चित्र: ग्वालियर किला, मानमंदिर, के विशालकाय पत्थर, शास्त्री आनंद कुमार अपने एतिहासिक शोध एवं किले के गहन छायांकन के दौरान
पिछले दिनों सागर भाई (सागर चन्द नाहर) एवं अभिव्यक्ति/ अनूभूति हिन्दी और हिन्दी विकीपीडिया की संपादिका पूर्णिमा वर्मन जी के बीच जाल-चर्चा के बीच पूर्णिमा जी ने यह दिलचस्प प्रश्न उठाया कि मुझ जैसे हिन्दीप्रेमी, हिन्दीप्रचारक, एवं हिन्दीभक्त के नाम में अंग्रेजी की बू क्यों आ रही है. प्रश्न दिलचस्प है एवं उत्तर इस प्रकार है:
मेरे पूर्वज केरल के वासी थे. 1800 में केरल में अंग्रेजों का प्रभाव बहुत था एवं इस प्रभाव के कारण अंग्रेजी नाम केरल में बहुत जनप्रिय हो गये थे. यह असर लगभग 1970 तक चला जिसके बाद फिर से भारतीय नामों का प्रचलन बढ गया. मैं चूंकि 1950 के दशक में पैदा हुआ, अत: इस सामाजिक चलन के कारण मुझे यह अंग्रेजी नाम मिला.
मैं चूंकि घोर अंग्रेज एवं फिरंगी विरोधी हूँ अत: मैं ने अपने बच्चों को ठेठ हिन्दी नाम दिया (आनंद एवं आशा). मेरी पत्नी का नाम भी हिन्दी में है (सौ. शांता). लेकिन चूंकि जन्म के पहले या शैशव काल में कोई अपना नाम नहीं चुन पाता है, अत: मेरा अंग्रेजी नाम (मेरे लाख मानसिक विरोध के बावजूद) मेरे साथ जुडा हुआ है.
यह उत्तर पाकर पूर्णीमा जी ने सुझाव दिया कि नाम तो अब भी बदला जा सकता है. अच्छा सुझाव है. परेशानी सिर्फ इतनी है कि दर्जनों दस्तावेज, अंकसूचीयों, एवं डिगरीयों पर पुराना नाम पडा हुआ है. इनका क्या होगा. खैर, शायद जनवरी 1 से मैं अपने नये नाम के साथ प्रगट हो जाऊं! आप क्या कहते हैं?
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गलत. बिलकुल सही नहीं होगा ऐसा करना. वो तो कह ही गए है कि नाम में क्या रखा है पर दुर्भाग्य से ऐसा नहीं है. नाम हमारे व्यक्तित्व की सबसे पहली पहचान है जो बदलने का कोई औचितय नहीं है. आप ब्लॉग लिखने के लिए अब बदलेंगे भी तो कोई फायदा नहीं. रहेंगे तो आप शास्त्री जी ही. मेरा अनुरोध है कि कुछ बेमानी सवालों की वजह से ऐसा नहीं करें.
अच्छा भला नाम है जी। क्या खराबी है?
जो रखा गया…सो रखा गया…
अच्छा नाम है…
अब नाम बदलने से गलत फहमियाँ ही बढेंगी और कुछ नहीं होगा..
इसे एसे ही रहने दें
अगर आप मानसिक रुप से अपने नाम से जुरे हे तो आप आप अपना नाम खुद ही नहिन बद्लेगे . अगर आपका नाम आप के लिय मानसिक कश्त का कारन हे तो तुरन्त बद्लना चाहिय
कहने से नाम बदल लेंगे?
हां अगर आपके मन मे चाह है कि नाम बदल लिया जाए तब ठीक है!!
वैसे माता-पिता ने जो नाम दिया है वही रखें रहें कोई दिक्कत नही है!!
शास्त्री जी,
कुछ तो लोग कहेंगे
लोगों का काम है कहना
मेरा यह मानना है कि प्रतिक्रिया न करना भी एक प्रतिक्रिया ही है।
संजय गुलाटी मुसाफिर
शास्त्री जेसी फिलिप नाम के क्या खराबी है….चलने दीजिए। नाम भी ख़यालों , आदर्शों , विचारधाराओं के अनुरूप होना चाहिए…बात कुछ हज्म नहीं होती।
राममनोहर लोहिया से तो कहीं भी समाजवाद नही झलकता उलटे राममनोहर से धार्मिकता और सरनेम लोहिया से पूंजीवाद की बू सूंघी जा सकती है:)
“मेरा यह मानना है कि प्रतिक्रिया न करना भी एक प्रतिक्रिया ही है।”
संजय जी ने बड़े पते की बात की…
शास्त्री जी वैसे देखा जाए तो ‘शास्त्री जे सी फिलिप’ में पहले हिन्दी की बू आती है फिर अंग्रेज़ी की…तो आज समय की माँग है दोनो का मिश्रण चाहिए… जो है बहुत अच्छा है…
beji said…
हम्म…नाम….जी यह तो बदल भी दें…पर भारत में बिछी रेलवे लाईन का क्या करें….जोग्राफी की लकीरों का क्या करें….अपने इतिहास का क्या करें…बदलना ही है तो वर्तमान बदलो…इतिहास तो संजोने की चीज़ है….नाम से अंग्रेजी बू आई….माता पिता के अनुराग की क्यों नहीं आई…जो जज़्बा उनमें नाम चुनने के समय था वह क्यों याद नहीं आया…।
सुंदरता के खातिर सिलिकौन फिलिंग इस्तेमाल करने जैसी बात है।
http://tippanikar.blogspot.com/2007/12/blog-post_02.html
मीनाक्षी said…
वाह बेजी… बहुत गहरी बात कह गई…. सही है…बदलने के लिए बहुत कुछ है जिसे बदल कर समाज को नया सुन्दर रूप दिया जा सकता
http://tippanikar.blogspot.com/2007/12/blog-post_02.html
शास्त्रीजी,
मैं भी हैरान हूँ।
नाम क्यों बदलना चाहते हैं।
इसमें “बू” कहाँ?
इसे तो मैं “सुगन्ध” ही समझूँगा।
नाम तो आपके माता-पिताने ने बड़े प्यार से दिए होंगे।
उनका खयाल नहीं है आपको?
अगर वे जीवित नहीं हैं तो उनके आत्माओं पर क्या गुजरेगा?
आपने अपने बच्चों को अपना मनपसन्द नाम दिये।
क्या यह काफ़ी नहीं है? अगर आपके बच्चे अपना नाम बदलने के बारे में सोचेंगे, तो आपको कैसा लगेगा?
रहने दीजिए।
एक गुप्त बात बताऊँ आपको?
हिन्दी चिट्ठाजगत से हाल ही में मेरा परिचय हुआ है।
इतने सारे चिट्ठों में से, कुछ महीने पहले, आपका ब्लोग सबसे पहले पढ़ा।
कारण?
आपके नाम के बारे में जिज्ञासा ! अजीब और अनोखा नाम है!
शुरू में आपको एक फ़िरंगी समझा!
इतनी सारी टिप्पणियों के बाद भी अगर आप अपना नाम बदलना चाहते हैं तो फ़िर यह आपकी मर्जी ।
देखने में आप सुन्दर है!
कृपया अपना चेहरा कभी मत बदलिएगा!
शुभकामनाएं
G विश्वनाथ, जे पी नगर, बेंगळूरु
वैसे मैं जानना चाहूँगा कि आपने शास्त्री की उपाधि कैसे पाई?
शास्त्री जी,
छोटा मुँह बड़ी बात – मेरे हिसाब से तो अब नाम बदलने में तो कोई तुक नहीं है.
और वैसे भी मुझे ऐसा लगता है कि हम सब (वाचक गण) आपको बिन मांगी सलाह दिये जा रहे हैं, आपने तो कहीं भी “पुछा नहीं कि – नाम बदल लूँ क्या?” है ना??
दूसरी बात- आप के पास तो और एक वजह है नाम न बदलने के पीछे. आपका नाम शास्त्री जे सी फ़िलीप है तो आप लोगों को हुल दे सकते हैं कि – मेरे हिन्दी प्रेम/ज्ञान के कारण मुझको “शास्त्री” उपनाम मिला है. 🙂
What is there in name Shastri ji ?
आप ऐसा सोच सकते हैं वो भी उम्र के इस मोड पर ,उम्मीद ना थी।
शायद पूर्णिमा जी के कहने को आफ सही नहीं समझ पाये, उनका कहना था जे सी फिलीप की बजाय जान्सन फिलीप लिखा जा सकता था।
उनकी जिज्ञासा जे सी शब्द से थी।
बाकी जिस तरह की टिप्पणियाँ आई हैं उससे तो हम दोनों कुछ हद तह खलनायक साबित हो गये 🙂
@सागर चन्द नाहर
“उनका कहना था जे सी फिलीप की बजाय जान्सन फिलीप लिखा जा सकता था।”
यह बात मुझ पर स्पष्ट नहीं हुई थी.
खलनायक कहां, लोगों को लगा कि कुछ हल्की फुल्की चर्चा हो रही है. किसी नहीं सोचा कि नाम वाकई में बदला जायगा, या कि बदलने को कहा गया है.