चिट्ठों की सफलता के लिये मैं ने कई चीजों की वकालात की थी. इन में से एक था “विषयाधारित” चिट्ठे. कई लोग अभी भी नहीं समझ पाये हैं कि मन में आने वाले हर विषय पर अलग चिट्ठा चालू करने की बात नहीं हो रही बल्कि ऐसे विषयों की बात हो रही है जिन पर एक पूरा चिट्ठा चालू किया जा सकता है.
उदाहरण के लिये ग्वालियर किला या ग्वालियर फोर्ट नामक मेरा चिट्ठा ले लीजिये. इस विषय पर सैकडों लेख एवं चित्र इस चिट्ठे पर जोडे जायेंगे, लेकिन वे सब इस किले के विभिन्न पहलुओं के बारे में होगे. इस तरह से एक व्यापक विषय पर चिट्ठा चालू करने को मैं ने विषयाधारित चिट्ठा कहा था.
विषय भारतीय संगीत हो सकता है, समस्या-समाधान हो सकता है, या पढाई कैसे करें हो सकता है. संभावित विषय असीमित हैं. इन चिट्ठों की विषयवस्तु “सारथी” जैसे व्यापक चिट्ठे या चिट्ठाजगत में आजकल दिख रहे बहुत से खिचडी चिट्ठों की तुलना में स्थाई हैं. ये चिट्ठे लोगों को ऐसी विषय वस्तु उपलब्ध करवाते हैं जिन्हें दुनियां भर के लोग पढना चाहते हैं. हिन्दी चिट्ठों की संख्या जिस दिन 5000 पार कर जायगी उस दिन विषयाधारित चिट्ठे राज करने लगेंगे एवं जिस दिन यह संख्या 50,000 पार कर जायगी तब आपके चुनिंदा मित्रों के अलावा खिचडी चिट्ठों की तरफ कोई मुड कर भी नहीं देखेगा. इसी कारण सारथी के साथ साथ मैं कई विषयाधारित चिट्ठे चला रहा हूँ. इन पर शुरू में पाठक कम आते हैं लेकिन यदि लेख नियमित रूप से जोडते रहें तो 1 साल के अंत में कुछ न लिखें तो भी रोज सैकडों पाठक खिचे चले आते हैं.
विषयाधारित चिट्ठों के कुछ और नमूने:
मेरे चिट्ठे:
सचित्र ओरछा
सिक्कों का संसार (निर्माणाधीन)
डाकटिकट संसार (निर्माणाधीन)
महान भारतीय (निर्माणाधीन)
हिन्दीजगत के कुछ विषयाधारित चिट्ठे:
पर्यानाद
सौदा बाज़ार की खबरें
हिन्द युग्म
हमारा पारम्परिक चिकित्सकीय ज्ञान
घरेलू नुस्खे
शब्दों का सफर
चिट्ठाचर्चा
रचनाकार
इनके अलावा और भी चिट्ठे हैं जो विषयाधारित हैं, लेकिन मेरी बात समझने के लिये ये उदाहरण पर्याप्त हैं. विषयाधारित चिट्ठों के लिये कुछ विषयों की सूची देखें कल सारथी पर.
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आप सही कह रहे हैं। इस प्रकार के विषयार्धारित ब्लॉगों पर सिर झुका कर काम करने की जरूरत है। पर भविष्य उनका है!
मैं आपकी बात से पूरी तरह सहमत हूं शास्त्री जी कि विषय आधारित चिट्ठे होने चाहिए. यह न केवल अनुसंधान को प्रोत्साहित करता है बल्कि चिट्ठाकार के मन में एक जवाबदेही भी रहती है कि उसे अपने पाठकों को अपने विषय से संबंधित सही जानकारी देनी है. जरूरी नहीं कि आप सब मौलिक ही लिखें, विभिन्न स्रोतों से संग्रहित सामग्री भी चिट्ठे की विषय वस्तु हो सकती है लेकिन जरूरी है कि किसी एक विषय पर केंद्रित हो.
पर्यानाद् का उल्लेख करने के लिए धन्यवाद.
शास्त्री जी ,जिस तरह एक भरी पूरी पत्रिका के कई विषयाधारित स्तम्भ होते हैं ,अंतर्जाल पर हिन्दी चिट्ठाजगत मे वही भूमिका विषयाधारित चिट्ठों की लगती है ,पर आमुख कथा का महत्व तो हमेशा रहेगा
मेरे ख्याल से चिट्ठों की बाढ़ लगाने से कोई फायदा नही है यह तो भरतीय राजनीति में पार्टी की भाति हो जायेगी। हर जगह छोटी छोटी पाटी, एक जाल पर ही सब कुछ हो यह अच्छा है ताकि सबकि पहुँच हो सकें।
मै ज्यादा चिट्ठों का पक्षकार नही हूँ। बल्कि सामूहिकता का पक्ष कार हूँ। कई लोग एक ब्लाग पर काम करें विभिन्न विषयों पर।
सहमत तो हूँ पर इसे आत्मसात करने में समय लगेगा.
श्रीमंत जी आपका ज्ञान अपरम्पार है. पर हम में से ज्यादातर लोग किसी विषय विशेष पर इतना अधिक ज्ञान नहीं रखते हैं और प्राय: अपनी पसंद के हलके फुल्के विषयों पर लिखते रहते हैं.
उदाहरण के लिए मेरा ही चिटठा लीजिये. न कोई विषय न कोई विशेष अवधारणा. हो सकता है कुछ लोग इसे ही अपनी “यू एस पी ” बना कर चलते हो की फलाना जगह पर हमेशा कुछ न कुछ ताजगी रहती है और कुछ अप्रत्याशित सा मिलता है.
ठीक वैसे ही जैसे चाहे आप एक लाख गीतों का संग्रह कर लें अपने म्यूसिक सिस्टम पर, लेकिन रेडियो फ़िर भी भ्हाता है.. सिर्फ़ इसलिए की आपको पता नही होता की अगला गाना कौन सा आएगा. सब कुछ पहले से ही पता हो तो शायद ज्ञान तो बढ़ता है पर उत्साह कम हो जाता है. आप बताएं कुछ इसके बारे में..
सहमत हूं पर इसे अपने पे लागू कर पाना फ़िलहाल तोसंभव नही!!
विषयाधारित चिट्ठों का कुछ उदाहरण देकर आपने बहुत अच्छा काम किया है। इससे बहुत कुछ साफ हो जाता है। मुझे इस बात की खुशी है कि अब हिन्दी के कुछ चिट्ठे विषयाधारित हो रहे हैं।
मैं विषयाधारित चिट्ठों को इसलिये महत्वपूर्ण मानता हूँ कि जिस तरह अर्थशास्त्र में स्पेसलाइजेशन से सबको फायदा होता है, यह नियम ब्लागिंग पर भी लागू होता ऐ। मैं फैशन के बारे में लिखूं यह सम्भव है; पर उसमें कितना दम होगा? कुछ भी नहीं, क्योंकि मैं फैशन की दुनिया से बहुत दूर रहता हूं। किन्तु मैं प्रौद्योगिकी और विकास के सम्बन्ध पर कुछ लिखूं तो उसमें अर्थ होने की काफी गुंजाइश है।
हिन्दी में यदि ज्ञान-संग्रह करना है; यदि अधिक से अधिक गम्भीर पाठकों को खीचना है; तो विशिष्टता लिये हुए चिट्ठे बनने ही चाहिये। इससे हिन्दी चिट्ठाजगत को एक दिशा भी मिलेगी।
हाँ, लोगों की यह गलतफहमी भी दूर की जानी चाहिये कि हर व्यक्ति ‘इक्सपर्ट’ कैसे हो सकता है। वस्तुत: यह अनुभव करने की चीज है हर व्यक्ति किसी न किसी क्षेत्र में इक्सपर्ट हो सकता है/होता है।
यह श्लोक इसी से मिलती-जुलती बात कह रहा है-
अक्षरं अमन्त्रं नास्ति, नास्ति मूलं अनौषधम्।
अयोग्य: पुरुष: नास्ति, योजक: तत्र दुर्लभम्।।
(कोई भी अक्षर नहीं है जिससे कोई मन्त्र न आरम्भ होता हो; कोई भी मूल (जड़) नहीं है जिससे औषधि न बनती हो; और कोई भी मनुष्य अयोग्य नहीं होता – केवल उसका योजक (मैनेजर) दुर्लभ होता है।
नही सरजी अभी तो आप फ्री स्टाइल ही रहने दें.