मेरी टिप्पणी को अन्यथा न ले !

हिन्दी चिट्ठाजगत में बिताये गया समय मेरे लिये बौद्धिक, अत्मिक एवं सामाजिक विकास का समय रहा. मेरे अधिकतर लेख सफल चिट्ठाकारी एवं हिन्दी-प्रचार से संबंधित थे लेकिन 20% विचारोत्तेजक विषयों पर थे — जैसे कि ईश्वर का अस्तित्व, विकासवाद, आदि.

image विचारोत्तेजक लेखों का लक्ष्य ही विचार-विमर्श है. साथियों ने काफी विमर्श किया भी. लेकिन इन में से कई लोगों ने विमर्श के पहले या बाद में जोड दिया “शास्त्री जी, इसे अन्यथा न लें”. मैं इन मित्रों की भावना का आदर करता हुँ. लेकिन याद दिलाना चाहता हूँ कि “सारथी” पर इस तरह से “अग्रिम जमानत” लेने की कोई जरूरत नहीं है. कारण है मेरा “स्वतंत्र चितन” का नजरिया.

स्वतंत्र चिंतन –> तर्क की कसौटी पर विमर्श –> जांच –> संशोधित चिंतन आदि मानव समाज के विकास की आधारभूत कडियां हैं. जहां इन चीजों पर पाबंदी लगा दी जाती है वहां विकास कुंद हो जाता है, विकास भावना का कैदी हो जाता है एवं अंत में वीरगति पा जाता है. इससे किसी को फायदा नहीं होता है.

मैं हमेशा वैज्ञानिक चिंतन का पक्षधर रहा हूँ. स्वतंत्र चिंतन जरूरी है. अत: सारथी के लेख हमेशा विमर्श के लिये खुले हुए है. नहीं तो सारथी पर टिप्पणी की सुविधा कभी की खतम कर दी गई होती. सन 2007 में मुझे 2500 के करीब टिप्पणियां मिलीं और उन में से एक भी टिप्पणी मिटाई नहीं गई है.

आईये सन 2008 में जम कर विमर्श कीजिये. अग्रिम जमानत न लें. आपसी चर्चा से ही हमारा ज्ञान बढेगा. सन 2007 में आप लोगों से बहुत कुछ सीखने का अवसर मिला. 2008 को उससे भी बेहतर बनाने की कोशिश करें. चाहे मेरा ईश्वरविश्वास हो या विषयाधारित चिट्ठा प्रचार हो, हर चीज पर स्वस्थ विमर्शनात्मक टिप्पणी कीजिये. सब को सीखने का अवसर मिलेगा.

 

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Author: Super_Admin

7 thoughts on “मेरी टिप्पणी को अन्यथा न ले !

  1. शास्त्रीजी,
    आपने पिछले बर्षों में जिन विषयों को छुआ उनमें से दो विषयों पर आपके लेखों की अगली कडी का इन्तजार है और उन लेखों को पढने के बाद आपसे आगे विमर्श होगा ।
    १) यौन शिक्षा की भारतीय अवधारणा क्या है ?
    २) विकासवाद पर आपके पुराने लेखों के आगे की कडी

    साभार,

  2. शास्त्री जी, आप को बहुत नहीं पढ़ा है। पर जितना पढ़ा है वह सब मानव सभ्यता को आगे बढ़ाने वाला है। जब भी वक्त मिलेगा पढ़ने का प्रयत्न करूंगा। और जल्दी ही आप के साथ विमर्श में आने वाला हूँ।

  3. @नीरज रोहिल्ला,
    @दिनेशराय द्विवेदी,

    दोस्तों विमर्श का हमेशा स्वागत करूंगा क्योंकि स्वस्थ विमर्श विकास का एक आधार है. मुझे भी अपने चिंतन की कमीघटियों को बदलने का अवसर मिलेगा.

  4. विमर्श तभी सम्भव है जब आप टिप्प्णीयों पर अपने विचार वापस रखें. साधूवाद धन्यवाद कह कर इति करना अच्छा है, मगर विमर्श तो नहीं. दो पक्षो को आमने सामने रख देना होता है, मंथन नहीं होता. देखें 2008 में क्या होता है.

  5. @संजय बेंगाणी
    2008 में महत्वपूर्ण टिप्पणियों पर चर्चा की कोशिश जारी रखूंगा. 2007 मे कई लेखों द्वारा यह किया था.

  6. मुझे भी आशा है कि अगला वर्ष हिन्दी चिट्ठाकारी के लिए और भी बेहतर होगा ।
    घुघूती बासूती

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