गाते थे विद्यालय में
सुबह की प्रार्थना में कि
गुरू है ईश्वरतुल्य.
पता चला कि आजकल तो
अध्यापिकायें ही
बना रही हैं
विद्यार्थिनियों को वेश्या.
सवाल है यह कि ये तो
नहीं थे संस्कार जो
हमें मिले थे.
तो फिर कैसे हो गया
आज रक्षक ही भक्षक.
कभी न भूलें यह बात कि
हम को मिले न केवल
संस्कार,
बल्कि साथ साथ मिल था
इक माहौल,
जहां अंतर था सही गलत मे.
और था यही अंतर
वह सीमा जो बनाये रखता था
हमको मानव !
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well said sir
वह सीमा जो बनाये रखता था
हमको मानव !
चिंतन.. मनन.. ज़रूरी है फिर सीमाओं का अहसास होगा। वरना पाशविक प्रवृत्ति के शिकार होने के लिए सहायक माहौल चहुंओर बिखरा पड़ा है।
गुरू पर्व है आज.. सुबह से पंक्तियां याद आ रही हैं. गुरूब्रह्म गुरूविष्णु गुरु देवो महेश्वरः.. मुझे अपने बाल्यकाल के शिक्षक याद आ गए। बलिहारी गुरू आपकी गोविंद दियो बताय.
आपको टीचर्स डे पर हार्दिक बधाई..
आपको टीचर्स डे पर हार्दिक बधाई..
i should also have wished you sir so here its now , little late but never the less its there. hope you keep the good work going
आपको टीचर्स डे पर हार्दिक बधाई.
आदरणीय शास्त्री जी, आपकी टिप्पणी आज अपने ब्लाग पर पढ़
कर काफ़ी उत्साह वर्धन हुआ। मै मूलत: आई टी क्षेत्र से जुडा
हूं लेकिन पूर्व में मै एक पत्रकार के रूप में कार्य कर चुका हूं।
हिन्दी में चिठ्ठे देखने के बाद लिखने की ललक सी जागी है।
आपकी कही बातों को ध्यान रखूंगा और आगे सक्रिय रूप
से लिखने हेतु प्रयासरत रहूंगा।
धन्यवाद।
अंकित माथुर…
टीचर्स डे पर नेट टीचर को बहुत-बहुत बधाई
बिलकुल सही लिखा है दिल्ली की ताज़ा खबर भी है कविता में…