मैं चिट्ठा पुलीस नहीं हूं!

Handcuffs चिट्ठे कैसे हों, पाठक मिलने के लिये क्या किया जाये, कौन सी बातें पाठकों को आकर्षित करती हैं आदि विषयों पर मैं ने काफी लेख पिछले 6 महीनों मे लिखे हैं. बहुत से चिट्ठाकारों ने इन लेखों के लिये आभार प्रगट किया एवं इन में बताये गये तकनीकों के प्रयोग से बहुत फायदा भी उठाया. लेकिन एक छोटा सा समूह अभी भी इन लेखों का मंतव्य नहीं समझ पाया है. उनको लगता है कि मैं शायद चिट्ठाकारों के लिये कोई कडे नियम बना रहा हूँ तथा उन नियमों के द्वारा किसी प्रकार की सेन्सरशिप लागू कर रहा हूँ.

कई लोगों को अराजकत्ववाद ने कुछ इस तरह से प्रभावित कर दिया है कि “निम्न कार्य अच्छा होगा” को वे सुनते हैं “निम्न तरह से ही होना चाहिये”. इस कारण वे अकसर पूछते हैं कि शास्त्री जी आप क्यों प्रतिबंध लगा रहे हैं. चलने दीजिये जैसा चल रहा है.

इन मित्रों को यह समझ लेना चाहिये कि चिट्ठाजगत अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर अधारित है. अत: जैसा चल रहा है उसको कोई रोक नहीं सकता. लेकिन यदि चिट्ठाजगत में कुछ लोग मुझ से कुछ सीखना चाहते हैं तो मेरे प्रिय अराजकत्ववादी मित्रों, उनको सीखने दें. आप न करना चाहें, मत करें. जो करना चाहें उनको न रोकें. फायदा हो तो उनको होगा. नुकसान होगा तो उनको होगा. आप फिकर न करें.

हां, यदि आप चाहें कि चिट्ठाजगत के बारे में अनुसंधानों/निरीक्षणों से जो बातें लोग सीख रहे हैं उनको किसी के साथ बांटा न जाये तो आप गलत है. जिस तरह से ज्ञान की उपेक्षा करना आप को पसंद है उससे अधिक ज्ञान को मिलबांट कर सबके फायदे के लिये उपयोग में लाना अन्य लोगों को पसंद है.

अत: यदि सारथी पर दिखने वाले एक या अधिक सुझाव आपको पसंद नहीं है तो उसके विरुद्ध टिप्पणी जरूर करें क्योंकि यह सब को सोचने पर मजबूर करेगा, लेकिन आप वृथा टेन्शन न पालें क्योंकि यहां कोई किसी को न तो मजबूर कर रहा है, न मजबूर कर सकता है.

चिट्ठाजगत पर सम्बन्धित: हिन्दी, हिन्दी-जगत, राजभाषा, विश्लेषण, सारथी, शास्त्री-फिलिप, hindi, hindi-world, Hindi-language,

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Author: Super_Admin

10 thoughts on “मैं चिट्ठा पुलीस नहीं हूं!

  1. वाह, बन्धन या वर्जनायें ही नहीं अब मानव सलाह भी नहीं चाहता। 🙂
    रविवासरीय चर्च में प्रार्थना सभा में भी लोग फादर को सुनने के लिये यही भाव लाने लगें तो वास्तव में चिन्ता का विषय हो जायेगा।
    जिन्दगी की भागमभाग लोगों को सुनने से विरत कर रही है शायद!

  2. ज्यादातर सलाह आपकी काम की ही है। और, अगर सच में चिट्ठे को मीडिया में घुसाने का इंतजाम करना है तो, ये जरूरी है। आप सलाह देते रहिए। हम मान रहे हैं।

  3. शायद कुछ लोगों का यह कहना इस लिये है क्योंकि वे अन्तरजाल या चिट्ठे के बारे में ठीक से समझते नहीं है।

  4. शास्त्री जी,
    मेरा मत थोडा सा भिन्न है। कोई नहीं समझना चहता तो बेहतर है कि उसे नजरांदाज़ करें। मैं खुद ऐसे विषय से जुडा हूँ कि निरंतर विरोध-स्वीकृति देखनी पडती है। हम हर किसी को तो समझा नहीं सकते। बेहतर है कि अपना मत रखें और लोगों को अपनी सोच और संस्कारों (जन्मजात गुण) के अनुरूप सोचने दें।

    संजय गुलाटी मुसाफिर

  5. आपने बिल्कुल सही कहा है. मैं आपसे सहमत हूँ. लेकिन ये चिट्टा पुलिस भी होनी चाहिए. जैसे ४-५ दिनों से देख रहे है उसके कारण.

  6. शास्त्रीजी आपसे प्रेरणा लेकर सीखकर मेरे जैसे अनेक लोग चिट्ठाकारी ही नहीं बल्कि लेखन विधा में भी काफी कुछ सीख रहे हैं.प्राथमिक कक्षाओं के वाद पहली बार लग रहा है कि हिंदी में सीखने जैसा कुछ हो रहा है और वह आप जैसे गंभीर चिट्ठा लेखकों की वजह से हीं है.आपका चिट्ठा पढने का अर्थ हिंदी का एक और पाठ याद करने जैसा अनुभव देता है,बढे चलो…..हमें आपसे बहुउउउउउउउउउउत कुछ सीखना है…….प्रणाम.

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