सारथी के मित्रों को नमस्कार! शारीरिक अस्वस्थता एवं तकनीकी कारणों से सारथी अनियमित हो गया था, लेकिन अब पुन: वापस आ गया है. मैं इन दिनों ग्वालियर (म प्र) में हूँ एवं अगले 2 हफ्ते ग्वालियर के आसपास के एतिहसिक स्थानों के छायाचित्र खीचने का इरादा है.
आम जनता ग्वालियर को सिर्फ डाकुओं एवं ग्वालियर सूटिंग के नाम से जानती है, लेकिन ग्वालियर भारत के एतिहासिक धरोहरों की एक विशाल खान है — ऐसी खान जो कद्रदानों के अभाव में मिटती जा रही है.
इस खोज में हमारा एक महत्वपूर्ण पडाव होगा “ककनमठ”. ग्वालियर से लगभग 80 किलोमीटर दूर स्थित यह स्थान किसी जमाने में एक अतिविशाल मठ हुआ करता था. सारे भवन पत्थर के बने हैं. लगभग 1000 से 1200 साल पुराने इस धरोहर को ऐसा भुला दिया गया है कि मेरे मित्र एवं गाईडों (प्रोफेसर महेश प्रकाश एवं प्रोफेसर पी के शर्मा, दोनों ही विश्वविद्यालयीन भौतिकी अध्यापन में मेरे साथी हैं) का अनुमान है कि ककनमठ तक पहुंचने के लिये हम को लगभग अंतिम दो किलोमीटर पैदल चलना होगा. आज से दस साल पहले जिस एतिहासिक स्थान तक चौपहिया गाडी से जा सकते थे, आज उसकी यह स्थिति होने को आ रही है.
छायाचित्र: ग्वालियर किले के सासबहू (बडे सहस्त्रबाहू) मंदिर को चारों ओर अलंकृत करती पत्थर की खुदी मूर्तियों में से एक. 1000 साल के धूपपानी के बावजूद इन 12 इंच के करीब ऊची मुर्तियों पर की गई खुदाई स्पष्ट है. (माला पर एक नजर डालें)
यदि हम अपनी संस्कृतिक धरोहरों को इतनी तेजी से भूल जायेंगे तो अपनी संस्कृति को भी जल्दी ही भूल जायेंगे. परिणाम यह होगा कि अंग्रेजीआधारित, संस्काररहित, नैतिकताहीन, वर्तमान पश्चिमी संस्कृति पुन: हम को दास बना लेगी. ईश्वर करे कि सारथी के इस एतिहासिक अभियान की देखादेखी आप लोग भी अपने शहर के आसपास के एतिहसिक स्थानों पर द्स्तावेज तय्यार करके उनको अगली पीढियों के लिये सुरक्षित कर सकें.
अच्छा तो शास्त्री जी आप की तबीयत थोड़ी नासाज़ चल रही थी…..बहुत खुशी हुई आप वापिस लौट कर आयेहैं। इन दिनों बहुत बार आप के बारे में सोचा…..आज सुबह ही सोच रहा था कि आज तो ई-मेल भेज कर कुशल-क्षेम ज़रूर ही पूछूंगा। देखिए, शास्त्री जी, आप के कुछ दिन ही घर से बाहर रहने से इधर सब कुछ कितना बदल गया है….देखिए तो आप के हिंदी ब्लागरी के बच्चों ने कैसा ऊधम मचा रखा है….खैर, आप सब कुछ देख चुके होंगे। अब आप आ गये हैं तो कोई चिंता नहीं, आप सब को टाइट कर लेंगे। दूसरी बात यह भी थी कि कुछ दिन पहले ज्ञानदत्त पांडेय जी ने भी यह घोषणा कर दी थी कि अब वे नियमित न लिख पाया करेंगे।
खैर, आप को वापिस देख कर बहुत अच्छा लगा। और हां, यह जो आप धरोहर संजोने का काम कर रहे हैं, बहुत ही बढिया लगा। हमें पंद्रह दिन बाद इन सब को देखने की ललक लगी रहेगी।
अच्छा, शास्त्री जी,सेहत का ध्यान रखा करें।
टिप्पणी कुछ ज़्यादा ही लंबी नहीं हो गई क्या ?
भित्ति शिल्प चित्र मे कौन है -क्या शिव और पार्वती ?
क्या शिव और पार्वती भित्ति शिल्प चित्र मे ?
शास्त्रीजी,
आप शीघ्रता से स्वास्थ्यलाभ करें ऐसी कामना करता हूँ । जब १९९९ में ग्वालियर गया था तो सास-बहू मंदिर तो गया था लेकिन ककनमठ के बारे में किसी ने नहीं बताया । आपको जानकारी देने के लिये धन्यवाद, अगले चक्कर में इत्मीनान से जाकर कनकमठ घूमूँगा ।
साभार,
नेट पर आपकी उपस्थिति की विरलता से एक रिक्तता लग रही थी. अब वह दूर होगी? आप ग्वालियर मैं है, मैं भी भोपाल -सीहोर मैं हूँ, कल शाम तक कोटा पहुँच रहा हूँ. ग्वालियर से लोटते समय कोटा होकर निकलना हो तो मैं मिलने का उत्सुक हूँ, अवसर दें. मैं ट्रेन पर भी मिलने आ सकूँगा. पुरातात्विक महत्व के स्थानों का संरक्षण ठीक से नहीं हो रहा है. इसे बार बार लिखने की ज़रूरत है, तभी इस ओर ध्यान जा सकता है.
main abhi cafe me hun aur maine ise save kar liya hai aur ghar jakar padhunaga.. ab choonki maine aapke is post ko abhi padha nahi hai so bina padhe hi comment likh raha hun..
aapake achchhe swasth ki kaamna karta hun..
शास्त्री जी,
आप के स्वास्थ्य के बारे में पढकर अच्छा नहीं लगा, क्योंकि आपका चिट्ठा संसार से कुछ समय भी अलग होना मन को कचोटता है,शीघ्र स्वस्थ हों ऐसी मेरी कामना है,
एक बात क्या आप ये सब श्रंखलाएं मेरे एक बण्द पड़े चिट्ठे मातृभूमि पर शुरू कर सकते हैं इसकी सदस्याता मैं सबके लिये शुरू करना चाहता हूँ
पता है
http://matrbhumi.blogspot.com/
स्वास्थ्य कैसा है अब? चलिये कुछ हट कर जानने और पढने को मिला।
तभी हम सोचें कि आप किधर गायब हो!!
चलिए आप लौटे तो सही यही काफी है!!
कामना है कि जल्द ही पूर्ण स्वास्थलाभ करें!
सबसे पहले तो आपके स्वास्थ्य के लिये मेरी और से शुभकामनाएं ईश्वर करें आप शीघ्र पूर्ण स्वस्थ हो जाएं । ककन मठ की याद दिला कर आपने मेरी शादीकी याद दिला दी जब मेरी शादी हुई तो पापा मुरैना में पदस्थ थे और वहीं से शादी हुई थी शादीके बाद में पत्नी के साथ ककन मठ गया था अद्भुत के अलावाा और क्या लिख सकता हूं मैं वहां के लिये । पूरा मन्दिर केवल पत्थरों को एक दूसरे पर अनगढ़ तरीके से जमा कर बनाया गया ऐसा लगता है कि अब गिरा के तब गिरा । आपने मंदिर का बाहर से कोई चित्र नहीं दिया देखने लायक तो वो बाहर से है । उसका अनूठा शिल्प संभवत- पूरे विश्व में नहीं होगा ऐसा लगता है कि बच्चों ने पत्थरों को एक दूसरे पर जमा कर बना दिया है । वैसे गवालियर तो मेरी ससुराल भी है आप अभी मेरी सुसुराल में है जानकर आनंद हुआ
शास्त्रीजी आप जिस ककनमठ की बात कर रहे हैं वह मेरे गृहजिले मुरैना में ही आता है। मैं मुरैना में रहता हूं।
मेरा फोन नं 9229574533 है। यदि आप ग्वालियर में हैं तो फिर हम बस 1 घंटे की दूरी पर ही हैं। आप ग्वालियर में कब और कहां मिलेंगे सूचित कीजिएगा………
सारथी का रथ
रूके न कभी
झुके न कभी
बढ़ता रहे
चलता रहे
मन में
मानस के आंगन में
अविरल बहता रहे
सब को भिगोता रहे.
आपका धन्यवाद मेरा लेख पसंद करने के लिए और मुझे यहाँ लाने के लिए | मेरा अपना वेबसाइट है जहाँ मैं अपनी सभी खट्टी मीठी बातें लिखती हूँ | वहां आपको और भी बहुत सारी विविध जानकारी मिलेगी |
मैंने इस जगह को नोट कर लिया है, जब भी उस तरफ़ गई तो ज़रूर देखूंगी |
http://cuckooscosmos.com/Travel मेरा वेबसाइट है
hello i am vikas dubey. i live at near kakanmath.