अंग्रेजों ने जहां भी राज्य किया वहां खूब जम कर उस देश को, उसके निवासियों को, उनकी संस्कृति को, एवं उनकी भाषाओं को जम कर लूटाखसोटा. वे न केवल लुटेरे थे, बल्कि दूरदर्शी लुटेरे थे. जिन जिन देशों पर उन्होंने शासन किया उन देशों की देशज भाषाओं को जितना तहस नहस कर सकते थे उतना किया. अंग्रेजी को प्रशासन की भाषा बना दी. अंग्रेजी मीडियम पढे लोगों को इस कारण सरकारी एवं सुरक्षित नौकरी की गारंटी हो गई. जो अग्रेजी न जानते हैं उनके हाथ से उनके अपने देशों की आकर्षक नौकरियां दूर कर दी गईं. यह इतना बडा विषचक्र बन गया कि हिन्दुस्तान जैसे देश अभी भी इस व्यूह को तोड नहीं पाये हैं.
लेकिन कुछ देशों ने अपना बुरा भला समझ लिया. अंग्रेज या अन्य विदेशी लोगों से छुटकारा मिलने के बाद उन्होंने अपनी देशज भाषाओं को संपुष्ट किया एवं सारी उच्च शिक्षा देशज भाषाओं में देने लगे. जापान, दक्षिण कोरिया, रूस, जर्मनी, इस्रायेल आदि इसके उदाहरण हैं. इस्रायेल ने तो 2000 सालों से मृत पडे हिब्रू भाषा को पुनर्जीवित करके उस देश की सारी उच्च शिक्षा इस भाषा में कर दी है.
यदि किसी को लगता है कि उच्च शिक्षा हिन्दी में नहीं हो सकती तो यह गलत है. हिन्दी बहुत ही सशक्त भाषा है एवं सही तय्यारी की जाये तो दुनियां का कोई भी विषय हिन्दी में पढाया जा सकता है.
मैं ने भौतिकी, दर्शन, औषधि शास्त्र, एवं पुरावस्तु शास्त्र में उच्च शिक्षा ली है, उच्च शिक्षा देता हूँ. इन मे से हर विषय हिन्दी में पढाया जा सकता है. सिर्फ औषधि शास्त्र एक ऐसा विषय है जिसमें कुछ अधिक तय्यारी करनी होगी, लेकिन यह असंभव नहीं है.
इस विषय पर इन दिनों हुई चर्चा:
हिन्दी-अंग्रेजी विवाद
हिन्दी-अंग्रेजी विवाद -3
अंग्रेजी व हीन भावना
हिन्दी अंग्रेज़ी विवाद
बिन अंग्रेजी सब सून
क्या ऐसा तो नहीं है
अंग्रेजी एक भाषा इसे ज्ञान का दर्जा मत दो
भारत की राष्ट्रभाषा अंग्रेजी क्यों नहीं है??
सागर भाई की उलझन और रचना जी की माफी
यदि और कोई लेख इन दिनों छपे हैं तो टिप्पणी द्वारा मेरी नजर में ले आयें.
हिन्दी-अंग्रेजी विवाद -2 link not working
सम्भव सब है, अगर करना चाहें तो.
हिन्दी सी सशक्त भाषा कोई दूसरी नहीं। यह इसलिए नहीं कह रहा कि मैं हिन्दीभाषी हूँ, बल्कि इसलिए कि मैंने और भी भाषाएँ सीखी हैं – भारतीय और विदेशी – सभी में कहीं न कहीं लिखने व उच्चारण में तलमेल नहीं। हिन्दी एकमात्र ऐसी भाषा मिली – जैसे बोलो, वैसे लिखो।
आपकी पोस्ट बहुत ही ज्ञानवर्धक और प्रेरनादायी होती हैं. उनसे एक मार्गदर्शन भी मिलता है. धन्यवाद.
इसी तरह आज की युवा पीढी को प्रेरित करते रहिये जो अनावश्यक अंग्रेजी प्रेमी हो रही है।
औषधि शास्त्र मे तो भारत का जलवा रहा है -अथर्ववेद से लेकर ,चरक ,सुश्रुत संहिता ऑर आगे भी चिकित्सा, औषधि का ज्ञान भारत मे विकसित रहा है जिसकी खोज ख़बर हम अब ले रहे हैं -उस परम्परा मे तो इसकी पढाई लिखाई हिन्दी मे मुश्किल नही है -पर हमे अपने हिदी ज्ञान के स्तर को ऊंचा करना होगा ,
शास्त्री जी, एक बात बताएँ; जिन देशों के नाम आपने लिए हैं उनमे से कितनों पर अंग्रेज़ों का राज रहा? मैंने कई जगह खोज लिया लेकिन इनमे से किसी देश के इतिहास में ब्रिटिश राज का इतिहास नहीं खोज पाया, कृपया ज्ञानवर्धन करें।
आप हमेशा की तरह मार्ग दर्शन करने के साथ ज्ञान बर्धक जानकारी भी दे जाते हैं. लेकिन अमित जी की दुविधा का निवारण भी ज़रूरी है..
मीनाक्षी जी, शास्त्री जी ने ईमेल द्वारा मेरी दुविधा का समाधान करते हुए कहा कि जिन देशों के नाम लिखे हैं उनपर या तो अंग्रेज़ों का राज रहा या किसी अन्य विदेशी ताकत/सभ्यता का। मैंने उनसे अनुरोध किया कि यहीं टिप्पणी देकर अपनी बात कहें तो अधिक उचित होगा ताकि अन्य कोई इस दुविधा में पड़ता है तो उसकी शंका भी दूर हो सके। साथ ही यह भी मैंने कहा कि इन देशों पर विदेशी राज भी नहीं रहा है, कम से कम मैं तो कोई लिखित उल्लेख नहीं खोज पाया जो कहता हो कि इन देशों पर कभी विदेशी हुकूमत रही हो। इसके बाद शास्त्री जी ने उत्तर नहीं दिया है अभी तक।