[अभिनव, साभार, विश्व हिन्दी सम्मेलन का अंग्रेज़ी प्रमाण पत्र – आज…]
हम हिन्दीभाषी जरा जरा सी बात पर उछले लगते हैं जैसे कि हिन्दी की लाटरी निकल आई हो. जैसे ही खबर मिलती है कि यूएनओ मे हिन्दी स्वीकृत करने जा रहे हैं तो यहा खुशी के पटाखे चलने लगते हैं. हम अपने आप को बेफकूफ बना रहे हैं
मैं कई बार यह प्रश्न आपके सामने रख चुका हूं कि वहां हिन्दी स्वीकृत हो गई तो उसे पढेगा कौन. जितने भारतीय वहां काम करते हैं वे तो अंग्रेजी अनुवाद मांग मांग कर पढेंगे. हमारा मानस फिरंगी की भाषा का ऐसा चरणदास हो गया है कि विश्व हिन्दी सम्मेलन का सर्टिफिकेट हमारे ही, जी हां हिन्दुस्तानी, दूतावस ने फिरंगी की भाषा में दिया है. आज उच्च स्थानों पर बैठे हिन्दुस्तानी ही हैं जो हिन्दी के प्रचार प्रसार में पलीता लगा रहे हैं.
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भाई ये कॉउंसालावास क्या होता है,इसके बजाय कॉन्सुलेट ही रहने देते तो ज़्यादा ठीक नही होता?
इसे देखकर उन लोगों की याद आ गयी जो हिन्दी दिवस के समारोह मे कह्ते हैं ‘today is hindi day’. अपने आप में यह काफ़ी गह्रा व्यन्ग्य है.
हिन्दी के साथ इससे गंदा मजाक और क्या हो सकता था. हिन्दी के समारोह में हिन्दी को उसकी औकात बता दी.
थोथा भाषण देने, हिन्दी की आरती उतारने या अंग्रेजी को गोलियाँ देने की वजाए बेहतर होगा कि हम हिन्दी(देवनागरी) तथा अन्य भारतीय भाषाओं(लिपियों) की तकनीकी खामियों को दूर कर इन्हें सरल और सपाट बनाने का प्रयास करें।
आप सही कह रहे हैं।
आप ने मुद्दे की बात उठाई है। बधाई