सच ही कहा है गुरू बिन ज्ञान नहीं,
गुरू नहीं जब जीवन में मिलते भगवान नहीं
आज शिक्षक दिवस पर उन सभी गुरूओं को मेरा नमन जिन्होने निःस्वार्थ भाव से नन्हें, सुकोमल कच्ची मिट्टी से बने बच्चों का मार्ग दर्शन किया और उन्हें सही मार्ग दिखलाया… मगर मेरी यह कविता उन शिक्षकों के लिये है जो स्वार्थवश अपने कर्तव्य भूल गये हैं…
नहीं चाहिये हमें ये शिक्षा
अनपढ़ ही रह जायें….
एसे गुरूओं से भगवान बचाये
नकली डिग्री ले लेकर जो
गुरू बन बैठे हैं,
गलत ज्ञान को सही बता
घमंड में ऎंठे है
कैसे कोई झूठी आशा इनसे लगायें
एसे गुरूओं से भगवान बचाये
जैक और चैक के चक्कर में
शिष्य चुने जाते हैं
गरीब घर के बच्चे
न उच्च शिक्षा पाते हैं
गुरू ही जब व्यापारी बन जायें
ऎसे गुरूओं से भगवान बचाये
गुरू बने है सर आज
शिष्य बने स्टुडैंट है
मेरे भारत को बना के इडिया
बजा रहे बैंड हैं
गुरू वंदना, गुड मॉर्निंग कहलाये
ऎसे गुरूओं से भगवान बचाये
रक्षक ही भक्षक बन कर
शोषण बच्चों का करते हैं
वो गुरू भला क्या बनेंगे
जो गलत राह पर चलते हैं
बलात्कारी,अत्याचारी जब गुरू बन जायें
ऎसे गुरूओं से भगवान बचाये
गुरू नहीं जब गुरू द्रोण से
कैसे अर्जुन बन जाते
रामायण,गीता के बदले
हैरी-पोटर पढ़वाते
उल्टी बहती गंगा में सब नहायें
ऎसे गुरूओं से भगवान बचाये
रचयिता: सुनीता (शानू)
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बहुत बढ़िया लिखा है सुनीता जी ने!!
अभी के युग में शिक्षकों की जो हालत है , उसे देखते हुए यह कविता बिल्कुल सही लिखी गई है .