कल वर्ष 2007 के सर्वश्रेष्ठ ब्लॉग पुरस्कारों की घोषणा में हिन्दीजगत के तीन पुरस्कृत एवं उसके साथ ही शीर्ष क्रम पर चयनित ब्लॉग की सूची आज सुबह प्रकाशित हुई. जैसा कि मैं उम्मीद कर रहा था, कई तरफ से कई प्रकार की प्रतिक्रियायें हुई — कुछ परिष्कृत प्रतिक्रियायें टिप्पणी के रूप में दिखीं लेकिन बाकी मूंह जबानी या ईपत्रों के द्वारा आगे बढीं.
सबसे पहले तो मैं श्री रवि रतलामी, बालेन्दु दाधीच और संयोजक जयप्रकाश मानस की प्रंशंसा करता हूँ कि वे इस तरह के कठिन कार्य के लिये सहमत हो गये. कठिन इसलिये कि इस छोटे से हिन्दीचिट्ठा जगत में लगभग सभी लोग एक दूसरे को जानते हैं अत: किसी भी प्रकार के चयन के बाद प्रशंसा कम होती है, बुराई होने की संभावना अधिक होती है. रवि रतलामी ने इस बारें में एकदम सही लिखा है:
पहली चीज पहले, पुरस्कारों और विवादों का चोली-दामन का साथ रहा है। अब चाहे गांधीजी को शांति का नोबल पुरस्कार नहीं देने पर नोबल पुरस्कार समिति का वेरी डिलेडआत्मावलोकन कि वे अपने उस कृत्य पर शर्मिंदा हैं – या फिर स्थानीय स्तर पर आयोजित पुष्प सज्जा प्रतियोगिता में किसी अच्छे से सजे पुष्प के बजाए किसी अन्य अच्छे से सजे पुष्प को पुरस्कृत किया जाना। यानी विवाद हर जगह होते हैं क्योंकि पुरस्कारों के लिए हर एक काअपना अलग एंगल अलग विज़न हो सकता है और यह वाजिब भी है। विवाद इसीलिए ही होते हैं।जब मुझे इन पुरस्कारों के लिए चयनकर्ता के रूप में चुना गया था तो मेरे मन में ये बातें पहले से ही थीं।
इसके अलावा निर्णायकों के ऊपर एक बंदिश और भी थी:
इन पुरस्कारोंको घोषित करते समय चिट्ठाकारों के लिए कुछ मापदण्ड निर्धारित कर दिए गए थे।
ऐसी कठिन स्थिति के बावजूद इन तीन लोगों ने मिलकर जिन तीन चिट्ठों को सर्वश्रेष्ठ घो़षित किया है वे निश्चय ही इस आदर के पात्र हैं. फुरसतिया के चिट्ठे के बिना हिन्दीचिट्ठाजगत अधूरा है जब कि ममता जी का चिट्ठा “ब्लाग” का एक सही स्वरूप है — आनलाईन डायरी का एक रूप. जहां तक अजित का शब्दों का सफर है, इस चिट्ठे ने हिन्दी भाषा/प्रयोग/व्युत्पत्ति के क्षेत्र में जो योगदान दिया है उसे “शब्दों” में व्यक्त नहीं किया जा सकता. तीनों चिट्ठाकारों को बधाई एवं एक चेतावनी — कई बार सफलता के बाद लोग धीमे पड जाते हैं. ऐसा न करें. लिखते रहें, हिन्दीजगत को आपकी जरूरत है.
शीर्ष क्रम पर चयनित अन्य ब्लॉग में सारथी का नाम है जिसके लिये मेरा आभार. इस सूची में जितने चिट्ठे हैं वे सभी अपने अपने क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दे रहे हैं एवं उम्मीद है कि अगले साल उनकी बारी पुरस्कृत चिट्ठों में जरूर आयगी. चुनाव में अगले साल सारथी को न शामिल करें क्योंकि इस बार आप ने जो आदर दिया वह पर्याप्त है. और भी हैं बहुत से योग्य चिट्ठे जिनको प्रोत्साहन मिलना चाहिये एवं पुराने चिट्ठों को एक बार आदर मिलने के बाद इस दौड से स्वत: हट जाना चाहिये जिससे कि नवागंतुकों को प्रोत्साहन मिले. (शेष अगले लेख में)
आपने चिट्ठे पर विदेशी हिन्दी पाठकों के अनवरत प्रवाह प्राप्त करने के लिये उसे आज ही हिन्दी चिट्ठों की अंग्रेजी दिग्दर्शिका चिट्ठालोक पर पंजीकृत करें. मेरे मुख्य चिट्टा सारथी एवं अन्य चिट्ठे तरंगें एवं इंडियन फोटोस पर भी पधारें. चिट्ठाजगत पर सम्बन्धित: विश्लेषण, आलोचना, सहीगलत, निरीक्षण, परीक्षण, सत्य-असत्य, विमर्श, हिन्दी, हिन्दुस्तान, भारत, शास्त्री, शास्त्री-फिलिप, सारथी, वीडियो, मुफ्त-वीडियो, ऑडियो, मुफ्त-आडियो, हिन्दी-पॉडकास्ट, पाडकास्ट, analysis, critique, assessment, evaluation, morality, right-wrong, ethics, hindi, india, free, hindi-video, hindi-audio, hindi-podcast, podcast, Shastri, Shastri-Philip, JC-Philip
आपका प्रस्ताव सुंदर है। अगर सारथी के साथ आप के अन्य चिट्ठे भी पुरस्कार की दौड़ से हट रहे हों तो मेरा सुझाव है कि अगली बार आप को निर्णायकों में शामिल किया जाना चाहिए। इस से कम से कम एक चिट्ठाकार को निर्णायक मंडल से बाहर लाया जा सकता है, जिस से उस के चिट्ठे को भी इस चयन में सम्मिलित किया जा सके। हालांकि इस वर्ष के निर्णायकों के चिट्ठों को किसी सम्मान की दरकार नहीं है। कुछ चिट्ठे ऐसे हैं जिन का सम्मान कर स्वयं सम्मानकर्ता ही सम्मानित होंगे।
प्रस्ताव अच्छा है.
शास्त्री जी, आपका बहुत-2 धन्यवाद. लगे हाथ इस मौके पर मैं कुछ बातें स्पष्ट करना चाहूंगा.
पुरस्कार मात्र तीन घोषित किए गए हैं. साथ में जो सूची घोषित की गई है, वो कोई पुरस्कारों की या पुरस्कृतों की सूची नहीं है, बस एक इंडिकेटिव लिस्ट है, अंतिम दौर की चयन सूची है, जो मेरे इंसिस्टैंस पर प्रकाशित हुई है.
दरअसल, हमने हिन्दी के तमाम चिट्ठों – जिनकी प्रविष्टि आई हो या नहीं – जैसी कि नियमावलि में थी, विचार किया था. फिर उन तमाम चिट्ठों को अलग किया जो पुरस्कार के शर्तों में नहीं थे- यानी महानगर से व तकनीकी जानकारों के. तो इसमें मुम्बई दिल्ली अहमदाबाद कलकत्ता जैसे महानगरों के चिट्ठाकारों के चिट्ठे व तकनीकी ई-पंडित जैसे चिट्ठाकार स्वचालित ही बाहर हो गए. अंतिम चयनसूची आते आते तक जाने-अनजाने इन शर्तों को पूरा नहीं कर पाने वाले – निर्मल आनंद, महावीर, दस्तक, अंतरिक्ष, शास्त्री, नैनोविज्ञान इत्यादि चिट्ठे जो रह गए थे वे यदि प्रथम तीन पर आते तो फिर से स्क्रूटनी पर चयन पर फिर से बाहर हो जाते क्योंकि महानगर व तकनीकी जानकारों के चिट्ठे होने के कारण वे पहले ही विचार योग्य नहीं माने जाते.
इस सूची को प्रकाशित करने के पीछे दो कारण रहे हैं – आप देखेंगे कि तीसरे स्थान पर 6.5 अंकों के साथ चार चिट्ठे हैं, तो फर्स्ट एमंग इक्वल की थ्योरी के अनुसार ममता जी हैं वहां पर. तो इसे विशेष रूप से दर्शाना था. और दूसरा महत्वपूर्ण कारण रहा है वो स्वयंसिद्ध है – आमतौर पर चयन सूची के हर चिट्ठों पर ज्ञान की गंगा बह रही है. और इसी वजह से नई चिट्ठाकार पारूल के उनके एक एकदम ताजा चिट्ठे जिसमें शायद गिने चुने दो या तीन पोस्ट हैं, उन्हें भी अंतिम दौर तक चयन हेतु ध्यान में रखा गया था. यूँ तो यह महज ब्लॉग पुरस्कार ही है, और इसमें कविताओं से लेकर घोर तकनालाजी तक लिखने वाले पुरस्कार के पात्र हैं, मगर, ये बात भी तय है कि पोस्टों की सार्थकता, सामाजिकता, सोद्देश्यता और समाज को कुछ लौटाने, कुछ देने के भाव लिए हुए पोस्ट ही अंतत: निर्णायकों की नज़र में चढ़ पाते हैं और चढ़ते रहेंगे. इसी बात को इंगित करने हेतु इस सूची को जानबूझ कर सोद्देश्य प्रकाशित किया गया था.
कुछ प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष निगाहें भी उठी हैं कि अंतिम दौर की सूची में कविताओं के चिट्ठे नहीं हैं – तो यहाँ भी मैं कहना चाहूँगा, कि ब्लॉग पुरस्कारों के लिए कविता, साहित्य इत्यादि के अलग से कुछ श्रेणियाँ रहें तो उत्तम. अन्यथा मुझे अंदेशा है कि सिर्फ कविता, और साहित्य वाले ब्लॉगों पर इस पुरस्कार में तो क्या किसी भी अन्य ब्लॉग पुरस्कार में स्थान बना पाना असंभव तो नहीं मगर मुश्किल जरूर होगा.
इसी बीच, संभवत: श्री संजय बेंगाणी को निर्णयात्मक मापदण्ड हेतु भाषागत शुद्धता को लिए जाने वाली बात पर गुस्सा आया – तो मैं यहाँ स्पष्ट करना चाहूंगा, को वो कोई सोल फ़ैक्टर नहीं था – महज उनमें से एक फ़ैक्टर था. और भाषा और वर्तनी की गलतियाँ किसी ग्रेट पोस्ट या ग्रेट चिट्ठे की महत्ता को कम नहीं करतीं. उन्होंने ये बात भी उठाई कि नए चिट्ठाकारों को पुरस्कृत किया जाना चाहिए. तो आप देखेंगे कि अंतिम दौर की चयन सूची में ढेरों नए चिट्ठाकार भी हैं जिन्होंने इसी वर्ष लिखना शुरू किया. और सरगम नाम का चिट्टा तो दिसम्बर 2007 में ही प्रारंभ हुआ है.
अंत में मैं निर्णायक मण्डल की ओर से आदरणीय श्री दीपक भारतदीप से बिनाशर्त, करबद्ध माफ़ी चाहता हूँ. जाने अनजाने हमने उनका दिल दुखाया है. हमारा उद्देश्य उनको अपमानित करने का नहीं था. हमने उनके तमाम चिट्ठों में से उस चिट्ठे को अंतिम दौर में विचारार्थ चुना, जिसमें हमें लगा कि उन्होंने कुछ सार्थक पोस्टें लिखी हैं, जो उन्हें ख़ासा नागवार गुजरा. इस मामले में अगर वो सोचते हैं कि हमसे भूल हुई है, हममें समझ नहीं रही, तो हम स्वीकारते हैं कि हमसे भूल हुई है और हमसे समझने में ग़लती हुई है. उम्मीद है कि वे हमें माफ़ करेंगे और अपने तेज रफ़्तार के लेखन में सार्थक लेखन कर और तेजी लाएंगे.
मै आपसे सहमत हूँ। मैने इस बार भी आवेदन नही किया था। आयोजक गण कृपया मुझे भी इससे दूर रखे। हो सके तो इस बार भी इसे अपनी इस विवादास्पद सूची से हटा दे।
प्रस्ताव तो अच्छा है. पर साथ-साथ एक बात पर ध्यान देना जरुरी है कि विवाद लाजमी है ये सोच कर हम कंही विवादों को बढावा तो नही दे रहे या इस प्रकार के विवादों को कम किया जा सके इस तरफ़ हमारे प्रयासों मे कोई कमी तो नही है.
निर्णायक मंडल और विजताओं को शुभकामनाएं.
साधु साधु!!
क्या सचमुच पुरस्कार इतने महत्वपूर्ण हैं कि उन्हें मूल्यांकन का मापदंड मान लिया जाए? क्या पुरस्कार मिलना श्रेष्ठता की निशानी है और नहीं मिलने पर निकृष्टता की? मुझे लगता हे कि एक मामूली से मुद्दे को नाहक इतना बढ़ा-चढ़ा कर पेश किया जा रहा है. कुछ लोगों ने पुरस्कार नहीं मिलने पर आर्तनाद् कर रखा है और अपनी छाती पीट पीट कर विलाप कर रहे हैं. बिना वजह निर्णायकों को कोसा जा रहा है. यह सब हिंदी चिट्ठाकारिता के कच्चेपन की निशानी है और इसे प्रोफेशनल होने में हमेशा अवरोध का काम करेगी.
Mamta tv = Mamta Shrivastava
Ravi Ratlami = Ravi Shrivastava
Are they relative?
ऐसे मेल मुझे मिल रहे है। रवि जी स्पष्टीकरण दे ही डाले।
आदरणीय अवधिया जी,
इस बात का मुझे अंदेशा था कि लोग नाहक ही इस तरह की उंगली उठाएंगे. आपको आश्चर्य होगा कि ममता जी का ईमेल तक मेरे पास नहीं था. उन्हें सूचना देने के लिए मैंने चिट्ठाजगत् समूह में पूछा था. और इसे समय सिद्ध करेगा. वैसे मुझे किसी तरह के स्पष्टीकरण की भी आवश्यकता नहीं है, और न रहेगी.
यह महज़ संयोग है कि ममता जी श्रीवास्तव है. मेरे नाम के आगे भी श्रीवास्तव है. अन्यथा उनसे मेरी जानपहचान भी नहीं है. क्या एक ही सरनेम के निर्णायक और विजेता होना गुनाह है?
रवि जी के खुलासे के बाद किसी भि तरह का विलाफ करना व्यर्थ है, मुझे खुशी है कि ममता जी को चयनित किया गया। क्यों कि वाकई इस योग्य थी। 🙂
आपके पोस्ट को संपूर्ण किया रवि जी नें । सारे संशय मिटा दें रहें मिल जुल कर ।
त्रिलोचन : किवदन्ती पुरूष
पुरस्कार के कारण आई समस्या का एक हल यह हो सकता है कि पुरस्कार के लिए वही चिट्ठे चुने जाएं जो अपना चिट्ठे का
————————————— लिंक इस में हिस्सा लेने हेतू भेजें। उन्हे नियम व शर्ते पहले
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बता दी जाएं ताकि बाद में कोई विवाद ना उठे।पहले ही स्पप्ष्ट कर दिया जाए की निर्णायकों का फैसलें सभी को मान्य होगा।इसी शर्त पर हिस्सा लेनें वाला हिस्सा ले सकेगा।जो चिट्ठाकार इस में हिस्सा ना लेना चाहे,उसे इस में शामिल ना किया जाए।ऐसा करने पर समस्या का समाधान काफी हद तक हो जाएगा।
वैसे आप ने जो पुरस्कार द्वारा चिट्ठाकारों को उत्साहित करने का का कार्य किया है वह बहुत तारीफ के काबिल है।
मित्रो, अपने निर्णय में हमारी सौ फीसदी आस्था है। हमने प्रविष्टियों का आकलन पूरी सत्यनिष्ठा से किया है। हमारी नजर में किसी का उपनाम या पृष्ठभूमि कोई मायने नहीं रखती। हम किसी भी आलोचना से निष्प्रभावित हैं क्योंकि अपने निर्णय को लेकर हमें लेशमात्र भी संदेह नहीं है।