(मेरे हिसाब से संस्कृति के अवशिष्टों के साथ खिलवाड एवं उनको खंडित करना देशद्रोह है) अक्टूबर के दो हफ्ते एवं नवंबर का एक हफ्ता मैं ने अपने तीन मित्रों (अमित, जिजो, शास्त्री बाघ) के साथ ग्वालियर के आसपास के एतिहासिक स्थलों के अनुसंधान/छायाकारी में बिताया. यह अनुसंधान कई नये चिट्ठों के रूप में इस एतिहासिक जानकारी को सचित्र प्रस्तुत करेगा.
ग्वालियर के 1400 साल पुराने किले एवं ओरछा के लगभग 600 साल पुराने राजमहलों के चित्र खीचते समय मेरा मन उन दस हजारों भित्तिलेखनों से बहुत त्रस्त हो गया जो लौंडेलपाडों ने इन प्राचीन एतिहासिक/सास्कृतिक धरोहरों पर किया है.
ऊपर के चित्र में ग्वालियर किले के प्राचीन ऊरवाई फाटक के उत्तर की ओर स्थित शताब्दियों पुरानी 3 जैन मूर्तियां दिख रही है. उसके नीचे कोई “सज्जन” अपना भित्तिलेखन छोड गये हैं जिसका क्लोसप चित्र नीचे दिया गया है:
यदि कोई विदेशी इस तरह से करता तो बात समझ में आ सकती थी, लेकिन इस तरह का विनाश का कार्य तो अपने ही लोग कर रहे हैं. कृपया इस विषय में जनजागृति फैलाने में हाथ बटायें. आपका कोई भी मित्र एतिहासिक स्थानों पर जाने की बात करे तो उनको याद दिला दें कि उनके समूह के हरेक को चेतावनी दे दी जाये कि वे किसी भी तरह का भित्तिलेखन करके भारतीय एतिहासिक धरोहर को नुक्सान न पहुंचाये.
(कुछ विशेष कारणों से एतिहासिक धरोहरों के इन छायाचित्रों का प्रतिलिपि अधिकार सुरक्षित है. लेकिन webmaster@sarathi.info पर संपर्क करने पर तुरंत ही लिखित रूप में इनके उपयोग के लिये अनुमति प्रदान कर दी जायगी)
अच्छा संदेश है, हम आपके साथ हैं.
ओरछा अकेले घूम रहे हैं हमें छोड़कर यह अच्छी बात नहीं है..सचमुच. 🙂
सचमुच लोगों के ऐसे गंदे कृत्य मन खराब करते हैं और हमारी सांस्कृतिक विरासत को भी।
अत्यंत निन्दनीय है यह।
shastri ji bahut badhia jagah chuni hai chayakaari ke liye, aur aapki chinta sachmuch vicharniya hai
ये निंदनीय है।
अब निंदनीय तो है, लेकिन लोग समझे तब ना!! पुरातत्व विभाग वाले तो इस पर जन-जागृति हेतू विज्ञापन भी बनाए हैं टीवी के लिए जिसमें एक बच्चा एक प्रेमी युगल को धिक्कारता है कि वे राष्ट्रीय और ऐतिहासिक संप्रदा का नाश कर रहे हैं, लेकिन ऐसे विज्ञापनों का लाभ तो तभी है जब लोग इनसे सीखें और न स्वयं ऐसा घृणित कार्य करें और न ही अपनी मौजूदगी में किसी को करने दें।
मेरे साथ जाने वाले मित्रगण में से कोई ऐसा कार्य नहीं करता, इस मामले में सभी समझदार हैं और उनको पता है कि ऐसे कार्य सिर्फ़ हमारी धरोहरों का नाश करते हैं और उनका सौन्दर्य बिगाड़ते हैं। ये धरोहरें हमारी अपनी हैं जो हमारे पूर्वजों से हमको मिली हैं, हम इनका नाश कर देंगे तो आने वाली पीढ़ियों को क्या देंगे!!
शास्त्री जी
कुछ चीज़ें हमारे इतने करीब हैं कि हमारा संदर्श ही बिगड है।
अपके साथ-साथ हमने भी ग्वालियर की सैर कर ली। शुक्रिया सर।
वाकई यह अफ़सोसजनक है। टी वी पर वह बच्चे वाला विज्ञापन देखकर खुशी होती है कि देर से सही पर इस बारे में पहल तो हुई!
अच्छा मुद्दा उठाया आपने.सरकार तो विज्ञापन दे ही रही है हमें भी इस ओर प्रयत्न करने चाहिये.
सही कह रहे है आप मगर यह क्या आप गलत जगह पर खड़े होकर फोटो खीचवा रहे है कोई आपको देवदास ना कहदे…