क्यों कुछ चिट्ठे प्रसिद्ध हो जाते हैं?

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चिट्ठाकारी करना हर कोई पसंद करता है. चिट्ठाकार मेहनत भी खूब करते है. लेकिन कई लोगों को समझ में नहीं आता कि उनका चिट्ठा जनप्रिय, पापुलर, या हिट क्यों नहीं हो पाता.

सफलता के लिये जीवन के हर क्षेत्र में न केवल मेहनत की जरूरत है, बल्कि उसके साथ साथ सही रणनीति की भी जरूरत होती है. बिना रणनीति के मेहनत महज ऊर्जा का अपव्यय है. बिना मेहनत के रणनीति सिर्फ हवाई महल है.

अधिकतर चिट्ठाकारों की असफलता का कारण मेहनत की कमी नहीं, रणनीति की कमी है. उदाहरण के लिये, पिछले दो लेखों चिट्ठाकारी: अज्ञान की कीमत! और चिट्ठाकारी: अज्ञान की कीमत — 2 में मैं ने बताया था कि हरेक चिट्ठाकार को कम से कम इंटरनेट एक्सप्लोरर एवं फायरफाक्स में अपने चिट्ठे जो जांच लेना चाहिये. आपका चिट्ठा यदि आधे पाठकों को खंडित दिखता है तो आप कैसे जनप्रिय होंगे??

इसी तरह यदि आप चिट्ठालेखन करते रहते हैं लेकिन यदि चिट्ठाजगत के अन्य लेखकों के साथ कोई संबंध नहीं रखते तो आप जनप्रिय नहीं हो पायेंगे. जरा सोच कर देखिये. आज हिन्दी जो 50 चिट्ठे सबसे अधिक जनप्रिय हैं उनके लेखक अन्य चिट्ठाकारों का लिखा पढते हैं, अपनी राय टिप्पणी द्वारा रखते हैं, एवं अन्य लोगों के साथ एक मैत्री स्थापित करते हैं.

आपकी रणनीति में दूसरी बात यह होनी चाहिये — आपसी संबंध स्थापित करना. यदि आप कभी अन्य चिट्ठों पर विचरण नहीं करते, टिप्पणी नहीं करते, अन्य लोगों के लेखों का हवाला अपने चिट्ठे पर नहीं देते, तो आप स्थाई तौर पर जनप्रिय नहीं हो पायेंगे. आपका चिट्ठा भी उसी रास्ते चलेगा.

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Author: Super_Admin

8 thoughts on “क्यों कुछ चिट्ठे प्रसिद्ध हो जाते हैं?

  1. चिट्ठाकारों में आपसी सम्पर्क और टिप्पणी, राय, मशविरा, यहां तक कि समानकर्मी होने के नाते एक भ्रातृ्त्व भी आवश्यक है। इन मू्ल्यों के बिना किसी भी चिटठाकार का सफल हो पाना संभव नहीं है।

  2. शास्त्री जी, मेरे मन में कुछ ऐसा विचार आ रहा है कि ब्लागरर्स का अपना भी कुछ संगठन होना चाहिए । इन की किसी सैंट्रल प्लेस पर मीटिंगस भी होनी चाहिए जहां हम एक दूसरों के अनुभवों से फायदा ले सकें,कछ सीख सकें. मुझे ऐसा लगता है कि इस काम में आप जैसे, रविरतलामी जी जैसे, घाघूती बासूतीजी, इरफान भाई, युसूफ भाई, ज्ञानदत्त पांडेय जी एवं अन्य मंजे हुए बलागरों को कोई पहल करनी होगी। इस पहलू पर भी कुछ सोचिए, लिखिए….शास्त्री जी, इन विचारों के उमड़ते तूफानों को कोई नियंत्रित करने वाला फोरम चाहिए ही, जहां से वे कुछ पा सकें। निसंदेह इस बलागिंग विधा में है तो गजब का पोटैंशियल……please take the initiative…we have very high hopes from dedicated bloggers like you….we are just back-benchers, sir.
    Good luck…

  3. मेरे विचार में सबसे महत्वपूर्ण बात है कि आपके चिट्ठे पर सामग्री कैसी है। वह बेकार है तो सब बेकार है, वह अच्छी है तब बाकी बातों का महत्व नहीं। हां और सब भी होंगी तो बढ़िया रहेगा।

  4. आप ने हमेशा हमारे सच को सराह कर हमे प्रोत्साहित किया है और हमे बलों का उलेख आप के ब्लोग पर कई बार हुआ है । क्या आप हमारी नयी पोस्ट पर अपने विचार देगे । क्या सारथी वाकई एक तकनीक के जानकार ब्लॉगर का ब्लोग नहीं हैं । अगर है तो ये पुरूस्कार की प्रतिस्पर्धा मे क्यों शामिल किया गया । आप अग्रज है इसलिये आप को ये कमेन्ट देने की ज़ुरत हमने की हैं । हमारा लिंक है http://maeriawaaj.blogspot.com/2008/01/blog-post_8277.html
    अगर हम सब ये इंतज़ार करेगे क्योई और गलत को सही करेगा तो फिर गीता , बाइबल , कुरान और गुरु ग्रंथ साहिब मे जो भी लिखा है उसको अमल मे लाने के लिये दुबारा इन ग्रंथो को लिकने वालो को ही जन्म लेना होगा ।
    आप तो कम से कम सही का साथ दे

  5. सही सही बातें हमेशा की तरह। सबसे महत्वपूर्ण सामग्री है। वह नहीं होगी तो संबंध और रिश्तेदारी भी किसी काम की नहीं।

  6. शास्त्री जी,
    बिना लेखक की बात से सहमत हुए अपनी टिप्पणी देना या तो प्रासंगिक चाटुकारिता होगी, या व्यर्थ आलोचना।

    अतः मेरा मानना है कि टिप्पणी करना वो भी सिर्फ इसलिए कि मेरा ब्लॉग लोकप्रिय हो जाए – निरर्थक है।

    हाँ औअर कोई रचनात्मक तरीका हो परस्पर संबंध बनाने का तो बताएं। इंतजार रहेगा।

    संजय गुलाटी मुसाफिर

  7. आपका लेख सफलता की बिल्कुल सही राह बता रहा है । जहाँ तक हो सकता है इन सब बातों का ध्यान भी रखती हूँ । परन्तु कई कारणों से तकनीकी काम नहीं हो पाते । फिर भी कोशिश यही रहती है कि जिस ब्लॉग को पाठकों के सामने परोस रही हूँ वह अच्छे से अच्छा हो ।
    डॉ चोपड़ा , ब्लॉगर्स के कई मिलन रखे जा चुकें हैं । हममें से बहुत एक दूसरे से मेल या जी टॉल्क पर बातचीत करते हैं । यदि आप अपना जी मेल आइ डी देंगे तो बहुत से लोग आपके भी मित्र बन जाएँगे ।
    मुसाफिर जी, यदि टिप्पणी करने का मन ना हो तो कोई बात नहीं परन्तु टिप्पणी से ही हमें पता चलता है कि हमारे लेखन में क्या गल्ती रह गई है ।
    घुघूती बासूती

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