चिट्ठे से आय हो सकती है लेकिन लाटरी निकल आने का दिवास्वप्न न देखें. अपने चिट्ठे पर आप क्लिक करके आय प्राप्त की भी न सोचें क्योंकि सारे विज्ञापनदाता इस बात पर नजर रखते हैं एवं तुरंत ऐसे लोगों का अनुबंध खतम कर देते हैं.
अपने चिट्ठे के विज्ञापनों पर अपने आप क्लिक करने का तिकडम सबसे पहले लगाया था नाईजीरिया वालों ने. उन लोगों ने सुबह से शाम तक दस हजारों क्लिक करने लिये बेरोजगारों को भाडे पर लेकर लाखों डालर बनाये. यह लगभग पांच साल पहले की बात है. बहुत जल्दी ही यह धोखा पकडा गया एवं गूगल सहित सारे विज्ञापनदाताओं ने ऐसे तंत्र (सॉफ्टवेयर) विकसित कर लिये जो इस तरह की धोखाधडी को आसानी से पकड लेते है. अत: ईमानदारी की आधी को छोड धोखाधडी की पूरी के पीछे जो जायगा उसके पास ना आधी न पूरी बचेगी.
अब सवाल यह है कि हिन्दी में विज्ञापनों से आय इतनी कम क्यों होती है एवं उसे बढाने के लिये क्या करना होगा. असल में विज्ञापन का लक्ष्य किसी भी व्यापार के लिये ग्राहक जुटाना होता है. ग्राहक जितने अधिक जुटेंगे, व्यापार उतना ही फायदेमंद होगा एवं विज्ञापन पर उतना ही अधिक पैसा खर्च किया जा सकेगा. अंग्रेजी जैसी भाषा में ग्राहकों की कोई कमी नहीं है. अंतर्जाल के अधिसंख्यक लोग या तो अंग्रेजी का उपयोग करते हैं या पश्चिमी देशों में बसते है जहां जाल-व्यापार की संभावनायें हिन्दी की तुलना में करोडों गुना अधिक है. अत: पश्चिमी जगत में जालविज्ञापन से जो आय होती है उसके आधार पर हिन्दी को न देखें.
दूसरी बात, हिन्दुस्तान में ही अंग्रेजी जालविज्ञापन से जो आय होती है उसकी तुलना हिन्दी के साथ नहीं की जा सकती क्योंकि हिन्दी में कुल मिला कर 1500 चिट्ठे एवं 5000 जालस्थल एवं सिर्फ उसके अनुपात में पाठक हैं. इन पाठकों की आर्थिक स्थिति भी अंग्रेजी पाठकों के तुल्य नहीं है. इसके विपरीत, अंग्रेजी में भारतीय जालस्थलों की संख्या अब करोडों को छू रही है. उनके भारतीय एवं विदेशी पाठकों की संख्या भी प्रतिदिन करोडों में है. एक छोटा सा उदाहरण ले लेते हैं. मेरे सबसे जनप्रिय अंग्रेजी चिट्ठे पर जनवरी में लगभग 200,000 हिट्स मिले जिन में से लगभग 98% विदेशी पाठकों के थे. 10 जीबी बेंडविड्थ पार हो गया. स्वाभाविक है कि ऐसी बडी अंग्रेजी पाठक-संख्या के कारण भारतीयों को अंग्रेजी विज्ञापनों पर क्लिक अधिक मिलेंगे. अत: कोई भी हिन्दी चिट्ठाकार हिन्दी एवं अंग्रेजी के विज्ञापन-सक्षमता एवं आय-सक्षमता की तुलना न करे.
एक बात और: विज्ञापनों को किलका कर उसमें प्रदर्शित सामग्री खरीदने के लिए ग्राहक को आर्थिक रूप सक्षम होना चाहिये. फिलहाल अंग्रेजी पाठकों की तुलना में हिन्दी पाठकों की आर्थिक सक्षमता एकहजारवां भी नहीं है. अपसोस है कि आज की पढीलिखी, आर्थिक रूप से सक्षम पीढी को हम लोग हिन्दी जाल की ओर नहीं ला पाये हैं.
इतना ही नहीं जाल पर लगभग सारा व्यापार क्रेडिट कार्ड द्वारा या इलेक्ट्रानिक तरीके से होता है. हिन्दी जाल के पाठक इस मामले में भी पीछे है — आप ही सोचिये कि आप में से कितने लोग आज क्रेडिट कार्ड से खरीददारी करते हैं. अत: कुल मिला कर कहा जाये तो हिन्दी में जाल द्वारा करोडपति बनने का सपना न देखें. दूसरी ओर यदि आप यथार्थवादी हैं तो एक सामान्य आय के लिये अपने चिट्ठे को तय्यार कर सकते है, जिसे हम देखेंगे अगले लेखों में. [Photograph By suzyhomemaker]
चिट्ठे से आय की तय्यारी 001
चिट्ठे से आय की तय्यारी 002
फरवरी 8 से पढिये मेरी अगली लेखन परंपरा: मेरी पसंद के चिट्ठे!! मित्रों के बेहद अनुरोध पर मैं उन चिट्ठों के बारे में लिखने जा रहा हूँ जिनको मैं नियमित रूप से पढता हूँ !! |
आपने चिट्ठे पर विदेशी हिन्दी पाठकों के अनवरत प्रवाह प्राप्त करने के लिये उसे आज ही हिन्दी चिट्ठों की अंग्रेजी दिग्दर्शिका चिट्ठालोक पर पंजीकृत करें. मेरे मुख्य चिट्टा सारथी एवं अन्य चिट्ठे तरंगें एवं इंडियन फोटोस पर भी पधारें. चिट्ठाजगत पर सम्बन्धित: विश्लेषण, आलोचना, सहीगलत, निरीक्षण, परीक्षण, सत्य-असत्य, विमर्श, हिन्दी, हिन्दुस्तान, भारत, शास्त्री, शास्त्री-फिलिप, सारथी, वीडियो, मुफ्त-वीडियो, ऑडियो, मुफ्त-आडियो, हिन्दी-पॉडकास्ट, पाडकास्ट, analysis, critique, assessment, evaluation, morality, right-wrong, ethics, hindi, india, free, hindi-video, hindi-audio, hindi-podcast, podcast, Shastri, Shastri-Philip, JC-Philip
हम भविष्य की तैयारी में लगे हैं.
अजी मैं तो क्रेडिट कार्ड से खरीददारी करता हूं हां मगर ये भी पता है कि अधिकांश हिंदी भाषी भारतीय ये नहीं करते हैं..
मगर मैं आशावान हूं..
सुंदर लेख। अच्छी जानकारी।
-प्रभाकरगोपालपुरिया
http://nanihal.blogspot.com
ज्ञानवर्धन के लिए शुक्रिया!
आपने विषय का अच्छा प्रतिपादन किया है ,एक मूलभूत बात यह है कि हम सभी बहुत से काम अपनी सामाजिक प्रतिबद्धता के कारण भी करते हैं ,मेरी आप सभी श्रेष्ठ ,सुधी जनों से आग्रहपूर्वक निवेदन है कि हिन्दी ब्लागिंग जो कि अभी सद्य-प्रसूता ही है को ऐसे व्यावसायिक नजरिये से न लेकर इसके स्वयमस्फूर्त स्वरूप को विकसित होने देना चाहिए – इसका व्यावसायिक प्रलोभनों के रूप मे महिमामंडन बंद होना चाहिए .दरअसल हम नए ब्लागरों को सब्ज बाग़ दिखा रहे हैं और उनका मानस प्रदूषण भी कर रहे हैं -यह शायद नैतिक मापदंड पर भी उचित नही है .
parampara achhi shuru kar rahe hain aap…aasha hai isse kai logo ko protsahan milega