आज नौकरी खतरे में है- क्या होगा? में ज्ञान जी ने रेलवे की एक दुर्घटना के बारे में बताया है. दोषी पाये जाने पर जिम्मेदार कर्मचारी निलंबित किये जा सकते हैं. वे कहते हैं, “खुद मैने कई गलती करते कर्मचारी नौकरी से निकाले हैं” वे खुद कहते हैं कि सही न्याय करने के बाद मन में दु:ख जरूर होता है.
किसी भी उच्च पोस्ट पर काम करने वाले के सामने यह दुविधा रहती है. जीवन भर अध्यापन करने के कारण मुझे कई विद्यार्थीयों को अध्ययन से “मुक्त” करना पडा है. इसके परिणामों को सोच कर हमेशा दुख होता है, लेकिन इधर कूँआ है तो उधर खाई है. निकालो तो एक पूरा परिवार तकलीफ पाता है, न निकालो तो एक पूरा समाज तकलीफ पाता है.
हरेक अधिकारी को यह समस्या अपने स्तर पर हल करना होगा. मैं ने अपने अध्यापन के समय विद्यार्थीयों से एक विशेष प्रकार का स्नेह दिखा कर, उनके दुख सुखों को सुनकर हल किया था. परिणाम यह था कि कई चेतावनी के बाद जब उनको निकालना पडता था तो वे लोग अपनी गलती समझ लेते थे एवं मुझे दोष नहीं देते थे. मेरे द्वारा इस तरह निकाले गये एक दर्जन विद्यार्थीयों से आज भी मेरे बहुत अच्छे संबंध है. उन में से कई को अन्य संस्थाओं में प्रवेश के लिये भी मैं ने मदद की.
विद्यालय/महाविद्यालय रेलवे, एजी ऑफीस, बैंक आदि की तुलना में काफी छोटे संस्थान हैं. मुझे बडे संस्थानों का अनुमान नहीं है. उन संस्थानों में उच्च स्थानों पर कार्य करने वालों की कठिनाई के बारे में हम सब को संवेदनशील होना जरूरी है. उनका काम आसान नहीं है. इधर कूँआ है तो उधर खाई है. ईश्वर हमारे इन वरिष्ट साथियों को शक्ति एवं बुद्दि प्रदान करें जब वे इस तरह की कठिन परिस्थियों से होकर गुजरते हैं.
मेरे पिछले लेख:
विनाश का आनंद
चिट्ठाकारी एक लफडा है ?
आप सही कहते हैं सजा निर्धारित करते समय सवेंदनशील और विवेकी होना, अहम को छोड़ना बहुत जरुरी है।
कहीं न कहीं एक अनुशासन की सीमा सभी को बनानी ही पड़ती है.
बड़ा संस्थान होने के कारण रेल में यह अवश्य है कि कर्मचारी कुछ मामलों में जानता है कि किस अपराध पर कितना दण्ड मिलेगा। बहुत कुछ नियम और कंवेंशन से तय हो जाता है।
पर फिर भी व्यक्तिगत निर्णय की दशा भी कुछ सीमा तक रहती है; और तब सामुहिक दायित्व और व्यक्तिगत करुणा में द्वन्द्व होता है।
तब सोचना पड़ता है कि अमुक महान व्यक्ति इस परिस्थिति में क्या करते?