पिछले दिनों मेरे चिट्ठामित्र सजीव सारथी जब किसी कार्य के लिये केरल पधारे तो उन्होंने मेरे साथ कुछ घंटे बिताये. वे अपने कार्य में काफी व्यस्त थे, एवं उनका कार्य कोच्चि से काफी दूर था, लेकिन इसके बावजूद अपने काम के बीच उन्होंने समय निकाल कर मुझ से मुलाकात एवं चर्चा की.
मेरे परिवार के लिये यह एक सुखद अनुभव था क्योंकि किसी चिट्ठाकर से आमने सामने मिलने का उनका यह पहला अवसर था. सजीव ने इस के बारे में अपने चिट्ठे पर एक लेख दिया है: एक मुलाकात शास्त्री जी से
सजीव का स्वागत मैं ने, मेरी धर्मपत्नी शांता ने एवं बिटिया आशा (सलोनी) ने किया. मेरे बेटे डॉ आनंद को ड्यूटी के लिये अचानक उनके अस्पताल बुला लिया अत: उनकी मुलाकात सजीव से न हो पाई. सारथी को आरंभ करने के पीछे डॉ आनंद का हाथ बहुत अधिक है. मुलाकात के बाद सब ने हमें मेरी लाईब्रेरी में छोड दिया जहां मैं ने और सजीव ने तमाम तरह के विषयों पर बातचीत की.
पता नहीं क्यों समय इतना निर्दयी है. जब किसी का इंतजार करते हैं तो समय थम जाता है एवं पल पल काटना मुश्किल हो जाता है. लेकिन जब मुलाकात हो जाती है तो समय दौडने लगता है एवं कई घंटे एक पल में निकल जाते हैं. उस दिन भी ऐसा ही हुआ एवं सजीव के साथ बिताये गये कई घंटे एक पल में निकल गये.
चिट्ठाकर मित्र जब भी कोच्चि की ओर आयें तो पहले से जरूर सूचना दें जिससे कि मै शहर में ही रहूं एवं आपका सान्निध्य पा सकूं. मैं अकसर यात्रा करता हूं अत: पूर्व-सूचना मिले तो आभारी हूंगा.
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अच्छा लगा एक बार फिर संजीव और आपकी मुलाकात के बारे में जानकर। तस्वीरें भी बढ़िया हैं।
आपके विवरण का इंतजार था. तस्वीरे भी सही आयी है 🙂
सजीवजी से दिल्ली में मुलाकात हो चुकी है, यादें ताजा हो गई.
वाह, दोनों सारथियों की मुलाकात हो गई। 🙂 लेकिन शास्त्री जी, सजीव जी दूसरी फोटो में टेन्शन में काहे लग रहे हैं?
आपकी और सजीव जी की मुलाकात की तस्वीरें और विवरण अच्छा लगा. खाना पीना क्या हुआ, वो नहीं बताया?? तब तो औरों के आने का माहौल बनेगा वरना तो फोन पर बात हो जायेगी.:)
पढ़ कर अच्छा लगा।
अच्छा लगा भेंटवार्ता का विवरण पढ़कर।
हाँ अमित भाई, आपके कहने पर ध्यान से देखा तो मुझे भी ऐसा ही लग रहा है। शायद सजीव जी को गाड़ी छूटने की टेन्शन थी। 🙂
अच्छा लगा विवरण और फॊटॊ भी। 🙂
बहुत अच्छी लग रही है आपकी मीट…लाईब्रेरी भी आकर्षक है…आयेंगे कभी हम भी कोची आपसे मिलने…आपकी धर्मपत्नी शांता जी,बिटिया आशा(सलोनी) और बेटे डॉ आनंद को हमारी और से नमस्कार…सारा वृतांत बहुत अच्छा लगा…
शानू
अच्छा विवरण दिया है…पढ्कर अच्छा लगा।
वाह क्या बात है शास्त्रीजी, एक बार फ़िर यादें ताजी हो गई वैसे उस मुलाकात को मैं कभी भुला नही पाऊँगा, आपसे मिलना एक जीवन-बदलाव वाला अनुभव जो रहा था, अब कभी दिल्ली भी आइये, यकीं मानिये यहाँ आकर आपको बहुत अच्छा लगेगा, अमित जी और श्रीश जी मैं तनाव मे बिल्कुल नही था, अब भाई शक्ल ही ऐसी है तो कोई क्या करे….हा हा हा
मुलाकात का विवरण बहुत संक्षिप्त में निबटा दिया.. फिर भी अच्छा रहा।
आपकी लाईब्रेरी देखकर मन ललचा रहा है। 🙂
गुरूजी में रविन्द्र धाभाई चर्म रोग विशेषग्य हूं ,और आपको बस मान गया आज तक अपनी मात्र भाषा के लिए संघर्ष किया लगता था कि में बहुत कुछ हूं पर आपको देखकर लगा कुछ भी नहीं .आपका हर सुझाव अमूल्य है .टंकँण कम आता है .शत शत नमन