मामूली चीजें भी अनुकूल परिस्थितियां मिलने पर असाधारण हो जाती हैं. सामान्यतया बडे से बडा कद्दू 10 किलोग्राम का होता है. लेकिन 500 किलोग्राम तक के कद्दू पैदा किये गये हैं, इतने बडे कद्दू जिनको काटकर नाव बनाये जा सके.
दुनियां का महान से महान व्यक्ति भी मेरे आपके समान ही नश्वर ही पैदा होता है. उसकी शारीरिक जरूरतें, मन की विकृतियां, भावनायें एवं वासनायें मेरे आपके समान ही होते हैं. लेकिन फरक यह है कि वे मुझसे और आपसे अधिक आत्म मंथन एवं आत्म नियंत्रण करते हैं. वे एकदम से महान नहीं बनते, लेकिन एक एक सीढी चढते हैं. हम रुक जाते हैं, वे चढते ही रहते हैं.
आईये इस नये साल उन्नति के शिखर छूने के लिये हम भी कुछ निर्णय लें. रातोंरात शिखर पर पहुंचने के लिये नहीं, बल्कि संयम के साथ शीर्ष तक चढते रहने के लिये.
1. हर बात के लिये हर व्यक्ति के प्रति आभार मानें व प्रगट करें.
2. हरेक व्यक्ति से कुछ न कुछ सीखने का प्रयत्न करें
3. हर कार्य समय पर शुरू करें एवं अधिकतम समय से पहले खतम करने की कोशिश करें
4. हर हफ्ते कम से कम एक नई किताब पढें
5. हर हफ्ते देशसेवा के रूप में कम से कम एक व्यक्ति को हिन्दी या भारतीय भाषा में चिट्ठाकारी के लिये प्रेरित करें
कुछ काम करो, कुछ काम करो,
जग में रह कर कुछ नाम करो,
यह जन्म हुआ किस अर्थ अहो,
समझो जिससे यह व्यर्थ न हो!!
(30 साल पहले मुखाग्र की गई मैथिलीशरण गुप्त जी की एक कविता से)
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शास्त्री जी, आप का आभार। मैं भी उक्त सभी बिन्दुओं पर अमल करने का प्रयत्न करुंगा।
सही कहा आपने परिस्थितियों को और अधिक अनुकूल बनाने से और अधिक प्रतिफल मिलता है. कल ही मैंने पहली बार ऐसे जाम फल (बीही या गुवावा) खरीदे जो उनमें से प्रत्येक कोई 700 ग्राम के आसपास थे!
तीसरे और पाँचवें नम्बर की बातों में कमज़ोर हैं..कोशिश करेंगें कि उन पर भी अमल कर सकें..
“लेकिन फरक यह है कि वे मुझसे और आपसे अधिक आत्म मंथन एवं आत्म नियंत्रण करते हैं.”
ये पंक्तियाँ बहुत सार्थक लगीं। इसके साथ ही कद्दू वाली बात भी अत्यन्त प्रेरक है।
शास्त्री जे सी फिलिप जी नमस्कार,
आप का बहुत बहुत ध्न्य्वाद सारी बाते मै आपने बच्चो से बोलता हु,ओर वो उस पर अमल भी करते हे, मे नम्बर ४ को छोड कर सभी पर अमल करता हु.
धन्यवाद ,नम्बर ४ तो मुश्किल लगता है क्योंकि और भी तो काम हैं शास्त्री जी !
सुन्दर और प्रेरक आलेख। ऐसे लेखों का हिन्दी ब्लॉग जगत में टोटा है। 🙂
निश्चय ही सुन्दर और प्रेरक आलेख है , इस सन्दर्भ में मेरी व्यक्तिगत विनम्र मान्यता है कि- परिस्थितियाँ चाहे सापेक्ष हो अथवा निरपेक्ष व्यक्ति को हमेशा स्वाभाविक बने रहना चाहिए , यही प्रगति का मूल अभिप्राय है !
हर हफ्ते एक नई किताब, कुछ कठिन लगता है फिर भी कोशिश रहेगी।
शास्त्री जी, अनुकरणीय।
apka abhar jindgi se judi sarthkta se otprot
shabd dene ke liye.