हिन्दी की बात करते ही बहुत से हिन्दीभाषी एकदम से दावा करते हैं कि हिन्दी में उच्च शिक्षा नहीं दी जा सकती. वे इसके दो कारण बताते हैं:
1. हिन्दी में वैज्ञानिक शब्दावली का आभाव है
2. हिन्दी के वैज्ञानिक शब्द अंग्रेजी शब्दों से कठिन हैं
[चित्र: उपलब्ध सीडी शब्दकोशों में सबसे वृहत कोश]
इसमे से पहला प्रस्ताव अज्ञान के कारण किया जाता है. हिन्दी में लगभग हर विषय में वैज्ञानिक शब्दावली बन चुकी है एवं समस्या शब्दावली की नहीं है बल्कि अपने विषय की तकनीकी शब्दावली के बन जाने के बारे में अज्ञान के कारण है. कुछ उपलब्ध शब्दावलियों के नाम देखें:
मानविकी शब्दावली IV: दर्शन मनोविज्ञान तथा शिक्षा भाग २, शिक्षा मंत्रालय भारत सरकर
मानविकी शब्दावली- v, शिक्षा मंत्रालय भारत सरकर
कृषि शब्दावली, शिक्षा मंत्रालय भारत सरकर
प्रारंभिक पारिभाषिक कोश भौतिकी, शिक्षा मंत्रालय भारत सरकर
प्रारम्भिक पारिभाषिक कोशः रसायन, शिक्षा मंत्रालय भारत सरकर
दूसरा प्रस्ताव हास्यास्पद है. एक व्यक्ति किसी यंत्र, नियम, अवयव, या अवधारणा के लिये जब एक नया शब्द् सीखता है तो चाहे वह हिन्दी हो या अंग्रेजी दोनों ही एक समान कठिन होते हैं क्योंकि शब्द एक दम नया है. दर असल यदि वह हिन्दी शब्द हो तो सीखने एवं उच्चारण करने में आसानी ही होगी. कुछ उदाहरण लें. कक्षा 7 के आसपास विद्यार्थी निम्न शब्द पहली बार सीखते हैं:
घनत्व — डेन्सिटी
आपेक्षिक घनत्व — रिलेटिव डेन्सिटी
वेग — वेलोसिटी
त्वरण — एक्सीलरेशन
प्रतिरोध — रेसिस्टेंस
घर्षण — फ्रिक्शन
जब एक विद्यार्थी पहली बार इन शब्दों को सुनता है तो वह चाहे हिन्दी में उनको याद करे या अंग्रेजी में, कठिनाई एक बराबर है. अंग्रेजी का नया शब्द किसी भी हालत में अधिक आसान नहीं होता है एवं हिन्दी शब्द किसी भी हालात में अधिक कठिन नहीं होता है.
असल समस्या न तो तकनीकी शब्दावली की है, न कठिनाई की है, बल्कि असली समस्या गुलामी की है. हम अंग्रेज एवं अंगेजी के ऐसे गुलाम हो गये है कि हर हिन्दुस्तानी चीज हम को हेय लगती है एवं अंग्रेज अपना तलुवा दिखा दे तो वह चाटने लायक पवित्र लगता है.
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कोई शिक्षा नहीं जो हिन्दी मे न दी जा सकती हो। हिन्दी के प्रति
आपका समर्पण अनुकरणीय है।
सारा चक्कर वही है कि शुरुआत आप कैसे करते है। अब ये मजाक तो खूब चलता है कि कोई यहां से इंग्लैंड गया लौटकर कहा- वहां के बच्चे तो बड़े तेज हैं सब अंग्रेजी में ही बतियाते हैं।
सहमत , संकल्प का अभाव ऑर पारिभाषिक शब्दावलिओं के निर्माण मे अधकचरे विद्वानों ने बड़ा कबाडा किया है -पर शुरुआत टू हो गयी है ,हम आशवान्वित हैं …होंगे कामयाब एक दिन !
शुरुआत तो हमने आपेक्षिक घनत्व से की थी। रिलेटिव डेन्सिटी पर जाना पड़ा। और अब वहीं अटके हैं। ब्लॉगिंग के माध्यम से वापस आने का प्रयास कर रहे हैं।
दुनिया जर्मन भाषा का मजाक उड़ाती है कि उनके शब्द बहुत कठिन हैं; वाक्य बहुत बड़े-बड़े होते हैं .. आदि। किन्तु वे हर मामले में इंग्लैण्ड से आगे हैं। अपना सारा काम जर्मन भाषा में करते हैं। १९४५ में अमेरिका ने साथ नहीं दिया होता तो शायद अंग्रेज फिर से जर्मनों के गुलाम होते।
हिन्दी में (या किसी भी भाषा में) विज्ञान की पढ़ाई कठिन कैसे हो सकती है? जब अंग्रेजों के पूर्वज नंगे जंगलों में घूमा करते थे, संस्कृत में मेडिकल साइंस (जी हां, चरक संहिता आदि मेडिकल साइंस की पुस्तकें हैं) की रचना हुई। यूरोप में तथाकथित पुनर्जागरण के पहले ही भारत में आर्यभट्ठ आदि ने संस्कृत में गणित ग्रन्थों की रचना की (लीलावती, सूर्यसिद्धान्त आदि) । कोई ढ़ाई हजार वर्ष पहले पाणिनि ने जो माहेश्वर सूत्र की रचना की, उसके समकक्ष सूत्र आजतक विज्ञान और प्रौद्योगिकी में मुझे देखने को नहीं मिला।
इस बात से सहमत हूँ कि यदि चाहें तो हिन्दी में उच्च शिक्षा हो सकती हैं. लेकिन जब तक नहीं होती तब तक क्या करें ..क्योंकि घनत्व से डेंसिटी में जाना बहुत कष्टप्रद होता है…लेकिन जाना ही पड़ता है कोई उपाय नहीं है.
अच्छी जानकारी, मजबूत सोच
दुनिया में किसी को भी चीन से व्यापार करना है तो वह चीनी भाषा सीखेगा!
भारत इतना समृद्ध सम्पन्न देश है। यदि हम अपनी भाषा का आदर करेंगे तो निश्चय ही विश्व हमसे जुडने के लिए हमारी भाषा को अपनाएगा।
जरूरत है खुद हमें अपनी धरोहर को संभालने की और सही समय तक मजबूत बनने की।
आपकी बात पूर्णतया सत्य है. सिर्फ़ इच्छाशक्ति की कमी ही हिन्दी के विकास मे रोड़ा अटकाए है. आप के लेख बहुत सरल पर गंभीर होते है. जो सबके दिमाग को बहुत कुछ सोचने पर मजबूर कर देते है.
कृपया शब्दकोश CD के बारे में अधिक जानकारी दीजिए।
सोचा था चित्र पर क्लिक करने से सब कुछ साफ़ नजर आएगा।
ऐसा नहीं हुआ।
यह CD कहाँ से उपलब्ध कर सकते हैं?
इसका मूल्य क्या है?
G विश्वनाथ, जे पी नगर, बेंगळूरु
@विश्वनाथ जी,
कल हिन्दी के दो शब्दकोशों पर सचित्र, कडी सहित, लेख आयगा.
शिक्षा मे भाषा कभी बाधा नहीं बनती… मै भी मैनेजमेन्ट का छात्र हुं, जहॉ सबसे अधिक अंग्रेजी का उपयोग होता है, पर उनके बीच मे रहते हुये भी मै हिन्दी का प्रयोग करता हुं, जब तक की अंग्रेजी बोलना अनिवार्य नही हो जाता… और मुझे अभी तक किसी कठिनाई का सामना नही करना पडा है, बस शर्त ये है की आप जब बोलें, जीस भाषा मे बोलें, आपकी बातों मे वजन होना चाहिये. पर सच तो ये है – सिर्फ़ इच्छाशक्ति की कमी ही हिन्दी के विकास मे रोड़ा अटकाए हुये है.
भारत मे करीब एक प्रतिशत आवादी मात्र अंग्रेजी भाषा मे प्रवीण है। बाकी 99 % के लिए अंग्रेजी सीखने की बाध्यात्मक अवस्था दु:खदायी है। रुस, चीन, जापान, कोरीया, इजरायल जैसे देशो मे अपनी राष्ट्र भाषा मे लोग उच्चतम शिक्षा प्राप्त कर पा रहे है। लेकिन भारत मे आज भी जो शासन व्यवस्था है वह अंग्रेजो की गुलामी के भाव से ग्रसित है। यही कारण है की हम उच्च शिक्षा के लिए अंग्रेजी को अनिवार्य मान रहे है। अंग्रेजी मे उच्च शिक्षा के कारण ही भारत मे जन्म लेने वाले उच्चकोटी के मष्तिस्क वाले लोग विदेशो मे पलायन कर जाते है। हमे यह सुनिश्चित करना चाहिए की सभी विषयो की उच्च शिक्षा हिन्दी मे उपलब्ध हो।