भारतीय बडे आदिम हैं ??

गोरे अंग्रेजों एवं फिरंगियों ने 200 से अधिक साल जम कर भारत को लूटा. वे लुटेरे थे एवं लूट उनका धंधा था. अपनी सेना की शक्ति द्वारा उन्होंने सारी दुनियां को लूटा. लुटेरों को खदेडना जरूरी है एवं 1857 में जो आग जली थी उस ने 1947 में अपना फल दिखाया. लेकिन अब जो काले “अंग्रेज” पीछे रह गये हैं वे दिन प्रति दिन भारतीयों को मानसिक गुलामी की ओर ले जा रहे हैं.

TeliKaMandir

छायाचित्र: ग्वालियर किला, 100 फुट ऊचा तेली का मंदिर. प्राचीन भारतीय विकास, वास्तुशिल्प, मूर्तिकला, सौन्दर्यशास्त्र, तकनीकी, एवं विज्ञान का एक उत्कृष्ट उदाहरण (बिना अनुमति छायाचित्र का पुनरूपयोग वर्जित है)

इन काले अंग्रेजों को कोई भी हिन्दुस्तानी चीज अच्छी नहीं लगती है. वे जहां भी देखते हैं वहा सिर्फ “पिछडा भारत” नजर आता है. लेकिन जरा अपने चारों ओर देखा होता तो असलियत पता चलती. आप इस देश के किसी भी कोने को छान लीजिये, आपको वास्तुशिल्प, मूर्तिकला, तकनीकी, एवं विज्ञान के उत्कृष्ट उदाहरण मिल जायेंगे. औषधिशास्त्र के मामले में यहां जो विकास हुआ था उसकी सारे मानव इतिहास में कोई बराबरी नहीं है.

आप पूछेंगे कि ये सारी चीजे लुप्त क्यों हो गई हैं? उत्तर अधिक दूर नहीं है. अंग्रेजों ने न केवल इस देश को लूटा, बल्कि इसकी बौद्धिक संपदा को नाश करने के लिये जो नीच से नीच हथकंडा अपना सकते थे वह अपनाया. हस्तलिखित ग्रंथों को नाश किया. सांस्कृतिक विरासत को नाश किया. देशज भाषाओं के विरुद्ध जो कुछ कर सकते थे वह किया. यह सच है कि कुछ भारत-प्रेमी अंग्रेज भी थे, लेकिन ये महज अपवाद थे. अंग्रेजी शासन का मुख्य लक्ष्य भारत-प्रेम नहीं भारत-लूट था.

कृपया अगले इतवार को टीवी बंद कर दें. परिवार के साथ अपने शहर के किसी एतिहासिक धरोहर को देखने जायें. उसकी कथा समझें. उसके तकनीकी पहलुओं का अध्ययन करें. जरा सोचें कि पिछले 3000 सालों में हमारे पुरखे जो तकनीकी धरोहर छोड गये (जिन में से कई के रहस्य हम खो चुके हैं) वह अंग्रेजों की देन है या हमारे पुरखों की देन है.

प्रतिलिपि अधिकार: चित्र का प्रतिलिपि अधिकार इसके जालराजों के पास सुरक्षित है. लेकिन जो कोई लिखित (ईपत्र द्वारा भी चलेगा) अनुमति मांगेगा उसको तुरंत ही लिखित अनुमति दे दी जायगी. उच्च क़्वालिटी के चित्र भी उपलब्ध करवा दिये जायेंगे. लिखित अनुमति के बिना सामग्री के उपयोग करने वाले व्यक्तियों के विरुद्ध कानूनी कार्यवाही की जायगी. प्रकाशन अधिकार के लिये webmaster@sarathi.info से संपर्क करें

आपने चिट्ठे पर विदेशी हिन्दी पाठकों के अनवरत प्रवाह प्राप्त करने के लिये उसे आज ही हिन्दी चिट्ठों की अंग्रेजी दिग्दर्शिका चिट्ठालोक पर पंजीकृत करें. मेरे मुख्य चिट्टा सारथी एवं अन्य चिट्ठे तरंगें एवं इंडियन फोटोस पर भी पधारें.

चिट्ठाजगत पर सम्बन्धित: ग्वालियर-किला, मान-मंदिर, गूजरी-महल, पुरातत्व, पुरावस्तु, ग्वालियर-का-इतिहास, गोपाचल, सास, बहू-का-मंदिर, तेली-की-लाट, एक-पत्थर-की-बावडी, सिन्धिया-स्कूल, झांसी-की-रानी, ऊरवाई-गेट, गूजरी-महल-संग्रहालय, शाल-भंजिका, अस्सी-खम्बा-बावडी, दाता-बन्दी-छोड-गुरुद्वारा, सूरज-कुंड, जौहरकुंड, शास्त्री, शास्त्री-जे-सी-फिलिप, शास्त्री-जी, Gwalior-fort, maanamandir, Gujri-mahal, Goojri-mahal, teli-ki-laat, teli-ka-mandir, sas-bahu-ka-mandi, gwalior, history, archeology, tomar-kings, tomar-dynasty, jhansi-rani, rani-of-jhansi, shastri, shastri-jc-philip, johnson-c.-philip,

Share:

Author: Super_Admin

11 thoughts on “भारतीय बडे आदिम हैं ??

  1. शास्त्रीजी, सही कह रहे हैं आप। मैं यह और भी प्रखरता से महसूस कर रही हूँ क्यू कि आज कल मै सावरकर जी का 1857 का स्वातंत्र्य संग्राम पढ रही हूँ । पढ पढ कर पीडा के दौर से गुजर रही हूँ । काले साहब -आय ए एस हमारे देशा को लगा हुआ घुन है ।

  2. यदि आप जैसे लोग हैं तो गोरे अंग्रेज के समान काले अंग्रेज भी चले जाएँगे। हम भी आपके पीछे हैं।

  3. कैसी विचित्र विडम्बना है। आज विश्व भारत की ओर देख रहा है कि कुछ जीवन मूल्य, सांस्कृतिक झलक ले सकें और भारतीय देख रहें है वहां जहां सिवाय खोखलेपन के कुछ नहीं।

    हम जिस जीवन या जीवन शैली से प्रभावित हो रहे है वह केवल खाई है।

  4. सभ्यताओं का मेल – चाहे वह लूट या प्रभुत्व के लिये हो, अपने साथ कुछ नयापन लाता है। अंग्रेजी शासन में सब खराब रहा हो, ऐसा नहीं है। इस्लाम के भारत में प्रभुत्व में भी सब ब्लैक एण्ड ह्वाइट नहीं है। सभी रंग हैं सभ्यताओं के फ्यूजन में।

  5. शास्त्रीजी, सही कह रहे हैं आप। आप के शव्द मन को छू गये
    ”लेकिन अब जो “ काले अंग्रेज” पीछे रह गये हैं वे दिन प्रति दिन भारतीयों को मानसिक गुलामी की ओर ले जा रहे हैं.कथन सत्य है आपका,पर इस का ईलाज कया हे,कयो कि यह **काले अंग्रेज** हे तो आपने ही ??

  6. आप सही कह रहे है…अंग्रेज चले गये अपनी हवा यहीं छोड़ गये है…

    इस बार ताजमहल जाने का मौका मिला था…बहुत आश्चर्य हुआ देख कर कि अंग्रेज अपना बैग,कैमरा और भी सामान अंदर लेजा सकते है मगर भारतिय अपनी पुस्तक या डायरी भी नही…बेहद भद्दे तरीके से उन्हे अंदर जाने से मना कर दिया गया…हमारे ही देश में हमी कें साथ इतना भेद-भाव हो रहा है तो आप इन काले अंग्रेजो को क्या कहेंगे?

    सुनीता(शानू)

  7. अगली बार आपको एक तस्वीर भेजूँगा. जो की पेशवा कालीन शनिवार वाडा की है जिसे बालाजी बाजी राव पेशवा ने बनवाया था. ये भव्य इमारत किरकी के युद्ध की गवाह भी बनी थी. आज अगर आप जायेंगे तो इसमे किसी भी वक्त आपको कमसे कम ५०० प्रेमी युगल झाडियों में इधर उधर घुसे मिल जायेंगे और देर शाम हो जाने पर लाठियाँ भांजते और युगलों से पैसे ऐंठते हवलदार. मराठा काल की इस इमारत में पर्यटन के लिए एक भी भारतीय हफ्तों नहीं आता. जो लोग दिखते हैं वो सारे के सारे विदेशी ही होते हैं, जो अपने हाथों में कोई बड़ी सी तस्वीरों वाली इतिहास की पुस्तक लिए हुए यहाँ वहां पत्थरों को देखते और तस्वीरें खींचते हुए मिल जायेंगे. आप तो इन विषयों के वरिष्ठ जानकार हैं, आप इस पर क्या राय देंगे?

  8. शास्त्री जी, आप इतिहास और पुरातत्व विद हैं.
    http://punitomar.blogspot.com/2007/12/blog-post_07.html
    पर वैसे तो भाषा व्यंग्यात्मक है पर फ़िर भी, मुद्दा गंभीर है. आपसे इस एक मुद्दे पर आपकी एक विशेषज्ञ के रूप में राय चाहूँगा.

Leave a Reply to अनिल रघुराज Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *