मानव मस्तिष्क आज भी दुनिंयां में सबस बडा खजाना एवं सबसे बडी पूंजी है. इसे प्रमाणित करने वाली कई घटनायें हम रोज देखते हैं. इसका एक उदाहरण है अमरीका की एक घटना.
1900 का पूर्वार्ध. इलेक्ट्रानिक तकनीक अपने बाल्यकाल में था. पूंजीवाद के बढने के साथ साथ अमरीका में अतिविशालकाय दुकानें बनने लगीं जिनका क्षेत्रफल कई एकड था. वस्त्र विभाग में लाखों सूट एक समय टंगे रहते थे. अचानक चोरों के एक दल ने रातों में डाका डालना शुरू किया. अलार्म बजे एवं पुलीस पहुंचे इसके पहले ही वे हैंगरों से टंगे हजारों सूट “खीच” कर ट्राली में डाल भाग जाते थे. तेजी के साथ काम करने के कारण वे पकडे न जा सके.
कंपनी ने एलान किया कि जो कर्मचारी इसकी सबसे अच्छी एवं सस्ती काट बतायगा उसे पुरस्कृत किया जायगा. लाखों करोडों रुपये के खर्चीले सुझाव दिये गये. लेकिन एक कर्मचारी ने ऐसा सुझव दिया जिसके लिये फूटी कौडी की जरूरत नहीं थी. वह बोला, सारे हैंगर हमेशा एक ही दिशा में टांगे जाते हैं. वह बोला, आईंदा एक इधर को, एक उधर को टांगा जाये. लोग हंसे, लेकिन वह अडा रहा. आखिर ऐसा ही किया गया.
चोर आये. इधर खीचो तो उधर वाले हैंगर अटक जायें. उधर खीचो तो इधर वाले हेंगर अटक जायें. कल तक दसों हेंगर एवं सूट एक साथ खीच निकाल लेते थे. आज एक एक करके निकालना पडा. दसगुना समय लग गया. चोरों को पता न लगा कि समय कैसे बीत गया. इस बीच पुलीस आ गई एवं सब के सब धर लिये गये. मुफ्त का हल, करोडों की बचत!
मनुष्य की सबसे बडी पूंजी है उसका दिमांग, उसके सोचने की क्षमता. लेकिन कई लोग उसे कूडे की टोकरी में डाल कर लाखों रुपये का हल ढूढते रहते हैं, एवं अरबों की यह व्यक्तिगत पूंजी बेकार होती जाती है.
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यह दृष्टांत बहुत उपयुक्त है और आम जीवन में सोचने की क्षमता का बखान करने को मैं इसका यदा कदा प्रयोग करता हूं। आपने पोस्ट में उसे समेटा – अच्छा लगा।
अच्छी तरकीब है, ऐसी तरकीबें बताते रहिए।
कुछ शांत तारों को छेड दिया आपने। दिमाग का एक कोना दिल की शह पर सोने का बहाना कर रहा था।
शायद इसी को कहते हैं ‘हींग लगे न फिटकरी और रंग चोखा आए’
सचमुच इन्सान अगर थोड़ा दिमाग लगाये तो बहुत कुछ किया जा सकता है पर अफसोस!! करता कोई नहीं।
अच्छा दृष्टांत लगा।
रोचक वाकया,यही वह मानवीय हिकमत और सूझबूझ है जिसके बदौलत हम चाँद तक जा पहुंचे है और मंगल के मनसूबे बाँध रहे हैं .