(ओरछा: शास्त्री बाघ, हमारे गाईड, शास्त्री फिलिप, अमित)
पिछले दिनों एक एतिहासिक चिट्ठा बनाने के लिये ओरछा के प्राचीन महलों (झांसी से 20 किलोमीटर) पर एतिहासिक अनुसंधान करते समय हम ने एक गाईड की सेवायें लीं जिससे कि कोई भी महत्वपूर्ण निर्माण हमारी नजर से न बच सके.
गाईड ने एक घंटे का समय निश्चित किया एवं हमें हर जगह ले गये. हर जगह मैं ने या मेरे विद्यार्थी-सहकर्मी उपाचार्य जिजो (चित्र में नहीं हैं) ने काफी इलेक्ट्रानिक चित्र लिये. गाईड ने कहीं भी जल्दी नहीं मचाई, बल्कि कई चीजों की बारीकियां बताईं जिससे हम उन का चित्र जरूर ले लें.
गाईड ने एक के बदले दो घंटे हमे दिये एवं अंत में फीस लेने से मना कर दिया. उनका कहना था कि टूरिस्ट और पैसे बहुत मिल जायेंगे, लेकिन भारतीय एतिहासिक धरोहर की याद को सुरक्षित करने के लिये जो लोग कोशिश कर रहे हैं उनसे वे पैसा कतई नहीं लेंगे. मुझे काफी जोरजबर्दस्ती करके पैसा उनकी जेब में डालना पडा क्योंकि मेरी सोच यह है कि ऐसे लोगों का पैसा मारने के बदले उनको तो दुगना आदर दिया जाना चाहिये.
शत शत प्रणाम उन लोगों को जो देश के सांस्कृतिक धरोहर को सुरक्षित देखना चाहते हैं एवं जिसके लिये वे अपनी रोजी को भी छोडने को तय्यार है! क्या आज भी ऐसे लोग हैं? निश्चित ही हैं!
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ये गाइड सज्जन अच्छे लगे। इस पैसे के लालच के युग में ऐसी बात साधारण से अलग जो है।
सराहनीय प्रयास….बधाई
ऐतिहासिक धरोहरों की तरह ऐसे गाइड भी विलुप्त होती प्रजाति हैं। इन्हें भी बचाना होगा।
मेरी सोच यह है कि ऐसे लोगों का पैसा मारने के बदले उनको तो दुगना आदर दिया जाना चाहिये.
आपकी राय से सहमत हूं..
आज के युग मे जहाँ हर तरफ लूट मची है वहां ऐसे लोग कम ही मिलते है।
गाइड महाशय को मेरा सत्-सत् नमन..
सलाम उन सज्जन गाईड महोदय को!!
शास्त्री जी,
एक पंक्ति आप लिखना भूल गए कि ‘फिर आपका सपना टूट गया’।
सचमुच सराहनीय है। नहीं तो हमने यात्रियों को लूटते ही देखा है।
अगर वाकई में ऐसे लोग होते तो हमारी सरकार को “अतिथि देवो भव” का अभियान ना चलाना पड़ता. खुशकिस्मत हैं आप की आपको हमारी सभ्यता और संस्कृति पर गर्व करने वाला एक भारतीय मिला टूरिस्ट गाइड के रूप में.