चिट्ठा आत्महत्या: अगली कडी

पिछले दिनों मसिजीवी ने चिट्ठा आत्‍महत्‍या : कुछ स्‍फुट विचार में इस विषय पर रोशनी डाला है कि चिट्ठे क्यों आत्महत्या कर लेते हैं. मेरे विचार से इस क्रिया के लिये आत्महत्या से सटीक शब्द है आत्मनाश. सवाल यह है कि काफी अच्छे कई चिट्ठे एवं चिट्ठाकार कुछ समय के बाद क्यों मैदान छोड देते हैं, क्यों यह आत्मनाश होता है. प्रस्तुत हैं निरीक्षणों पर आधारित कुछ कारण:

Noose1. कई लोग ऐसी उम्मीदों के साथ चिट्ठाकारी चालू करते हैं जो वास्तविकता से परे है. उदाहरण: यह उम्मीद कि एक हफ्ते में लोग उनके चिट्ठे पर टूट पडेंगे, दो हफ्ते में वे चिट्ठासम्राट बन जायेंगे, एवं तीसरे हफ्ते से वे कुछ न लिखें तो भी लोग सौ सौ बार उनके पुराने एवं बासी चिट्ठे को पढने के लिये कतार लगाकर खडे होंगे.

2. कई लोग यह सोच कर कूद पडते हैं कि यह काम तो कोई बेवकूफ भी कर लेगा. सच है. लेकिन हर बेवकूफ आत्मनाश के लिये पंक्ति में आगे रहता है क्योंकि उसके लेख भी सिर्फ बेवकूफ लोग ही पढते हैं. सफल चिट्ठाकार अपने क्षेत्र में हमेशा पाठको से दो कदम आगे रहता है व बीस कदम आगे की सोचता है.

3. वे सोचते हैं कि लिखना शुरू करो, विषयों का अनवरत प्रवाह उनके मन में होता रहेगा. ऐसा कभी नहीं होता है. प्रवाह होता भी है तो वह सिर्फ उल्टेसीधे विषयों का होगा. जनोपयोगी, जनाकर्षक विषय पाने के लिये काफी दिमांग खपाना पडता है.

5. उनको लगता है कि बस, अब कामधाम से छुट्टी मिलेगी. अब तो आराम से बैठो, कुछ भी लिखो, छापो, प्रसिद्ध हो जाओ, ऐश करो. ऐसा सिर्फ कल्पनालोग में या फिल्मी दुनियां मे होता है. असल में काम तो अब शुरू हुआ है एवं चालू बिजली के नंगे तारों की रिपेयरिंग के समान सतर्क होना जरूरी है.

जिस चिट्ठाकार की सोच वास्तविकता से परे है वह प्रति दिन आत्मनाश के कंगूरे पर खडा रहता है जहां खडे रहने के बदले गर्त में गिरने की संभावना अधिक है.

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    Author: Super_Admin

    6 thoughts on “चिट्ठा आत्महत्या: अगली कडी

    1. blogging is a medium of self expression. blog space was given to blogger to express what boils in mind or heart . for some its a medium to over come turbulence and when that turbulence is over the writings stop . deleting of blog is simply another expression of “self ” . many bloggers write to “show” that they write . contrary many bloggers write because they cant “speak” . blogging is an medium to speak thru written words , say what you cant other wise say . for many its an experiment and they delete the blog after experimenting and start all over again. what is the point in using web space if one experi mnet fails , restart all over again. without experimenting nothing new will ever come out and life will become mundane . all those people who are 50 + and have come into blogging for them its break away from the normal routine of life and spend few minutes on computer , this is their another experiment. for people who are 40 + they are blogging with issues that are close to their hearts but they could not talk about them before . for people who are 30 + , blogging is ” another toy ” they play and throw away. for 20-30 + people blogging is a medium to relate to their ownself and find others like them

    2. डॊ. कविता वाचक्नवी said…
      ब्लॊग एक माध्यम-भर है, इस से अधिक कुछ नहीं। और ऐसा नहीं है कि यह इकलौता व सम्पूर्ण माध्यम भी हो। ऐसे में इसी माध्यम को महान उद्देश्य की भाँति प्रचारित कर के स्वयम् को समर्पित मानना या दूसरों को कहना असल में यह प्रमाणित करता है कि साधनों की रेल-पेल से आगे करने या पहुँचने को कुछ नहीं है। ब्लॊग ही तो लिख रहे हैं, कोई भगतसिँह की भाँति राष्ट्र पर बलिदान तो नहीं हो रहे भई! पता नहीं विषय की तलाश में मुद्दों को इतना सनसनीखेज बनाना, आगन्तुकों की संख्या बढ़ाना,हिट-फिट-पिट आदि के क्या मायने हैं? इस से कौनसी समाज सेवा, राष्ट्रसेवा, भाषासेवा या साहित्यसेवा होती न होती है। जैसे किसी ने ब्लॊग न नष्ट कर दिया वास्तव में आत्महत्या कर ली हो, जिसे कानून से दण्ड दिलाने के लिए संविधान बनाने की जरूरत आन पडी़ हो। किसी को कॊपी पर अपने लिखे को कई बार फाड़ने की जरूरत आन पड़ती है, इसे क्या उस व्यक्ति-विशेष को धिक्कारने, प्रताड़ित करने, ‘बेवकूफ़’सिद्ध करने, या अपमानित करने के लिए प्रयोग किया जाना चाहिए। पता नहीं ऊर्जा कहाँ लगाई जा रही है!लोगों को अपराधबोध से गरसित किए जाने जैसा लगता है, एकदम निर्रथक।

    3. सारथी जी,आपके द्वारा किया गया चिट्ठाकारों के वर्गीकरण से पूर्णत: सहमत नही हूं.आत्महत्या या आत्मनाश नाम कुछ भी हो ,हताशा की ही एक स्थिति है. अब यह हताशा किन कारणों से उपजी, अलग विषय है.
      यदि कोई बिल्कुल ही शेखचिल्ली है तभी वह सोचेगा कि ब्लोग शुरु करने के एक हफ्ते में ‘वह’ ब्लोग्श्री या ब्लोगभूषण बन जायेगा
      ( हां,वैसे ढूंढा जाय तो एकाध ऐसे शेखचिल्ली भी मिल ही जायेंगे).अन्य कारण जो आपने गिनाये हैं, वह यथार्थ में सम्भव है.
      मसिजीवी जी के विश्लेषण में धुरविरोधी के चिट्ठे का जिक्र था. धुरविरोधी ने अपनी पहचान कभी जगजाहिर नही की थी. वो कौन हैं,क्या नाम/काम /धाम है उनका ?किसी को पता नही था. शायद उन्होने अपने ब्लोग पर ऐसा कुछ लिखा होगा जो (उनकी नज़र में लिखते समय तो उचित रहा होगा, परंतु बाद में उन्हे स्वयम सही नहीं लगा)वो अपने नाम /पहचान के साथ जोडकर नही देखना चाहते होंगे/ होंगी ( धुरविरोधी- Male या female ?),अत: उन्होने इसे हटा लिया या आत्मनाश कर दिया.

      (हो सकता है धुरविरोधी अभी किसी और नाम से चिट्ठाकारी कर रहे हों, और अब उनकी कोई पहचान भी हो, यह एक और कारण हो सकता है- अपने लिखे हुए को disown कर देना)

      मैं सिर्फ कयास लगा रहा हूं. यदि धुरविरोधी इसे पढें और उन्हे बुरा लगे तो मुझे माफ करें.

    4. शास्‍त्रीजी आपका आभार कि आपने बात को आगे बढ़ाया, विशेषकार आपकी पोस्‍अ पर आई टिप्‍पणियॉं बात को गागे ले जा रही हैं।

      मैं कविता की बात से कुछ हद तक सहमत हूँ …कम से कम इस सीमा तक तो जरूर कि यदि किसी शिखर की लालसा में कोई शुरू कर रहा था और हिट विट के चककर में हार ने निराशा दी तो…ऐसे शेखचिल्‍ली चिट्ठे को तो जाने ही दें।

      पर मैं जिसे स्‍यूसाईउ कह रहा हूँ वह है अपने एक स्व (चाहे अपने नाम से या छद्म नाम से) को निर्मित करना तथा फिर उसके प्रति इतना मोहभंग होना कि उस अपने स्व को खुद ही नष्‍ट करना। संभवत यही ब्‍लॉग स्‍यूसाईड है।

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