कई विशालकाय गुंबदों के अंदर, एवं गोलाकार या अंडाकार गलियारों में एक विचित्र बात देखी गई है: यदि इनके किसी एक स्थान पर फुसफुसा कर बात की जाये तो इनके अंदर अन्य स्थान पर वह उतने ही सफाई से सुनाई देता है जैसे कि कोई आप के कान में फुसफुसा रहा हो. सामान्य आवाज में बोलने की जरूरत नहीं है.
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आज दुनियां में इस तरह के कम से कम बीस गुंबद या गलियारे है जिन में अधिकतर यूरोप में है. 1400 से 1800 ईस्वी में जब यूरोप धनधान्य से भरपूर था तब कई जगह इस तरह के संगीत-भवन एवं कक्ष बनाये गये थें जहा हर जगत गायकों की आवाज एक समान सुनाई देती थी. इनकी दीवारें इतनी समतल होती थीं की फुसफुसाने की आवाज भी लुप्त नहीं होती थी. अत: इनको “व्हिस्परिंग गेलरी” भी कहा जाता था.
भारत में बीजापुर के गोल गंबद के चारों ओर बनी गेलरी में भी यह प्रभाव देखा जा सकता है. ध्वनि के मामले में प्राचीन भारत मैं और भी अजूबे थे.
सारथी का नया रूप पूरी तरह से सूचनात्मक हो कर सामने आ रहा है। वैसे ही जैसे १९७५ में देश में आपातकाल की घोषणा के बाद विचार पत्रिकाओं का हाल हो गया था। आप के पाठकआप के विचार प्रवाह से भी निरन्तर संपर्क में रहना चाहते हैं। आप के इसी चिट्ठे पर नित्य एक पोस्ट वैचारिक भी होना चाहिए। अभी तो ऐसा लग रहा है कि आप लेखक से केवल संपादक हो गए हैं।
अगली बार ऐसी जगहों पर फुसफुसाने के बजाए चिल्लाकर बोलूंगा।
जानकारी के लिये धन्यवाद। ऐसा ही कुछ अल्मोड़ा के एक होटल (होलीडे इन शायद) को जाने वाली सीढ़ियों के रास्ते में होता है, जहाँ आप ताली बजाते हैं या कुछ आवाज करते हैं तो ढोल बजने की आवाज सुन सकते हैं।
achhi jaankaari..shukriya
ऐसे ही दिवारों के कान मैंने शेरशाह का मकबरा में देखा था जो सासाराम(बिहार) में है.. अब शायद उसके अंदर जाना मना हो गया है..
द्विवेदी जी का कहना सही प्रतीत हो रहा है।
अच्छा लगा जान कर।
मेरी एक पुरानी गज़ल के दो शेर यूं हैं :
भरोसा अपने बाजू पर किया कर
परायों के सहारे मत जिया कर
अगर दीवार हो नज़दीक तेरे
इशारों में वहां बातें किया कर.
मुझे अनेक बार हैदराबद स्थित गोलकुंडा किला जाने का अवसर मिला है. वहां यदि मुख्य द्वार पर ज़रा सी भी आहट हो ( ताली तो छोडिये, पिन गिरने की आवाज़ हो) तो वहां से करीब 250 मीटर दूर ,किले में ही एक अन्य ऊंचे स्थान पर आवाज़ साफ साफ सुनायी पडती है. बिल्कुल अज़ूबा!!!
Kindly explain the science behind this phenomenon 1