आजकल कई युवा मित्रों की आदत सी बन गई है डायरी लिखने की. लिखते भी क्या है, दिनभर की सारी बातों को लापरवाही से लिख देते है. वे यह नहीं समझते कि ऐसा करना अपने जीवन में टाईम बम लगाने के सामान है, ऐसा बम जो एक बार फट कर खतम नहीं हो जाता बल्कि फटना चालू होता है तो लडी के समान जीवन-माला के अंत तक चलता ही रहता है.
मानव जीवन एक सरल अनुभव है. लेकिन लापरवाही इसे काफी जटिल बना सकती है. इतना जटिल कि उस जाल में उलझते चले जायें. डायरी आपके लिये यह जंजाल बन सकती है.
युवा जीवन में हर कोई तमाम तरह के अनुभवों एवं अनुभूतियों से होकर गुजरता है. वासनाओं एवं कामनाओं पर नियंत्रण सीखा ही जा रहा होता है. ऐसी अवस्था में हर युवा/युवती कई तरह की बातें सोचता है, महसूस करता है. कई डायरीलेखक इतने बेवकूफ होते हैं कि अपने मानसिक भार एवं तनाव को कम करने के लिये ये सब लिख देते हैं.
डायरियां भरती जाती हैं. पेटी में स्थान पाते जाते है. दस साल के बाद शादी होती है. पति या पत्नी शक्की किस्म का निकलता है. अचानक शक्की पति अपने हाथ पडी पत्नी की डायरी में पढता है, “आज दीपक ने मुझे चूमा तो मेरा मेरा रोम रोम पुलकित हो गया”. इस वाक्य के आगेपीछे दीपक के बारे में कुछ नहीं है. अब पति को समझाओ कि यह दीपक तो आपका भांजा है जो आपकी गोदी में पला था. पति क्यों मानेगा. वह तो आपको पीटने के लिये संटी तलाश रहा था, आपने उसके हाथ गदा पकडा दी.
पत्नी शक्की निकलती है. अचानक पति की पुरानी डायरी में पढती है, “सारिका के साथ अपने अनुभव को मैं कभी नहीं भूल सकता”. अब आप समझाईये कि आप हिन्दी की पुरानी पत्रिका सारिका की बात कर रहे हैं. वह क्यों मानेगी. जो हथगोला तलाश रही थी उसे आपने एटम बम पकडा दिया है.
बेवकूफी न करें. डायरी न लिखें. मुझ जैसे काऊसलर इस तरह ही समस्याओं को सुलझाते सुलझाते अब अपना मानसिक संतुलन खोने की स्थिति में आ चुके हैं. [Photograph by wiccked]
डायरी का महत्व है कुछ बातें जो भूलने लायक हों उन को याद रखने के लिए। पर ऐसी बातें जो आप के ही जीवन दुष्प्रभावित कर सकती हों उन्हें तो ङायरी में कभी स्थान मिलना ही नहीं चाहिए। कभी न सोचें कि आप की डायरी कभी कोई देखेगा ही नहीं।
शास्त्री जी आप ने यह भी एक रोचक किंतु गंभीर मुद्दा उठाया ,जिसमे एक अभिभावक की सूझ/पीड़ा है .निश्चय ही आप द्वारा उद्धरित प्रकृति की बातों को निजी डायरी में नही लिखनी चाहिए ,डायरी स्वान्तः सुखाय तो हो किंतु उसका एक सार्वजनिक हित का पक्ष भी हो तो बेहतर .ऐसी डायरियाँ आगे चलकर जीवन के सिंहावलोकन या आत्मकथाओं के लेखन मे बड़ी मददगार हो सकती हैं -युवा रचनाकार कृपया ध्यान दें- क्योंकि उम्र के उस पड़ाव पर जब सार्थक और सफल जीवन जीने के बाद लोग आत्म कथा लेखन की सोचते हैतो याददाश्तजवाब दे जाती है -कई घटनाएं ,तिथियाँ जिनका सार्वजनिक महत्त्व होता है भूल सी जाती हैं -अस्तु ,डायरी लिखें मगर उत्तरदायित्व के साथ .
मगर , अंतर्जाल की बहुप्रचलित हो चली डायरियों के बारे मे आप की क्या राय है शास्त्री जी ,जो प्रकाशकों सम्पादकों द्वारा की जा रही निरंतर अवहेलना और व्यवस्था के विरुद्ध एक स्वाभाविक प्रतिरोध प्रतिक्रिया के रूप मे मुखरित हो रही हैं !
रीयली?! यह बेवकूफी साल दर साल कर चुके हैं। अब ब्लॉगिंग के कारण वह बन्द हो गया है। समय नहीं निकलता।
सच ? क्या ये वाकई बेवकूफी है, आपने जिन सब बातों का जिक्र किया है वो सब मेरी पुरानी dairiyon मी लिखा हुआ है, उन्हें पढता हूँ कभी तो गुजरे वक्त में पहुँच जाता हूँ, फ़िर से उन पलों को जी लेता हूँ, हाँ handwriting ख़राब होने के कारन उन्हें मेरे अलावा कोई पढ़ और समझ नही पता, ये बात मेरे फायदे में है
सारथी जी इस बात पर मैं आपसे सहमत हूं। क्योंकी भावुकता में कई बार अनावश्यक और नितान्त व्यक्तिगत अनुभव भी दर्ज कर लिये जाते है। जिन्हें कभी दोबारा पढने पर अहसास होता है कि ये क्या लिखा ? मैंने खुद ने कभी डायरी नहीं लिखी ।
आपके लेख से सहमत हूँ कि डायरी बेवकूफ लिखते है अपनी आत्मकथा लिखना डायरी लिखना याने अपने गले मे फांसी लगाना है बहुत बढ़िया
कॉलेज के दिनों में कई बार सोच कि डायरी लिखूं पर इक्का दुक्का प्रयास से आगे नही बढ़ पाया, इसका मूल कारण तब यह था कि उस समय इतनी ईमानदारी नही थी कि बातों को जस का तस डायरी में दर्ज कर पाऊं।
अब शायद पहले से ज्यादा ईमानदारी से स्वीकारोक्ति कर सकने लगा हूं।
भावावेश में इंसान बहुत कुछ सोचता है और उसे पन्नों पर उतार लेता है।
बाद में पछताने से अच्छा है कि चिडिया को खेत चुगने का मौका ही ना दें
सौ फीसद सहमत हूं शास्त्रीजी की डायरी बेवकूफ लिखते हैं (संशोधन के साथ पढ़ें-डायरी लिखना बेवकूफी है)। इनसे कुछ सबक नहीं सीखा जा सकता बल्कि कई सालों बाद इन्हें पढ़कर खुद ही बेवकूफी का अहसास होता होगा। ( मैने कभी डायरी नहीं लिखी )
और हां, जो उदाहरण आपने दिये हैं दरअसल वैसे सिर्फ समझाने के लिए ही आपने लिखे हैं। दरअसल डायरी में दर्ज तो उसी रूप मे होते हैं जिस रूप में उन्हें पढ़कर समझा जा रहा होता है। अर्थात आप जीवन की बेवकूफियों को ही अनुभव का नाम देकर दर्ज कर रहे होते हैं और अपने लिए मुसीबतों को न्योता दे रहे है।
बढ़िया बात उठाई आपने ।
सही कह रहे हैं आप. मैं भी अपनी डायरी के पन्ने कई बार लिख के फाड़ चुका हूँ. वैसे डायरी से अल्पकालीन राहत मिलती है इस बात में कोई गुरेज़ नहीं है.बाकी जो पकड़ा गया वह चोर !
शास्त्री जी, यह क्या… इस पोस्ट ने तो हमें महा बेवकूफ घोषित कर दिया. 🙁 हम तो आजतक यह बेवकूफी करते आ रहे हैं वह भी ईमानदारी के साथ…लेकिन अंतर्जाल पर नहीं !!!