हिन्दी चिट्ठाजगत में ऐसे कई लोग हैं जो देर सबेर चिट्ठाकारी को एक अनावश्यक भार समझने लगते हैं एवं धीरे धीरे इस विधा से दूर हो जाते हैं. कोई पूछे कि आजकल आप के लेख नहीं दिखते तो पट से जवाब आ जाता है कि नौकरी, परिवार, एवं सैकडों झंझटों के रहते चिट्ठा चलाना असंभव है. यह गलत उत्तर है, एवं चिट्ठा बंद होने के पीछे गलती अकसर उन्ही की है.
कोई भी व्यक्ति असीमित शक्ति का मालिक नहीं है जो पृथ्वी का सारा भार उठा सके. हम में से हरेक की सीमायें हैं. जो व्यक्ति इन सीमाओं को पह्चान कर अपनी सक्षमता के अंदर योजना बनाता है वह सफल होता है, या अपने अभियान में उसके सफलता की संभावना दूसरों की तुलना में अधिक होती है.
जैसा मैं कई बार लिख चुका हूँ, रोज एक 1500 शब्द का लेख लिखना किसी भी चिट्ठाकर के वश की बात नहीं है. हफ्ते में इस तरह के तीन लेख भी लिखना मुश्किल है. अत: हवा में न उडें. अपनी सीमा पहचानें. 1500 शब्द के एक लेख के बदले 150 शब्द के 5 लेख आपको अधिक दूर ले जायेंगे.
इसी तरह यदि आप चाहें कि आप का हर लेख अनुसंधान के ऊपर आधारित हो तो आप तब तक हफ्ते में सात लेख नहीं लिख सकते, जब तक आप ने कम से कम बीसतीस साल किसी एक विधा में अनुसंधान न किया हो. पूर्वाग्रह छोडिये क्योंकि ये आपको परेशान कर देंगे. हिन्दी के सबसे अधिक पढे जाने वाले चिट्ठों को देखिये, वे सब बहुत ही व्यावहारिक तरीके से सोचसमझ कर लिखे जाते हैं. अपनी अपनी विधा में आधिकारिक भी हैं.
कल्पनालोक में विचर कर अपने चिट्ठे को बर्बाद करने में कोई होशियारी नहीं है. जगहसाई अलग से होती है. अनियमित चिट्ठों को पाठक भी कम मिलते हैं. अत: जल्दबाजी में चिट्ठाकारी को एक लफडा घोषित करने से पहले जांच लीजिये कि आप से गलती कहां हुई है.
इस लफड़े ने हम सबको जकड़ा है
मजा भी तो इसमें अच्छा तगड़ा है.
जब आप कल्पना के संसार में विचरेंगे और पाठक से सवाद न बना पायेंगे, तो ब्लॉगरी क्या खाक करेंगे। बहुत सोच का मसाला देती है यह मुन्नी पोस्ट।
सही कहा आपने …बूँद बूँद से घड़ा भरने का निश्चय किया है और गागर मे सागर भर सकें तो क्या कहना….
धन्यवाद…
sahi ghyaan
शास्त्री जी,
आपकी दी राय याद रहेगी और अमल में लाऊँगा। मार्गदर्शन करते रहें।
सविनय
संजय गुलाटी मुसाफिर
आपकी बात काफ़ी हद तक सही है शास्त्री जी!!
सही कहा आपने
मै आपकी इस बात को मानते हुए इस चीज को पहले ही प्रयोग में लेना प्रारंभ कर चुका हूं,आगे भी मार्गदर्षन करते रहें
जल्दबाजी में किसी भी चीज को गलत घोषित करने से पहले एक बार आत्मविश्लेषण तो करना ही चाहिये.. ये सिर्फ चिट्ठाकारी तक ही सीमित नहीं है..