पिछले दिनों मैं ने कई बार स्त्रियों के विरुद्ध होने वाले अपराधों की चर्चा की थी एवं इस बात पर जोर दिया था कि पुरुष की वासना को भडकाने की आजादी एवं पुरुष की वासानात्मक नजरों से सुरक्षा दोनों की मांग एक ही मूँह से नहीं आनी चाहिये. यह लेख इसी विषय की एक कडी है.
पिछले 200 साल के मनौवैज्ञानिक अनुसंधानों से स्पष्ट हुआ है कि अपने से विपरीत व्यक्ति के प्रति किसी भी व्यक्ति का व्यवहार इस बात पर निर्भर करता है कि जन्म से उसे कैसी तालीम दी गई है, विपरीत लिंगियों के प्रति उसके मांबाप का क्या नजरिया रहा है, एवं मांबाप का आपसी संबंध कैसा रहा है.
उदाहरण के लिये, यदि उसे बचपन से यदि यह तालीम दी गई है कि उसके विपरीत लिंग के लोग बेकार, निकम्मे एवं सिर्फ विरोध एवं शोषण के पात्र हैं तो वह व्यक्ति बडे होने पर अपने से विपरीत लिंग के व्यक्तियों को हमेशा सिर्फ उसी शोषण के नजरिये से ही देखेगा, वह हमेशा उनका विरोध ही करेगा. बचपन की तालीम के कारण यह स्वभाव उसके रोम रोम में इस तरह बस जाता है कि वह इसे चाह कर भी बदल नहीं सकता. हां चाहने की बात काफी दूर है, क्योंकि अपनी तालीम के कारण वह इन बातों को अकाट्य तथ्य के रूप में देखता है.
कोई व्यक्ति समलैंगिक निकल जाता है, स्त्री या पुरुष विरोधी निकलता है, या अपने से विपरीत लिंग के व्यक्ति को सदा गलत नजरिये से देखता है तो इस पर उसके घर की तालीम एवं मांबाप के नजरिये का अमिट एवं शाश्वत प्रभाव पडता है.
यदि एक ही स्थिति में एक व्यक्ति स्त्री को भोग्या मानता है तथा दूसरा व्यक्ति उसको आदर का पत्र देवी मानता है तो उस सोच का मूल कारण भी उसकी घरू तालीम है.
यदि समाज में स्त्रियों के विरुद्ध होने वाले अपराधों पर नियंत्रण करना है तो हमारे घरों में बच्चों को दी जाने वाली तालीम में आमूल परिवर्तन करना होगा. [शेष आगे के लेखों में]
[Pictures By RandomlyRoaming, philippe leroyer]
अभी तो इस आलेख और शीर्षक का तालमेल समझ में नहीं आ रहा है, शायद आगे के लेखों से बात और स्पष्ट हो।
घर पर दी जाने वाली तालीम के विषय में मेरे अनुभव कहते हैं कि यदि बच्चा लड़का तो उसने उसके पिता को उसकी माँ से जैसा व्यवहार (प्रेम, सम्मान, अपमान, समानता, मारपीट या जो भी हो) करते देखा है तो संभवत: वैसा ही व्यवहार वह लगभग हर स्त्री से करेगा। यदि कोई बच्ची माँ को पिता से अपमानित होते या पिटते देखे तो उसे दुनिया के सारे पुरुष ही अत्याचारी लगेंगे। हालाँकि हमेशा ऐसा ही हो यह ज़रूरी नहीं है।
बच्चो को स्त्री स्म्मान के बारे में शिक्षा देने का कर्तव्य उसकी माँ का है.
as far as i know..the modern research has proved….this temperament is GENE RELATED….
AND SANJAY JI bachhey ko sanskaar mataa pita dono milkar detey hain….
बच्चो को स्त्री स्म्मान के बारे में शिक्षा देने का कर्तव्य उसकी माँ का है.
kyon sanjay peeta kya sanskaar vihin hota hae jo putr ko nahin samjhaa saktaa
समलैंगिकता मानव व्यवहार की अब तक की अबूझ पहेलियों मे से है -पशु जगत मे ऐसे व्यवहार अन्यत्र नही दीखते .बंदरों मे दबंग नर बन्दर ऐसा व्यवहार अवश्य प्रदर्शित करता है किंतु उसके पीछे उसका समूह पर कारगर नियंत्रण का भाव होता है या फिर छोटे बन्दर ,प्रायः नर एक दूसरे के साथ ऐसा व्यवहार केवल खेल खेल मे अन्वेषी प्रवृत्ति के कारण करते हैं ठीक वैस ही छोटे मानव – बच्चे महज
एक्स्प्लोरैट्री प्रवृत्ति के चलते ‘तुम मुझे अपना दिखाओ तब मैं भी तुम्हे अपना दिखाउंगा जैसा व्यवहार प्रदर्शित करते हैं ‘लेकिन इसके बाद मामला गंभीर हो जाता है ,इमोशनल लेवल पर समान सेक्स के बीच काम सम्बन्ध के पीछे मनोविज्ञान या जैव विकास की कौन सी गुत्थी काम करती है ,मेरी समझ के परे है .और यह प्रवृत्ति तो नर नारी दोनों मे है .
Could anyone translate this article into English for me or let me know the general idea of the article? I would like to know what type of article my photography is being used with.
आप ने मां बाप द्वारा दी जाने वाली अथवा सहज रुप से प्राप्त तालीम का उल्लेख किया है उसे मैं संस्कार कहना चाहूँगा। ये संस्कार ही शब्द ही आगे चल कर संस्कृति शब्द का निर्माण करता है।
संस्कारो का महत्व है। वे बच्चों के बड़े होने में, महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। पर संलैंगिक होना का मुख्य कारण जीन है। प्रकृति ने उन्हे ऐसा बनाया है। यह ईश्वर की देन है – संस्कारो कि नहीं।
जहां तक मैं समझता हूं संस्कार न केवल मां देती है, न केवल पिता, पर सारा समाज देता है जहां पर बच्चे का लालन पालन होता है। इसमें पूरा परिवार, मित्र मंडली और समाज का महत्वपूर्ण रोल होता है।
हमारा मस्तिक्ष एक तरह का कंप्यूटर है जिसकी प्रोग्रामिंग माता-पिता, मित्र-गण, समाज सब मिल करते हैं।
हां, इसमें जीन का भी एक महत्व है। जो नकारा नहीं जा सकता।
They say samskara is influenced by previous births also,may be they are pointing towards genetic predispositions !
मैं आपके इस लेख से असहमत हूँ। यह कहना असत्य है कि समलैंगिकता पालन-पोषण का परिणाम है। वैज्ञानिक समुदाय में भी इस प्रकार का कोई सिद्धान्त नहीं है। और यदि यह सत्य होता तो फिर एक ही माँ-बाप द्वारा पले एक ही घर में ऐसा क्यों देखने को मिलता कि एक सदस्य समलैंगिक है और शेष सदस्य इतरलिंगी हैं? ऐसा कहना असत्य होगा कि किसी व्यक्ति की भावनात्मक तथा लैंगिक कामनाएँ विपरीत या फिर सम लिंग के प्रति इस लिए पैदा होती हैं क्योंकि उसका पालन-पोषण किसी विशेष तरीक़े से किया गया है।
समलैंगिक एक मजबूरी का नाम है जब किसी इंसान को विपरीत सेक्स नही मिल पाता है,तब समलैंगिक एक आवश्कता बन जाती है
जो ग़लत नही है
agar koi samlingi hai to uske lia oh akele jemmewar nahi hai ya to uski parwaris galat dhang es hoi hai ya use sex ki galat jankari mili hai ya uske sath kam ummer me sex kia hota hai
sir you say is right lekin si apne bahut kam likha hai sir mujhe bhi bataiye ki mai bhi apni soch tum logo tak kaise phuchau!
your fri
rajender
this is very unfortunate they(gay)must change there aptetude
mere khyaal se ye sabhi galt e hai kyonki ye sabhi hormone problime hoti hai kyonki jab kisi ladkaa ka interest ager ladko me hai to ye problem hormone ki he hai naa ki sanskaro ki or samaaj ki
sach me ye theek hai ki bachpan me kuch galat ho gya ho to hi aisa hota hai .
Hm ladkiyo me intrest rakhte hai magar wo wo ladko k mutabik kam hota hai iski wajah hai ladko k sath sex krte wakt khud ko ladki samajh lena . Aur wo ehsaas pane ki kosis karna jo ek ladka ladki ko apne ling dwara deta hai aur wo mahsoos karna jo ek ladki apne ander aate jate ling ko mahsoos karti hai yahi maksad hota hai ek samlangik ladke ka.