चिट्ठाजगत में जो लेखक निर्वाण की अवस्था पर पहुंच चुके हैं उनको पाठको के आवक जावक से कोई मतलब नही है. वे स्वांत: सुखाय लिखते हैं. लेकिन यदि आप मेरे समान सामान्य व्यक्ति हों तो योगी नहीं भोगी हैं एवं आप को पाठक जरूर चाहिये एवं यदि उनकी संख्या दिनप्रतिदिन बढे तो आपको खुशी होगी.
मजे की बात है कि पांच शब्द, जी हां महज पांच शब्द आपके पाठकों को खीच लायगा या भगा देगा. यह है आपके शीर्षक के शब्द. यह माना जाता है कि शीर्षक अधिकतम 5 शब्द का होना चाहिए. यदि तीन शब्द का हो सके तो बेहतर है, लेकिन हिन्दी में यह कठिन काम है. सारथी के अधिकतर शीर्षक 5 शब्द के आसपास होते हैं.
पिछले दिनों जान बूझ कर मैं ने पहले एक तिहाई दिनों में अच्छे शीर्षक दिये. ग्राफ में संख्या 1 के आसपास पाठक संख्या कैसे बढी यह आप देख सकते है. दूसरे एक तिहाई दिनों में सामान्य शीर्षक दिये. ग्राफ में 2 की संख्या पर पाठकों की संख्या गिर गई. आखिरी एक तिहाई (संख्या 4) में पुन: आकर्षक शीर्षक दिये, एवं पाठक एकदम बढने लगे. इस बीच जब मामूली शीर्षक के कारण पाठक कम हो रहे थे तब एक दिन एक आकर्षक शीर्षक दिया (संख्या 3) एवं पाठकों की संख्या अचानक ऊंचीकूद लगा गई.
अब प्रयोग खतम कर दिया है एवं हर दिन अधिकतम पाठक प्राप्त करने के लिये उचित शीर्षक की तलाश में रहता हूँ. आप भी यह कर सकते हैं. इसकी पहली सीढी के रूप में अपने चिट्ठे पर एक महीने तक नजर रखें कि किस तरह के शीर्षक से आपको पाठक अधिक मिलते हैं. इसके आगे की सीढियों को अगले लेखों में देखेंगे.
आपने चिट्ठे पर विदेशी हिन्दी पाठकों के अनवरत प्रवाह प्राप्त करने के लिये उसे आज ही हिन्दी चिट्ठों की अंग्रेजी दिग्दर्शिका चिट्ठालोक पर पंजीकृत करें. मेरे मुख्य चिट्टा सारथी एवं अन्य चिट्ठे तरंगें एवं इंडियन फोटोस पर भी पधारें. चिट्ठाजगत पर सम्बन्धित: विश्लेषण, आलोचना, सहीगलत, निरीक्षण, परीक्षण, सत्य-असत्य, विमर्श, हिन्दी, हिन्दुस्तान, भारत, शास्त्री, शास्त्री-फिलिप, सारथी, वीडियो, मुफ्त-वीडियो, ऑडियो, मुफ्त-आडियो, हिन्दी-पॉडकास्ट, पाडकास्ट, analysis, critique, assessment, evaluation, morality, right-wrong, ethics, hindi, india, free, hindi-video, hindi-audio, hindi-podcast, podcast, Shastri, Shastri-Philip, JC-Philip
आप कुछ उदाहरण देकर लिखें तो कुछ फ़ायदा होगा।
किसी भी नारे की लोकप्रियता का नियम है उसका आकर्षक और छोटा होना। मेरे विचार में यही बात शीर्षक पर लगती है। एक, अनाकर्षक छोटा शीर्षक या आकर्षक लम्बा शीर्षक बेकार है। इन दोनो बात का समन्वय जरूरी है।
सत्य, खासकर एग्रीगेटर से तो पाठक शीर्षक देखकर ही आते हैं, सर्च इंजन से पाठकों के आने का क्या फंडा हैं यह हमें पता नहीं हैं इस पर प्रकाश डालें (आपके इस लेख शीर्षक 5 शव्द के संदर्भ में ही)
महत्वपू्र्ण जानकारी…… आपका बहुत शुक्रिया
अगर नाम(शीर्षक) में दम नहीं होगा तो कोई आस-पास भी फटकेगा नहीं…अपुन का तो यही मानना है…
एक दूसरा ख्याल भी उमडता है कभी-कभी कि कुछ ब्लॉगरों को सिर्फ उनका नाम देख कर ही पढा जाता है..जैसे धास्त्री जी आप…दीपका भारतदीप या फिर समीरलाल जी को..ऐसे बहुत से नाम हैँ जिन्हें मैँ खुद सिर्फ नाम देख कर ही पढता हूँ कि उन्होने कुछ तो पते की बात लिखी होगी…
बाकि अपुन ठहरे नए खिलाडी…देखो कब अपना नम्बर आता है….उम्मीद पे दुनिया कायम है:-)
बहुत उपयोगी
सही जी; बिनु उपयुक्त शीर्षक सब सून!
@अनूप शुक्ल
@Sanjeeva Tiwari,
प्रिय अनूप, मैं आने वाले लेखों में इस विषय पर विस्तार से प्रकाश डालूंगा
मैं आपके इस बात से बिलकुल सहमत हूं और इसका प्रयोग करके 2-3 गुणा ज्यादा लाभ भी उठा रहा हूं.. 🙂
सहमत!!
अखबारी दुनिया में काम करने के बाद यह बात और भी शिद्दत से समझ आती है कि शीर्षक की क्या उपयोगिता है।
महत्त्वपूर्ण जानकारी
“अर्थ अमित अति आखर थोरे “…शीर्षक आकर्षक होने ही चाहिए .