परामर्श वह चीज है जिसके द्वारा एक अकेला व्यक्ति हजारों को नवजीवन दे सकता है. इसका बहुत अच्छा उदाहरण है कच्चे धागे चिट्ठा जहां आपसी संबंधों के बारे में परामर्श दिया जाता है.
सामान्य जीवन में हजारों ऐसे क्षेत्र हैं जहां लोगों को परामर्श की जरूरत होती है. विद्यार्थी को पढाई संबंधित मदद की जरूरत पडती है. नौकरी तलाश रहे व्यक्ति को इंटरव्यू के गुर समझने की जरूरत होती है. छुट्टियों में दर्शनीय स्थानों पर जाने की तय्यारी करते समय टिकट से लेकर होटल आरक्षण तक की जानाकारी चाहिये होती है.
अब आम जीवन को देखें. कितने ही लोग हैं जिनको प्रोत्साहन का एक वाक्य मिल जाये तो आसमान छू लें. हम में से कौन है जो इस तरह प्रोत्साहन देने का कार्य नहीं कर सकता!
कुछ दिन पहले मेरे मित्र परमजीत बाली ने एक टिप्पणी में पूछा था कि विषयों के जानकार तो बहुत कम हैं अत: विषयाधारित चिट्ठा कैसे बनाया जाये. तब से मैं इस विषय पर लिखने की सोच रहा था.
आप में से हर व्यक्ति किसी न किसी विषय का जानकार है: पढाई कैसे करें, शेयर कैसे खरीदें, बुढापे के लिये पैसे का सही निवेश कैसे करें, लेख कैसे लिखें, पति/पत्नी/बच्चों से कैसा व्यवहार करें, अच्छे स्वास्थ्य के लिये क्या करें, इलेक्ट्रानिक साधनों की खरीददारी कैसे करें, रसोई में दक्षता कैसे लायें, विवाहजीवन को किस तरह सफल बनाया जाये, कौन सी किताबे पढने लायक हैं. जहां देखिये वहां विषय हैं.
आज जरा सोचें कि किस विषय पर लेख द्वारा, या एक विषयाधारित चिट्ठा चालू करने के द्वारा, आप अन्य लोगों की मदद कर सकते हैं. ऐसा कोई भी व्यक्ति नहीं है जिसके पास दूसरों को देने के लिये कुछ भी नहीं है.
शास्त्री जी, एक कहावत है न कि आपने तो मेरे मुंह की बात ही छीन ली। काश , हम सब आज कुछ ऐसा ही सोच लें। निसंदेह अपने अनुभव बांटने में बेहद सुख है।
शुभकामऩाएं
शास्त्री जी। मैं ने भी तीसरा खंबा आरम्भ करने पर विधिक सलाह देने के लिए एक सहायक चिट्ठा चलाने का विचार किया था। ऐसा एक चिट्ठा भी बनाया। पर इसी बीच तीसरा खंबा से न्यायपालिका बचाओ मुहिम छिड़ गई है। वह पैर पकड़ ले तो इस ओर कुछ किया जाए। कच्चे धागे से परिचय कराने के लिए धन्यवाद।
आपकी बात से सहमत हूं. परोपकार एक कठिन साधना है और हमारे अंदर क्षुद्रता के तत्व इतनी अधिक मात्रा में हैं कि वे ऐसे सद्विचारों को स्थान ही नहीं बनाने देते. चिट्ठाकार इससे बच सकें यही कामना है.
सीख अच्छी लगी.
अठारह पुराणों में व्यास का यही कथन है – परोपकार पुण्य है और पर पीड़न पाप है!