलाहाबाद गए थे तो मम्मी की कमी तो बहुत थी पर पापा ने उस कमी को पूरा किया ।हम सबको अपने पापा पर गर्व है।
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