साधुवाद की हत्या न करें!!

पिछले छ: महीनों में कई चिट्ठाकारों ने कई बार यह कहने की कोशिश की है कि अब साधुवाद बंद कर देना चाहिये. मतलब यह कि अब चिट्ठाकारों को मुफ्त में प्रशंसा न बांटी जाये. लेकिन ऐसा कहने वालों की सोच में एक मौलिक गलती है.

Canon

Picture: Free Photo

जो लोग चाहते हैं कि अब खुल कर चिट्ठाकारों की प्रशंसा न की जाये, या अच्छे/खराब चिठ्ठों को प्रोत्साहन न दिया जाये, वे भूल जाते हैं कि चिट्ठाजगत में नवागंतुक खतम नहीं हो गये हैं. बल्कि जैसे जैसे चिट्ठों की संख्या बढती जायगी, वैसे वैसे नवागंतुकों की कुल संख्या भी बढती जायगी अत: प्रोत्साहन की जरूरत हमेशा रहेगी. साधुवाद का युग हमेशा रहेगा. चिट्ठाजगत में ऐसे महामनस्क लोगों की जरूरत हमेशा रहेगी जो अपने स्वयं के प्रचार के बदले दूसरों को प्रोत्साहित करने के लिये अधिक समय देंगे. समीर लाल इस कार्य के सर्वश्रेष्ट उदाहरण है. आजकल ज्ञानदत्त जी ने भी यह बीडा सर पर उठा लिया है. कई और भी हैं जो समय समय पर यह कार्य करते है, सुप्त हो जाते हैं, लेकिन पुन: उस अभियान पर निकल पडते हैं. आज यदि मैं एक सफल चिट्ठाकार हूं तो वह नारद टीम से, विपुल जैन से एवं रवि रतलामी से मिले व्यक्तिगत प्रोत्साहन के कारण है. जब मैं ने हिन्दी चिट्ठाजगत में पैर रखा तब इन सब लोगों ने व्यक्तिगत रूप से कई ईपत्र भेज कर मुझे प्रोत्साहित किया था. ये चिट्ठाजगत में न होते तो शायद आज मैं चिट्ठाजगत में न होता.

हिन्दी जालगत एवं चिट्ठाजगत इस समय अपने शैशवावस्था में है, एवं उसे परिपक्व होने के लिये एवं पर्याप्त लेखक/पाठक प्राप्त होने के लिये कम से कम 2010 तक इंतजार करना होगा. (संगणक एवं जालतकनीक में भी गैर-रोमन लिपियों के प्रयोग संबंधी कुछ और विकास की भी जरूरत होगी.) अत: जब तक हिन्दी जाल/चिट्ठालोक की शैशवावस्था है तब तक नवोदित चिट्ठाकारों को प्रोत्साहित एवं प्रेरित करने के लिये चाचा, मामा, ताऊ, दीदी, बुआ, मामी, फूफी आदि की जरूरत रहेगी.

प्रोत्साहन न मिलने के कारण योग्य चिट्ठाकार इस विधा को छोड न जाये अत: आज जो योग्य दिखता है एवं जो अयोग्य लगते हैं सभी को एक समान प्रोत्साहन देने की जरूरत है. सिर्फ प्रोत्साहन एवं समय सिद्ध करेगा कि कौन वास्तव में योग्य है एवं कौन अयोग्य. अत: हरेक चिट्ठाकार को उदारता से टिप्पणी एवं प्रोत्साहन जरूर दें.

संबंधित लेख:

 

 

चिट्ठाजगत पर सम्बन्धित: विश्लेषण, आलोचना, सहीगलत, निरीक्षण, परीक्षण, सत्य-असत्य, विमर्श, हिन्दी, हिन्दुस्तान, भारत, शास्त्री, शास्त्री-फिलिप, सारथी, वीडियो, मुफ्त-वीडियो, ऑडियो, मुफ्त-आडियो, हिन्दी-पॉडकास्ट, पाडकास्ट, analysis, critique, assessment, evaluation, morality, right-wrong, ethics, hindi, india, free, hindi-video, hindi-audio, hindi-podcast, podcast, Shastri, Shastri-Philip, JC-Philip,

Share:

Author: Super_Admin

13 thoughts on “साधुवाद की हत्या न करें!!

  1. मैं आप से सहमत हूँ। प्रोत्साहन की आवश्यकता सदैव ही बनी रहेगी। वास्तव में अधिक आवश्यकता प्रतिक्रिया की है, अच्छी-बुरी कैसी ही क्यों न हो। परस्पर क्रिया-प्रतिक्रिया से ही चीजें विकसित होती हैं।

  2. सही है – ब्लॉगिंग संस्थागत क्रिया तो है नहीं जो नियमबद्धत्ता से भी चल पाये। यह तो पारस्परिक इण्टरेक्शन/मोटीवेशन से ही चल सकती है। यह समझने में मुझे भी पर्याप्त समय लगा।

  3. शास्त्री जी, टिप्पणी को लेकर आपसे मेरी असहमति नहीं है। जब मैंने 2008 में ब्वलॉगकारिता की बात की थी, तो उसमें कई एजेंडे थे। भाई लोग उसके अपने अपने मतलब के टुकड़े ले उड़े। लेकिन अच्छा ही हुआ कि खुलकर बातचीत हो पाई।

    टिप्पणी चाहिए। लेकिन सवाल ये है कि दर्जन भर ब्लॉगर गिरोह बनाकर एक दूसरे को ले टिप्पणी-दे टिप्पणी करें तो नया ब्लॉगर तो झटका खा जाएगा कि- हाय मुझे एक भी नहीं और उनकी पोस्ट, जो मुझे कूड़ा लगती है, पर दर्जनों। ऐसे में वो नया ब्लॉगर भी एक नया गैंग बना ले? ब्लॉग अगर लोकतांत्रिक माध्यम है तो उसमें आचरण भी लोकतांत्रिक होना चाहिए। अच्छी पोस्ट को टिप्पणी मिले। बुरी लगे तो आलाचना हो। वो भी टिप्पणी की शक्ल में आए। यही चाहते हैं न आप?

    आप सही कह रहे हैं कि ब्लॉग की संख्या बढ़ने और पाठकों के जुड़ने के बाद इसकी जरूरत नहीं होगी। ब्लॉग के विस्तार के लिए आपके प्रयास का मैं प्रशंसक रहा हूं। मेरे एक लेख का ये अंश देखें

    ‘विषय और मुद्दा आधारित ब्लॉगकारिता पैर जमाए

    ब्लॉग तक पहुंचने के लिए एग्रीगेटर का रास्ता शुरुआती कदम के तौर पर जरूरी है। लेकिन विकास के दूसरे चरण में हर ब्लॉग को अपनी-अपनी स्वतंत्र सत्ता बनानी होगी। यानी ऐसे पाठक बनाने होंगे, जो खास तरह के माल के लिए खास ब्लॉग तक पहुंचे। शास्त्री जे सी फिलिप इस बारे में लगातार काम की बातें बता रहे हैं। उन्हें गौर से पढ़ने की जरूरत है।’

    आपका साधुवाद!

  4. आपकी बात से सहमत है क्यूंकि प्रोत्साहन से ही लिखने का हौसला बढ़ता है।

  5. मैं इस बात से सहमत हूँ कि टिप्पणी की जरूरत सभी को। इस बात का भी कि कई बार प्रशंसा के शब्द चम्तकारिक असर करते हैं।

    फिर भी मेरी असहमति दर्ज करें।

    जहां तक सवाल है सहयोग का – मैं आज भी ईपत्र द्वारा राय/प्रशंसा भेज देता हूँ।

  6. Comments are important only if they are given on the subject . Hindi bloggers try to give comments on the phylosophy of the poem or article . its fine that mr shashtris post is open from discussion but many writers write and the post is not open for discussion but for reading pleasure . so if you comment there no this way of thinking is not right then you are not commenting on the “wriiten matter” but you are commenting on the “thinking process” of the writer . encouragement is good as along as its not personal commenting . I feel comment are not necessary if you are trying to cirsize someones writing without understanding whether the writer has opend the psot ofr discussion or not . But yes all hindi bloggers want comments because for them blogging has become an replacement of print material

  7. सारथी जी, मैं आप से शत-प्रतिशत सहमत हूँ। अन्तर्जाल पर मैं हिन्दी में कुछ पढ पा रही हूँ या लिख पा रही हूँ ।ये सब मित्रों के सहयोग का नतीजा है। एक वाक्य काफी होता है प्रोत्साहित करने के लिये ……… साथ ही ये जीजिविषा पैदा करता है नया कुछ लिखने की।

  8. सवा सोलह आने सहमत !
    बात केवल प्रोत्साहन की ही तो है, अवश्य देना और मिलना चाहिये । यदि कुछ महानुभाव अपने अहं एवं एकाधिकार छिनने के भय से नवांगतुकों को हतोत्साहित न सही किंतु उपेक्षा दर्शाते रहें तो भी उनको आने देने से रोक नहीं पायेंगे, बल्कि अपरोख्श बढ़ावा ही देंगे । अभी हाल में दीपक भारतीय जी की एक रचना में ‘छद्म ब्लोगर्स ‘का उल्लेख किया गया है और बढ़ते ब्लोगर्स की संख्या पर ( व्यंग में ही सही )चिंता जतायी गयी है । यह सोच कहां तक जायज हो सकती है, यह आप स्वयं निर्धारित कर लें ।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *