हर हिन्दी चिट्ठाकार को जाल भ्रमण के हर मौके पर अन्य चिट्ठों पर टिप्पणी जरूर करनी चाहिये. इसके कई कारण हैं:
1. आपसी प्रोत्साहन से ही हम आगे बढ सकते हैं.
2. बिन प्रोत्साहन कई अच्छे, होनहार, एवं उदीयमान हिन्दी चिट्ठाकरों की स्थिति चिट्ठाजगत में मृतप्राय हो सकती है. जिस तरह श्रीनिवास रामानुजन, हरगोविंद खुराना, ईसीजी सुदर्शन आदि को खोने का नुक्सान हिन्दुस्तान को हुआ है, उसी तरह एक उदीयमान चिट्ठाकर के सुप्त होने से हिन्दी को बहुत नुक्सान हो सकता है.
3. रचनात्मक टिप्पणी द्वारा हम लोग नये चिट्ठाकारों की योग्यता को ज्वलित कर सकते हैं, चमका सकते है.
4. टिप्पणी के लिये चिट्ठे ध्यान से पढेंगे तो हमारा खुद का मानसिक स्तर बढेगा.
5. एकता में बल है. जब हिन्दी चिट्ठाकार एक दूसरे को प्रोत्साहित करेंगे तो हिन्दी एवं हिन्दुस्तान का कल्याण होगा.
6. जीवन में वह व्यक्ति सबसे अधिक पाता है, जो सबसे अधिक देता है. जो चिट्ठाकार उदारता से टिप्पणी करते हैं वे सबसे अधिक लोगों को प्रोत्साहित करते हैं एवं यह उनके खुद के लिये अनुग्रह का कारण बन जाता है.
अत: आज से उदारता से टिप्पणी कीजिये. जीवन में वह व्यक्ति सबसे अधिक पाता है, जो सबसे अधिक देता है.
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जी आपके बताये मार्ग पर ही चल रहा हूँ, हुजूर!!
जी मुकम्मल बात कही है शास्त्री जी आपने
अरविंद
‘ सत्य सुसमाचार ‘
ठीक हिअ जी, यह लिजीये एक और टिप्पणी.
ठीक है जी, यह लिजीये एक और टिप्पणी.
हम भी इसी मार्ग पर चल रहे हैं…कोशिश यही रहती है कि ज्यादा से ज्यादा टिप्पणीयां कर सके।
साधुवाद दौर के अंत की घोषणा के बावजूद हमारे समीर लाल जी अपने टिप्पणी अभियान में मिशनरी भाव से नित्य जुटे रहते हैं। आपकी बातों और समीरलाल जी के व्यवहार से हमें भी प्रेरणा लेने की जरूरत है। कोशिश करेंगे।
सलाह के लिए धन्यवाद
सही!!!
इस बात से पूरे तौर पर सहमत कि टिप्पणी के लिये चिट्ठे ध्यान से पढेंगे तो हमारा खुद का मानसिक स्तर बढेगा.!!
शास्त्री जी नमस्कार आपकी बात से मै पूर्णतः सहमत हूँ…
शानू
इतिहास में कुछ महापुरुष टिप्पणियों के विषय में टीपनुमा संदेश दे गए हैं. ज़रा नज़र डालें-
‘तुम मुझे टीप दो, मैं तुम्हें टीप दूंगा’
‘धन्य है वो बिलागिया, जो पेज के अंतिम बिलागर की अंतिम पोस्ट तक टीप देता है’
‘जब कभी निराश हो तो बिलागजगत में उस सर्वाधिक उपेक्षित चिट्ठाकार की पोस्ट देखो जिसे कोई नही टीपता, तुम्हें लगेगा कि दुनिया में अकेले तुम ही नहीं हो’
‘टीपो परमो धर्मः’
और अंत में मेरा सदुपदेश- ‘एक पोस्ट लिखने से पहले दस पोस्ट पर टीप करो’
सलाह के लिए धन्यवाद… आगे से ख्याल रखूँगी 🙂
जी हाँ बिल्कुल सही है.सृजनकर्ता को प्रोत्साहन मिल जाए तो उसकी क्षमता कई गुना बढ सकती है.
हम तो इस बात से पूरी तरह सहमत है
http://qatraqatra.blogspot.com/2007/09/come-ant.html
सही लिखा है आपने शास्त्री जी …. इसे नियम को हर चित्ताकर अपनाये तो यक़ीनन हिन्दी चित्तों के भविष उज्जवल होगा
टिप्पणी महिमा बारे पहले भी बहुत कुछ कहा जा चुका है जी, जीतू भईया और समीर जी इसकी महिमा मजेदार तरीके से बता चुके हैं।
sometimes close the comment section and see then how creative you become because there is no tension of any reaction !!!!!!!!!!!!
आपने ब्लाक पर की जाने वाली टिप्पणियों पर सकारात्मक रूप से क्रान्तिकारी विचार रखे हैं। इस हेतु बधाई स्वीकारें। पर क्या आपको यह नहीं लगता कि प्रोत्साहन के लिए की जाने वाली हाइपरबोलिक टिप्पणियों के कारण अक्सर नवोदित रचनाकार भ्रम में पड जाते है। मेरी समझ से इससे उसकी सीखने की कोशिश बाधित होती है। आपको इस बारे में भी कुछ लिखना चाहिए।
हम तो इस बात से पूरी तरह सहमत है
धीरे-धीरे प्रयास कर रहा हूं टिपियाने का
टिप्पणीयों के लिये शब्द ढूंढना दुरूह लगता है