रचना सिंह ने इस कविता में हाड एवं मांस की बनी हर मां का चित्रण किया है. आज ऐसी कम से कम 30 करोड स्त्रियां हिन्दुस्तान में है जिनको विशेष आदर मिलना चाहिये. यह कविता रचना जी से लेकर मैं उन 30 करोड वीरांगनाओं को पुनर्समर्पित करता हूं जिनको वह आदर कभी नहीं मिला है जिसकी वे पात्र हैं.
इस कविता के बारे में मेरा अनुरोध है कि दूसरी बार इसे मां हिन्दुस्तान के संदर्भ में पढा जाये. तब आपको मां का एवं हिन्दुस्तान का एक नया चित्र दिखेगा.
हर वो आँचल
जहाँ आकर
किसी का भी मन
बच्चा बन जाये
और अपनी हर
बात कह पाए
जहाँ तपते मन को
मिलती हो ठंडक
जहाँ भटके मन को
मिलता हो रास्ता
जहाँ खामोश मन को
मिलती हो जुबा
होता है एक माँ
का आँचल.
कभी मिलता है
ये आंचल एक
सखी मे
तो कभी मिलता है
ये आँचल एक
बहिन मे
तो कभी मिलता है
ये आँचल एक
अजनबी मे
ओर कभी कभी
शब्द भी एक
आँचल बन जाते है
इसी लिये तो
माँ की नहीं है
कोई उमर
ओर परिभाषा.
[रचनाकार: रचना सिंह, विशेष अनुमति द्वारा सारथी पर पुनर्प्रकाशित]
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बहुत सुंदर.
स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक बधाई और शुभकामनायें.
सुन्दर कविता, रचना जी एवं आपको स्वतंत्रता दिवस की शुभकामनायें
संजीव
शास्त्रीजी,
आपको स्वाधीनता दिवस की हार्दिक शुभकामनायें ।
दिल को छू लेने वाली कविता प्रस्तुत करने के लिये साधुवाद,
स्वतंत्रता दिवस की बधाई
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