सडक छाप कुत्ते की जनानी कौन?

कुछ समय पहले मैं रेलगाडी के सामान्य कंपार्टमेंट में झंसी तक जा रहा था. भीड बहुत अधिक थी, लेकिन सब लोग आपस में काफी सहयोग कर रहे थे.

dogगाडी रुकी हुई थी. तभी दरवाजे पर एक आवाज सुनाई दी, “एक्सक्यूज मी, प्लीस मूव अवे फ्राम द डोर. आई नीड टु गो इनसाईड”. किसी को कुछ समझ में नहीं आया, लेकिन उसे गाडी में प्रवेश करने को उत्सुक जान कर कर उस गजब की भीड में भी लोगों ने इधरउधर हट कर उस अंग्रेजीदां कन्या को अंदर जाने का मौका दिया. तब उसकी अगली मांग गूजी, “यू डर्टी पीपिल. मूव अवे ए लिट्टिल मोर सो दैट नन ऑफ यू ब्लडी पीपिल डर्टी माई क्लोद्स”. किसी को कुछ समझ में नहीं आया (अधिकतर लोग ग्रामवासी थे). आया होता तो भी वे और क्या हटते. पहले से भीड इतनी थी कि कोई अंदर वाला गलती से जोर से सांस ले लेता तो फाटक पर खडे दोचार बाहर टपक जाते.

खैर वह कन्या जिसका अंग प्रत्यंग अपनी नुमाईश कर रहा था, एवं जितना ढंका था उससे अधिक खुला था, वह किसी तरह से अंदर पहुंच गई. अब उसकी जिद थी कि उसके चारों तरफ कम से कम दो फुट जमीन खाली छोड दी जाये जिससे की लोगों के गंदे कपडे उससे छू न जाये. अंग्रेजी माध्यम में पढी काली मेम के “देशप्रेम” का एक जीता जागता उदाहरण.

जगह कौन छोडता. जो काम अलादीन का जिन्न नहीं कर सकता था उसे करने की मांग हो रही थी. मुझे इस तरह के घमंडी, नीच, एवं काले फिरंगियों को देखते ही घिन आती है लेकिन मैं बोला नहीं. अंत में उसके एक वाक्य ने मुझे बोलने पर मजबूर कर दिया. जब अपने चारों ओर उसे वांछित जगह न मिली तो वह बोली “यू ब्लडी अनएजुकेटड इंडियन मैंगी डाग्स यू डू नॉट नो हू आय एम”. इसे सुनते ही मैं एकदम से फट पडा “आय नो हू यू आर. ओनली ए बिच विल एंटर अमंग सो मेनी मैंगी डॉग्स”.

क्या अपको लगता है कि मैं ने गलत कहा? जो अपने भाई को (उसके अंग्रेजी के अज्ञान के कारण) सरे आम सडक-छाप-कुत्ता कहती है वह खुद क्या है??

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Author: Super_Admin

33 thoughts on “सडक छाप कुत्ते की जनानी कौन?

  1. Awesome Shastri ji. I cant believe you spoke something like that. But that was a perfect answer. Even I would have scolded her if….. anyway.
    आपने कुछ गलत नहीं किया. जो जैसी भाषा समझे उसे वैसा ही जवाब मिलना चाहिए. ना जाने हमारी कौन सी हीन भावना का शिकार होकर हम अंग्रेजी की अनावश्‍यक गुलामी को अपने लिए इज्‍जत की बात समझते हैं. सचमुच ऐसे देसी फिरंगियों को देख कर खून खौल उठता है, जो रहते इसी देश में हैं, खाते और जीते यहां हैं लेकिन हिंदी और हिंदीभाषियों का अपमान अपमान करने में अपनी शान समझते हैं.

  2. @नहले पर दहला! बिच दहली की नहीं? उनकी प्रतिक्रिया आपने नहीं बताई!

    जब उसको पता चला कि एक पढालिखा “देशी” (सडकछाप नहीं) कुत्ता भी कंपार्टमेंट में है तो भौंकना तुरंत बंद हो गया.

  3. यदि कोई अंग्रेजी की भक्ति करे तो यह उसकी अपनी बात है, लेकिन महज इस कारण जब वे व्यवहार से या बोली से दूसरों को नीचा दिखाने की कोशिश करते हैं तो मेरा आत्मनियंत्रण समाप्त हो जाता है.

  4. सीखा है मैने

    सीखा है मैने तुमसे
    ए मेरी ज़िन्दगी
    की
    जो जिस से मिले
    वो उसे वापस
    कर दो
    प्यार मिले
    प्यार दो
    नफरत मिले
    नफरत दो
    कुछ भी उधार
    मत रखो
    जो , जो भाषा बोले
    उसे उसी भाषा मे
    समझाओ
    पर तुम से ही ये भी
    सीखा है मैने
    ए मेरी ज़िन्दगी
    मत बदलो अपने
    अंतर्मन को
    अपनी आत्मा को
    ओर कभी मत
    स्वीकारो
    कुछ गलत को

  5. “सठे साठ्यम समाचरेत” सही कहा. लेकिन उसके बाद क्या हुआ? ये भी बताइए.

  6. @balkishan

    जब उसको पता चला कि एक पढालिखा “देशी” (सडकछाप नहीं)
    कुत्ता भी कंपार्टमेंट में है तो भौंकना तुरंत बंद हो गया.

    यदि कोई अंग्रेजी की भक्ति करे तो यह उसकी अपनी बात है, लेकिन महज इस कारण जब वे व्यवहार से या बोली से दूसरों को नीचा दिखाने की कोशिश करते हैं तो मेरा आत्मनियंत्रण समाप्त हो जाता है.

  7. शास्त्री जी,
    7-8 साल पहले शायद मैं भी यही जवाब देता। शायद परिस्थिति वश आज भी दे सकता हूँ। पर फिर भी मैं इसे सही नहीं कह सकता।

    हाँ इतना कह सकता हूँ कि आपके लेखन की यह शैली पहली बार देखी है और सराहनीय है।

  8. @Sanjay Gulati Musafir

    मैं उन लोगों में हूं जो अनावश्यक अपनी आवाज कभी ऊंची नहीं करते, न चींटी तक को मारते हैं. लेकिन चुनिंदा अवसरों पर इस तरह के जवाब की जरूरत पड ही जाती है. यदि आप ने उस छोकरी का पूरा नाटक देख होता तो आप शायद काफी उग्र हो जाते.

  9. विश्वास नहीं होता कि आज भी किसी की हिम्मत ऐसी बातें करने की होती है । क्या उसे अपने पिट जाने का भय नहीं था ? कहीं यह कोई एक शताप्दी पूर्व की कोई धूप में टैन हुई अंग्रेजी आत्मा तो नहीं थी ?
    घुघूती बासूती

  10. मैं समझ सकता हूँ शास्त्री जी, इसी कारण मैंने बहुत ईमान्दारी से स्वीकार किया कि परिस्थिति-वश मैं आज भी ऐसा कर सकता हूँ।

    कभी कभी, हालात ऐसे हो जाते हैं कि खामोश रहना अत्याचार महसूस होता है!

    भगवान कृष्ण युधिष्ठिर को यह समझाते हुए कि युद्ध ही अंतिम विकल्प है, कहते हैं –

    “क्षमा, दया, तप, त्याग मनोबल, सबका लिया सहारा
    किंतु नर-व्याघ्र सुयोधन कहो कहाँ कब हारा”

  11. इन्दौरी में बोले तो… भोत सई…
    अंग्रेजी जानने से झूठी अकड़, हेकड़ी घमंड आते अक्सर मैने देखी है। अंग्रेजी जानना अच्छा है, परंतु अंग्रेजी न जानने वाले को निपट गँवार, अनपढ़ समझने की मानसिकता बहुसंख्य भारतीयों पाई जाती है।

  12. वाह शास्त्री जी क्या जवाब दिया आपने। इन दिनों भी गांधी को ट्रेन से धकियाने वाले इस देश में हैं। उन्हें जिंदा रहने का हक पता नहीं किसने दे रखा है। ऐसे लोगों को खुद सोचना चाहिए कि भगवान ने उन्हें धरती पर गलती से भेज दिया है और मनाना चाहिए कि जल्दी से ऊपर उठा लें।

  13. @ghughutibasuti

    लोकल गाडी थी, अधिकतर ग्रामवासी थे जो शहर से खरीददारी करके छोटे स्टेशनों की ओर अग्रसर थे. वे उसकी बोली नहीं समझ पा रहे थे. कुछ थे जो समझ रहे थे, लेकिन अंग्रेजी में पटु नहीं थे. ऐसे लोगों के बीच उनकी हीन भावना के कारण इस तरह की धौस अकसर चल जाती है. मेरे चारों ओर इतनी जनता थी कि उस कन्या ने मुझे नहीं देखा. देखा होता तो भी शायद वह उम्मीद करती कि मैं उसका साथ दूंगा. उसे नहीं मालूम था कि अंग्रेजी में उससे दक्ष एक व्यक्ति बैठा है जो इस दक्षता को अपनी महानता का चिन्ह नहीं मानता है.

  14. @Sanjay Gulati Musafir

    “क्षमा, दया, तप, त्याग मनोबल, सबका लिया सहारा
    किंतु नर-व्याघ्र सुयोधन कहो कहाँ कब हारा”

    यहां आपने मेरे मन की बात कह दी. कोप का जीवन में एक स्थान जरूर होता है, लेकिन उसे समझने के लिए बहुत अधिक संवेदनशील होना पडेगा.

  15. @अतुल शर्मा
    “अंग्रेजी जानने से झूठी अकड़, हेकड़ी घमंड आते अक्सर मैने देखी है। अंग्रेजी जानना अच्छा है, परंतु अंग्रेजी न जानने वाले को निपट गँवार, अनपढ़ समझने की मानसिकता बहुसंख्य भारतीयों पाई जाती है।”

    एकदम सही बात. इसी झूठी हेकडी को उतारने के लिये सारथी परिश्रम कर रहा है.

  16. @satyendra

    “उन्हें जिंदा रहने का हक पता नहीं किसने दे रखा है।”

    हम बेवकूफों ने दिया है जो किसी को फर्राटे से अंग्रेजी में बोलते देखते हैं तो वही घुटने टेक कर उनकी वंदना करते हैं एवं अंदर ही अंदर हीन भावना से घुलते जाते हैं

  17. आपने बिलकुल ठीक किया और वही कहा जो कहा जाना चाहिए था. इसके लिए आपको ढेरों बधाईयां.

  18. बहुत बढ़िया। आपके अंदाज़ में एक निरालापन है ग्वालियर ओरछा से लौटने के बाद। चंबल के पानी का असर….
    खैर, ये तो हास्य था। आपकी प्रतिक्रिया एकदम स्वाभाविक थी। शठेशाठ्यम् समाचरेत् …

  19. एक बधाई मेरी तरफ से भी ले स्वीकार किजिये.. आपने जो कहा बिलकुल सही कहा.. शायद आपके जगह पर मैं होता तो कुछ और भी सुना देता.. मुझे हिंदी से जो प्रेम है उसका सबसे बड़ा कारण ऐसे जगह पर रहना है जहां हिंदी को हमेशा अपमानित किया जाता रहा है.. और फिर भी अगर कोई तमिलियन अगर अंग्रेजी जानते हुये भी तमिल में ही बोलता है तो मैं भी हिंदी से नीचे नहीं उतरता हूं.. फिर चाहे कुछ भी हो जाये..

  20. @Isht Deo Sankrityaayan

    आभार !

    @अजित वडनेरकर

    मैं ने जनते ही चम्बल का पानी पिया है एवं कई बार वह काम आ जाता है. आभार

    @प्रशान्त प्रियदर्शी

    आपके नजरिये की तारीफ करता हूं. यदि हिन्दीभाषियों में से 10% लोग अंग्रेजीदां लोगों की सांस्कृतिक/सामाजिक गुण्डागर्दी का सामना करने लगे तो देश का माहौल बदल जायगा.

  21. वाह शास्त्री जी आपने तो कमाल कर दिया…वैसे मै जानती थी आप एसा ही करेंगे आपकी देश और देश वासियों के प्रति भक्ति भावना को नकारा नही जा सकता…अच्छा उत्तर दिया आपने उस मेम को बस कुछ हद तक गलत भी… कई बार एसा होता है बहुत से अंग्रेज जो दिल्ली आतें है…हमारे प्यारे देश वासी अपनी सभ्यता-संकृती को ताक पर रख कर उन्हे लूटा करते है गालीयों से स्वागत किया करते है…खुद अपनी आंखों से देखा है मैने…आप क्या कहेंगे उनके बारे में?
    कल क्या हुआ था याद है हमें…मगर आज वो बस एक मेहमान होते है,अथार्त अतिथी देवो भवः…क्या कभी किसी भारत वासी को आपने इस बात पर क्रोधित होकर डाँटा है…और कीचड़ में पत्थर फ़ेंकने से क्या तात्पर्य…उसे जवाब तो मिलना ही चाहिये था…मगर आप तो ज्ञानी है एक आम आदमी की भाषा क्यों?

    सुनीता(शानू)

  22. शास्त्री जी आप की जगह अगर गांधी जी होते तो क्या कहते ?ईसा ने क्या कहा था ,ये ईश्वर इन्हे माफ़ करना ये नही जानते ये क्या कर रहे हैं -मगर आपकी प्रतिक्रिया सहज लगती है .लेकिन यह सच कथा है मुझे शक है [क्षमा करें !]But the issue which you have raised is pertinent and goes well even without this illustration .It appears redundant-a rhetoric!

  23. शास्त्री जी ,आप से बहुत शक्ति मिलती हे,जो आप ने किया बिल्कुल सही किया,*एक व्यक्ति बैठा है जो इस दक्षता को अपनी महानता का चिन्ह नहीं मानता है.यही बाते आप को हम से उच्च बनाती हे.

  24. मुझे सिर्फ़ यह अफ़सोस है कि उसको ऐसा कहने का अवसर मुझे नहीं मिला!! ऐसी अंग्रेज़ी की नाजायज़ औलादों को उनकी औकात याद दिलाने में मेरे को बहुत मज़ा आता है!! 🙂

  25. मुझे नहीं लगता की अंग्रेजी भाषा में दी गई गालियाँ या कहे गए शब्द हिन्दी भाषा में कहे गए शब्दों की तुलना में अधिक अपमानजनक होते हैं. बल्कि इससे एक फायदा होता है.. इससे केवल इंगित व्यक्ति को गालित होने का अहसास होता है जबकि बाक़ी लोग अप्रभावित रहते हैं.

  26. बहुत सही किया आपने
    मैं होता तो शायद एक आद हैल्पिंग वर्ब भी जोड देता

    अलवर का हूं न इस मामले में बहुत बदनाम है अलवर

  27. सुनीता(शानू) Ji ke lekh (December 5th, 2007 at 7:53 pm )
    Se Mai shaimat hun.
    kyo ki mai khud kaiyi bar delhi ke lal kia, Agre ka tajmhel jaise turist jagho par angrejo ke shath aisi hrkte Aam hai aiselogo ko Aap kya khenge.
    ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~vikash Lucknow

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