कंठ लंगोट का बहिष्कार करें !

JCP210Aug07A जब किसी व्यक्ति के पास किसी चीज के चुनाव का अवसर होता है तब हम उससे उम्मीद करते हैं कि वह सबसे उपयोगी, अच्छी, एवं श्रेष्ट चीज को चुनेगा. लेकिन अकसर होता इसका उलटा है. बच्चों को देख लीजिये, संतुलित आहार के बदले वे स्वादिष्ट आहार का चुनाव करते है एवं उसकी भलाई बुराई के बारे में नहीं सोचते हैं. अफसोस यह है कि परिपक्व व्यक्ति भी अधितर इसी तरह का व्यवहार करते है़. बिना सोचे समझे वही चुनाव करते हैं जो हर कोई कर रहा है.

बहुत सी बातों में भेडचाल से कोई नुक्सान नहीं होता है, लेकिन काफी ऐसी भी बातें हैं जहां भेडचाल से दूरगामी नुकसान होता है. उदाहरण के लिये भाषा, अभिवादन, वेषभूषा इत्यादि में यदि हम इस नजरिये के साथ पश्चिम की नकल करते हैं कि पश्चिमी चीजें हिन्दुस्तानी चीजों से बेहतर हैं तो यह गलत सोच है. इस गलत सोच का एक परिणाम है कंठ लंगोट को परिष्कृत होने की निशानी मानना एवं हिन्दुस्तानी वेशभूषा को आदिम होने की निशानी मानना.

हमें पश्चिमी परिधानों को भारतीय परिधानों से ऊंचा नहीं समझना चाहिये, बल्कि ये तो गुलामी के निशान हैं. साथ ही साथ हमें भारतीय परिधान के बारें में हीन भावना की जरूरत नहीं है. पश्चिमी देशों के लोग जब आदिम जीवन बिता रहे थे तब विशाल भारत शिक्षा, विज्ञान, औषधि, संगीत, कला, एवं वस्तुशिल्प में उन्नति के शिखर छू रहा था. हर चीज में अग्रणी भारतीयों ने हजारों सालों के अनुभव से हर देशप्रदेश में मौसम के अनुकूल वेशभूषा विकसित की है. इस परिष्कृत वेशभूषा को आदिम समझना भी हमारे मानसिक गुलामी है.

मेरा सुझाव है कि हर भारतप्रेमी को अपने आपने प्रदेश की वेशभूषा का प्रयोग करना चाहिये. हां यदि आपकी कंपनी किसी विशेष वेश की फरमाईश करती है तो वह अलग बात है. काफी हद तक मानना पडेगा. लेकिन व्यक्तिगत जीवन में, शादीब्याह के अवसर पर, हर तरह के विशेष अवसर आदि पर हिन्दुस्तानी वेशभूषा पहनने की आदत डालिये.

एक व्यक्ति, या हजार व्यक्ति, कंठ लंगोट का बहिष्कार करे तो एकदम से कुछ नहीं होगा. लेकिन हर आंदोलन इसी तरह से चालू होता है. बूंद बूंद से घट भरे !

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Author: Super_Admin

11 thoughts on “कंठ लंगोट का बहिष्कार करें !

  1. टाई का प्रयोग मैं नहीं करता मुझे पसन्द भी नहीं और भारतीय जलवायु के अनुकुल भी नहीं, मगर ध्यान दें दुनिया में सभी जगह पहनावे में परिवर्तन आ रहे है. पारम्परीक पहनाओं का स्थान सुविधानुकूल पहनावे ले रहे है.
    हम भी पेंट शर्ट को अपनाए हुए है, लड़कियाँ अब जिंस व टी-शर्ट जैसे पहनावे को पसन्द करती है, यह कामकाज में अनुकूल है. बाकि अपन तो कूर्ता-पायजामा भी पहते है, जचता है हम पर. 🙂

  2. यूरोपीय देशों का मेरा अनुभव यह रहा है कि वहाँ लोगों मे कंठ-लंगोट का प्रचलन नितान्त कम है; कड़कती ठण्ड में भी । किन्तु भारत में कुछ नकलची इसे जेठ-बैसाख की तपती गर्मी में भी लगाकर अपने को धन्य समझते हैं।

  3. किसी पार्टी में अगर कोई टाई लगाकर जाये तो समझा जा सकता है, लेकिन कई बार देखने में यह आता है कि किसी कंपनी का एक्जीक्यूटिव जून की दोपहरी में भी टाई लगाकर घूमता है, तुर्रा ये कि ऐसा वेशभूषा से सामने वाले पर अच्छा प्रभाव पड़ता है। यह किस हद तक सही है यह तो मैं नहीं कह सकता है, लेकिन यही कॉरपोरेट कल्चर है जो आज हर किती के सिर चढ़कर बोल रहा है।

  4. सबसे पहले आपके लेख के लिए आपको बधाई. कम से कम सोचा तो आपने. पर सोच थोड़ा और साफ़ हो तो अच्‍छा रहेगा. टाई को आपसे पहले भी लोगों द्वारा कंठ लंगोट कहते सुना है. लंपट-सा लगता है सुनकर. जहां तक इसके पहनने वालों का सवाल है, तो मेरी राय में तो अच्‍छा यही रहेगा कि उनके पहनावे का कद्र करें. लंगोट हो या कंठ लंगोट, धोती हो या चुस्‍त पैंट, स्‍कर्ट या लुंगी – पहनने वाले जो सोचकर भी पहनें, उनकी मर्जी है. और अगर ऐसे ही पश्चिम की नक़ल का तमगा देने लगे तो शायद पहले कुछेक तमगे तो आपको ख़ुद ही रखने पड़ेंगे, और क़दम-कद़म पर जो दिक्‍क़तें झेलनी पड़ेंगी वो अलग.

    सलाम

  5. हमे तो टाई बाँधनी ही नही आती।लेकिन शास्त्री जी कौन क्या पहनना पसंद करता है यह तो व्यक्तिगत मामला है। जो भी पहनावा अपने भारतीय परिवेश का मान रखता है वह पहनने मे कोई हर्ज नही।हाँ इस बात से मै आपसे सहमत हूँ -“बहुत सी बातों में भेडचाल से कोई नुक्सान नहीं होता है, लेकिन काफी ऐसी भी बातें हैं जहां भेडचाल से दूरगामी नुकसान होता है. उदाहरण के लिये भाषा, अभिवादन, वेषभूषा इत्यादि में यदि हम इस नजरिये के साथ पश्चिम की नकल करते हैं कि पश्चिमी चीजें हिन्दुस्तानी चीजों से बेहतर हैं तो यह गलत सोच है. इस गलत सोच का एक परिणाम है कंठ लंगोट को परिष्कृत होने की निशानी मानना एवं हिन्दुस्तानी वेशभूषा को आदिम होने की निशानी मानना.”

  6. मैं तो विश्व समुह का सदा से समर्थक रहा हूँ तो किसी को नकारना मेरे बस का नहीं… बस विश्व समाज का स्वप्न पुरा हो जाए यही सार्थक होगा… न भाषा…न धरती…न परिधान सब एक हो जाए… मानव भी तो एक ही हवा में सांसे लेता है जिसमें सारे विश्व की सांसे घुली होती हैं…।

  7. तीन दिन के अवकाश (विवाह की वर्षगांठ के उपलक्ष्य में) एवं कम्प्यूटर पर वायरस के अटैक के कारण टिप्पणी नहीं कर पाने का क्षमापार्थी हूँ. मगर आपको पढ़ रहा हूँ. अच्छा लग रहा है.

  8. शास्त्री जी नमस्कार,
    पहले तो आप के भान्जे के लिऎ भगवान से प्राईथना करते हे, जल्दी ठीक हो जाऎ,
    दुसरा आप के विचार बहुत अच्छे हे,अगर आप के विचारो पर हम चले तो भारत मे भारतिऎ फ़िर से होगे,अभी तो जब भी आओ भारतवासी कम ही मिलते हे,अग्रेजो के गुलाम बहुत मिलते हे.बाकी
    Anunad Singh जी की टिपणी बिलकुल सही हे.

  9. मैं बन्द गले का कोट पहनता हूं। आजकल अक्सर कोट के नीचे टाई न पहन कर ऊंचे कॉलर में कशीदा की गयी शर्ट पहनता हूं। धोती कुर्ता भी पहनता हूं। यह मेरे पसंदीदा कपड़े हैं।
    मैं सामन्यतः टाई नहीं पहनाता हूं। शायद, साल में एक बार। फिर भी आप की बात से सहमत नहीं हूं।
    कपड़े वे पहनने चाहियेंः
    १- जिसमें सुविधा हो।
    २- समाज में स्वीकृति हो।
    ३- जो आपके काम करने की जगह या जिनके साथ आप काम करते हों उन को मान्य और पसन्द हों।
    यदि इन कपड़ों में टाई हो तो अवश्य पहने। यह सोच की हमारे कपड़े, हमारी सभ्यता ही अच्छी है ठीक नहीं। हमें दूसरों की सभ्यता, दूसरे के पहनावे यदि अच्छे हों तो अपनाने में हिचक नहीं होनी चाहिये।

  10. दूसरी संस्कृति की अच्छी चीजें जिनमें पहनावा भी शामिल है अपनाने में बुराई नहीं लेकिन अंधानुकरण गलत है। उदाहरण के लिए पश्चिमी देशों की नकल में हमारे यहाँ अदालतों में वकील और जजों को काला कोट जो कि भारतीय जलवायु के अनुरूप नहीं पहनना पड़ता है, इस तरह की बातें मुर्खता का निशानी हैं।

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