मनुष्य एवं जानवरों मे एक अंतर यह है कि मनुष्य बहुत तरह के औजार बना सकता है. क्लिष्ट से क्लिष्ट काम को सुगम तरीके से एवं दक्षता के साथ करने के औजार.
मजे की बात है कि हजारों साल बनाने के बाद भी औजारों का अविष्कार खतम नहीं हुआ बल्कि और तेजी से बढ रहा है. यहां तक कि अब तो “साफ्टवेयर” में भी औजार आने लगे हैं. विन्डोज लाईव राईटर जिसकी मदद से कई चिट्ठाकार लेख लिखते हैं वह अति-दक्ष औजार का एक उदाहरण है. लेकिन अधिकतर लोग भूल जाते हैं कि वे भी अविष्कार की इस प्रक्रिया को आगे बढा सकते हैं. हर नया औजार दुनियां को एक नये तरह से बदलता है.
आज लेकिन मैं औजार को ईजाद करने के बारे में नहीं बल्कि “चिट्ठा” नामक औजार की सहायता से दुनियां बदलने की बात कर रहा हूँ. चिट्ठा-तंत्र अंतर्जाल द्वारा विचारों के आदान प्रदान को बहुत आसान बना देता है. यदि आप के पास ऐसा कोई आईडिया है जिसके द्वारा आप लोगों के जीवन में एक समूल बदलाव ला सकते हैं तो इस विचार के प्रचार के लिये आज उपलब्ध सबसे सस्ता, आसान, तीव्र, एवं प्रभावी माध्यम है चिट्ठा. सन 2008 से आप चिट्ठाकरिता द्वारा एक आंदोलन क्यों नहीं चालू कर देते. दस साल में आप दुनियां बदल सकते हैं. प्रस्तुत है एक उदाहरण:
आप सब जानते हैं कि अमीबियासिस (अमीबिक इन्फेक्शन) किस तरह से सारे भारत में फैला हुआ है. आश्चर्य की बात है कि सिर्फ एक छोटा सा कार्य इसको कम कर सकता है. कोई खर्चा नहीं, बल्कि एक छोटा सा काम — वह है “नियमित रूप से हाथ धोना”. आजकल खाना खाने से पहले एवं खानपान की सामग्री को हाथों से छूने से पहले हाथ धोने की आदत लोगों में बहुत कम हो गई है. लेकिन यदि इस आदत को प्रोत्साहित किया जाये (खास कर नौकर, चाय वाले, चाट छोले वाले लोगों में) तो यह संक्रमण 60% से 90% तक कम हो जायगा. यही नहीं किटाणूजनित एवं वायरसजनित और भी कई बीमारियों में कमी आ जायगी. हर्र लगे न फिटकरी, रंग भी चोखा होय. क्यों न एक चिट्ठा आरंभ करके इसे एक अभियान के रूप में चलायें?
कोशिश करें तो इस तरह की हजारों बातें हैं जिनके द्वारा आप दुनियां बदल सकते हैं. कल मेरा लेख होगा “पाच रुपये एवं दस मिनिट, सैकडों को जीवन दें”. उसे जरूर पढें.
आपने चिट्ठे पर विदेशी हिन्दी पाठकों के अनवरत प्रवाह प्राप्त करने के लिये उसे आज ही हिन्दी चिट्ठों की अंग्रेजी दिग्दर्शिका चिट्ठालोक पर पंजीकृत करें. मेरे मुख्य चिट्टा सारथी एवं अन्य चिट्ठे तरंगें एवं इंडियन फोटोस पर भी पधारें. चिट्ठाजगत पर सम्बन्धित: विश्लेषण, आलोचना, सहीगलत, निरीक्षण, परीक्षण, सत्य-असत्य, विमर्श, हिन्दी, हिन्दुस्तान, भारत, शास्त्री, शास्त्री-फिलिप, सारथी, वीडियो, मुफ्त-वीडियो, ऑडियो, मुफ्त-आडियो, हिन्दी-पॉडकास्ट, पाडकास्ट, analysis, critique, assessment, evaluation, morality, right-wrong, ethics, hindi, india, free, hindi-video, hindi-audio, hindi-podcast, podcast, Shastri, Shastri-Philip, JC-Philip
औजार सिर्फ इन्सान के ही पास हैं। वह इन्हें भी लगातार बदलता है और इन के जरीए दुनियां को भी लगातार बदल रहा है, अच्छे या बुरे तरीके से। हमें तो मात्र तरीका तय करना है। आप की सलाह पर अमल करेंगे कुछ अधिक मुस्तैदी के साथ अमीबा संक्रमण कम करने को। ‘तीसरा खंबा’ को भारतीय न्याय प्रणाली को दुनियां की सर्वश्रेष्ठ जनतांत्रिक न्याय प्रणाली बनाने के अभियान के उत्प्रेरक में बदलने का निश्चय है। हिन्दी चिट्ठाकार जगत इसमें सहयोग करेगा ऐसा विश्वास है। नववर्ष नयी सफलताऐं हासिल हों।
कल के लेख का इंतज़ार रहेगा।
मेरा विश्वास है कि आपकी पैनी नजर से मेरा लेख ‘क्या हुआ गर नववर्ष आ गया तो’ चूका नहीं होगा।
ळिंक – http://sanjaygulatimusafir2.blogspot.com/2007/12/blog-post_29.html
बेशक, बदल सकते हैं दुनियाँ को। बस स्क्रूड्राइवर (अपने औजार) का सही प्रयोग किया जाये। हिन्दी ब्लॉगरी में वह झगड़ने और परस्पर स्क्रू-अप के लिये प्रयोग किया जाता है, तब दिक्कत होती है।
मेरा यह स्क्रूड्राइवर का सैट खो गया था, अब पता चला आप ले गए थे।
यही विश्वास बांटते रहें, दुनिया बदलने का आधार बनता रहेगा। नया साल मुबारक…
“सन 2008 से आप चिट्ठाकरिता द्वारा एक आंदोलन क्यों नहीं चालू कर देते. दस साल में आप दुनियां बदल सकते हैं.”
इस दृष्टिकोण से कभी सोचा ही नहीं, धन्यवाद आपने एक दिशा दी है।
साबुन से हाथ धोने वाली बात पर भी इस तरह विचार नहीं किया, क्योंकि मैं स्वयं तो यह काम करता हूँ पर दूसरों को प्रेरित करने के लिए कभी नहीं सोचा।
@Vipul Jain
अब 2008 मे तो यह सेट अपको वापस मिलने से
रहा !!
भरोसे के लिए शुक्रिया । हम होंगे कामयाब।
नया साल शुभ हो….
यही तो है विज्ञान संचार !