मेरा पिछला लेख सारथी: 90,000 हिट्स व 30,000 पेज-पठन महीने में !!! सभी के लिये आश्चर्य का कारण बन गया है. मेरे चिट्ठामित्र संजय तिवारी ने टिप्पया कि “क्या बात कर रहे हैं शास्त्री जी.एक महीने में 88 हजार से ज्यादा दर्शक बटोर लाये हैं आप. क्या ऐसा संभव है?” हां संजय, सारथी ने यह कर दिखाया है, एवं इसी कारण मैं ने अपने सर्वर से आंकडा काट कर आप लोगों को बताया था.
हिन्दी जालस्थल पर एक दूसरे को प्रोत्साहित करना हम में से हरेक की जिम्मेदारी है. इस मामले में रास्ता दिखाया था रवि रतलामी ने जिसकी एक रपट आप देख सकते हैं: मेरी व्यवसायिक चिट्ठाकारी का एक (सफल?) साल. उन्होंने इस लेख के अंत में दो तीन महत्वपूर्ण बाते कही थीं:
- तो, भविष्य में क्या कोई हिन्दी चिट्ठाकार अपनी दाल रोटी हिन्दी चिट्ठाकारी के जरिए कमा सकता है? जी, हाँ. बिलकुल. निश्चित रूप से.
- परंतु इसमें थोड़ा सा समय लग सकता है. पाठकों के क्रिटिकल मास तक पहुँचने से पहले ये सपना देखना बेमानी होगा. क्रिटिकल मास माने -– एक चिट्ठे के नियमित, नित्य, दस हजार पाठक.
- कौन जाने कब, पर यह दिन आएगा जरूर. चिट्ठों और पाठकों की बढ़ती रफ़्तार को देख कर लगता तो है कि हिन्दी चिट्ठाकारी जल्द ही अपने चिट्ठाकारों के लिए दाल-रोटी का भी प्रबंध करने लगेगी.
लगभग 25 सफल अंग्रेजी चिट्ठों के संचालन के बाद जब मैं ने हिन्दीजगत में प्रवेश किया तो मेरे मन में वे ही प्रश्न थे जो रवि जी ने ऊपर दिये गये उद्धरणों में पूछा है. यदि आमदनी चाहिये तो क्रिटिकल मास तक कैसे पहुंचेंगे. यदि आमदनी नहीं सिर्फ 100,000 हिटस प्रति माह चाहिये तो भी कहां से आयेंगे ये लोग. जो चिट्ठाकार काफी समय से हिन्दीजगत में हैं वे इस की कठिनाई को जानते हैं. तभी अनुनाद सिंह जी मेरे इस लेख पर पूछा कि “इतनी बड़ी संख्या सुनकर उतनी ही खुशी भी हो रही है। पर आश्चर्य हो रहा है कि इतने पाठक हैं कहाँ”.
कई बार लीक से हट कर सोचविश्लेषण करने पर बहुत सी नई बातें सामने आती आती हैं. मेरे 25 अंग्रेजी सर्वरों के आंकडे, उन चिट्ठों पर अदृश्य काऊंटर के आंकडे, आदि के विश्लेषण से पता चला कि आज हिन्दुस्तान में जितने हिन्दी जालपाठक हैं उनसे सौ गुने हिन्दुस्तान के बाहर है. विशेष कर खाडी देशों मे, अमरीका में, कनाडा में, जर्मनी में, एवं अन्य कई विकसित राज्यों में. इन पाठकों में मूल हिन्दुस्तानी भी हैं एवं ऐसे विदेशी लोग भी हैं जो हिन्दी सीख रहे हैं या हिन्दी पढते हैं. ये लोग नियमित रूप से अपने पसंद के हिन्दी जालस्थलों पर जाते हैं. इनमें से बहुत से लोग नियमित रूप से बडे खोजयंत्रों [गूगल, एमएसएन, याहू, अल्टाविस्टा, एवं डीमोज] की सहायता से हिन्दी चिट्ठों/जालस्थलों को मनपसंद सामग्री के लिये खोजते रहते हैं.
विदेशी लेखक काम से मतलब रखते है, एवं टिप्पणी कम ही करते हैं. लेकिन यदि आपके चिट्ठे पर उनके काम की सामग्री हो (जैसे विज्ञापन, वीडियों इत्यादि) तो वे इसका फायदा जरूर उठाते हैं. उदाहरण के लिये, मेरे चिट्ठे हिन्दी गुरूकुल पर ‘हिन्दी सीखिये’ नाम से एक वीडियो परंपरा है जिसके पहले वीडियो को पिछले 5 हफ्ते में 1000 से अधिक विदेशी लोगों ने देखा एवं लगभग 40 के करीब विदेशी लोगों ने इसकी फीड ले ली है. अत: यदि आपका लक्ष्य सिर्फ टिप्पणी पाना है तो सीमित हिन्दुस्तानी समूह में रहें. लेकिन पाठक पाना है एवं कुछ आमदानी पाना है तो विदेशी पाठकों को लक्ष्य बनायें.
चिट्ठाजगत की मदद से यह मैं ने कैसे इतने बडे पाठक समूह को प्राप्त किया इसका सचित्र वर्णन देखें इस लेख के भाग 2 में.
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सारथी: 90,000 हिट्स व 30,000 पेज-पठन महीने में !!!
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शास्त्री जी आप की अगली पोस्ट का इन्तजार है…।
जी बिलकुल, टिप्प्पणियों की संख्या पाठकों की संख्या का मापदंड नहीं होता, किसी लेख पर बेशक दो-तीन टिप्पणियाँ हों लेकिन उसको हज़ारों बार पढ़ा गया हो सकता है!! अगली कड़ी की प्रतीक्षा है। 🙂
प्रतीक्षा!
कृपया जल्द से जल्द अगला भाग २ लीखे
सारथी जी,
आपकी जानकारी बहुत महत्वपूर्ण है।
दीपक भारत दीप
उत्तम विचार..