पिछले कुछ दिनों से चिट्ठाजगत के सामूहिक चिट्ठों में जो घमासान हो रहा है उसके बारे में कई चिट्ठाकारों ने मुझे लिखा. उन में से अधिकतर का कहना है कि इस लट्ठमलट्ठ से उनका दिल खट्टा हो रहा है एवं चिट्ठाकारी से ही मन उठ रहा है. अन्य कई लोग अपने आपने चिट्ठों पर इस विषय पर बहुत अधिक चिंता जाहिर करते हुए लिख रहे हैं.
मेरी नजर में इस तरह की प्रतिक्रियायें चिट्ठाकारों के अपरिपक्व सोच को दर्शाती है. निम्न बातों को जरा सोचें:
1. हम में से हर व्यक्ति तमाम तरह के झगडे एवं वादविवाद देखता है. यह समाज के हर स्तर पर होता है. अत: यदि आप चाहें कि सिर्फ चिट्ठाजगत में ऐसा न हो तो आप यथार्थ से पलायन करने की कोशिश कर रहे हैं.
2. सामान्य जीवन में हर व्यक्ति बहुत परिष्कृत तरीके से, सलीके से, व्यवहार करता है. यह उसका मुखौटा होता है. लेकिन उसका असली चेहरा तब स्पष्ट होता है जब वह क्रोध में भर जाता है और नकाब को नोच फेंकता है. अत: ऐसे लट्ठमलट्ठे हमारे साथियों के चेहरों को बेनकाब करने के काम आयेंगे.
3. भविष्य में आप अपने पठन के लिये उन चिट्ठाकारों को चुन सकते हैं जिनका चेहरा नकाब पीछे एवं बिन नकाब एक जैसा दिखता है, जो अंदरबाहर एकसमान परिष्कृत हैं.
4. यदि आपको इस लट्ठमलट्ठे को पढ कर तकलीफ होती है तो यह आपकी गलती है, क्योंकि आप अपनी इच्छा से उन चिट्ठों पर गये जहां घमासान हो रहा है. क्या जरूरत है वहां जाने की जहां आपकी पसंद का खाना नहीं परोसा जा रहा. यदि गलती से चले गये तो क्या जरूरत है पुन: जाने की?
5. यदि आपको लगता है कि बैन करने से समस्या हल हो जायगी तो आप न तो बैन का इतिहास जानते हैं न ही आप अभिव्यक्ति की आजादी के बारे में जानते हैं.
बोलने दीजिये, जिसको जो बोलना है और लिखना है. यदि आपको नापसंद है तो आप उस ओर न जायें.आप अपना चिट्ठालेखन तन्मयता के साथ करते रहें.
पुनश्च: लेख पोस्ट करने के बाद निम्न लेख मेरी नजर में आया जो मेरे कथन की पुष्टि करता है कि हरेक को लिखने दें, टोकाटाकी न करें, लेकिन आप अपना चुनाव खुद करें.
हाँ कुछ चल तो रहा है ,मगर मैं न तो इसका उद्गम जानता हूँ न तो उत्स को लेकर जिज्ञासु हूँ -कुछ चलने का आभास भी इसलिए हुआ की हिन्दी चिट्ठा जगत का एक बड़ा हिस्सा इससे सहसा ही आक्रांत हो चला है -जिस किसी एग्रीगेटर को देखिये ये शब्द जरूर मिल जायेंगे -मनीषा पाण्डेय ,मनीषा पाण्डेय हिजडा ,भडास ,मुहल्ला ,अविनाश, चोखेर बाली हम तो बस तटस्थ मूक दर्शक बन कर रह गए हैं .पहले तो लगा शायद कोई रास्ट्रीय महत्त्व का मसला बवंडर बना है ,मगर जल्दी ही लग गया कि नही यह तो अहम् की लड़ाई है जो तूफान बन चुकी है .
ऐसे विवाद डिजिटल दुनिया पर अभिव्यक्ति की आचार संहिता की मांग करते है -लक्ष्मण रेखा की जरूरत को रेखांकित करते है -इस ओर कथित मठाधीशों और उनके विरोधिओं दोनों की पहल होनी चाहिए .किमाधिकम ???
भला किया जो आपने ये लिखा…ऐसे समय में विवेकपूर्ण शब्द सुनना अच्छा लगता है। यहॉं ये भी सही कहा कि इन प्रकरणों का छि छि छि कहकर इनसे दूर भागने की प्रवृत्ति ठीक नहीं है। मेरी नजर में तो ये निंदनीय है, दायित्व से पलायन भी है।
लोगों के असली चेहरे सामने आएं…साधुवादी समय में तो अहो शुभम अहो सुंदरम कहने में किसी का कुछ नहीं लगता आपके चरित्र की असली पहचान संकटों के ही समय में आपकी प्रतिक्रिया से ही होती है
शास्त्रीजी,
आपकी बात , और मुख्यरूप से प्रथम बिन्दु, बहुत सम्यक लगी।
shashtri jee,
ghamasaan tak to theek hai , magar ye to pataa chale ki ye 20-20 , ya one day ya ki test match ye series to khatm hone kaa naam hee nahin le rahee hai.
आपसे सहमत हूं..
सहमत!
आप के विचारों से पूर्णत: सहमत।
बिंदु नम्बर दो और चार सबसे महत्वपूर्ण है। समूची बात से सहमत हूं। मैने यह तय कर लिया है कि अब कुछ विशिष्ट ब्लाग्स और कुछ खास मुद्दों पर चल रही बहस पर अपनी राय देना बंद कर रहा हूं। यहां रचनात्मक राय की भी क़द्र नहीं है , उसके उलट आपके विरोध में चमचेनुमा लोग लपका दिये जाते हैं। गोया अपनी राय देकर आपने ग़लती की। फिर कुछ समझदार लोग आपको फोन करते हैं , कि लगे रहिये। सही मुद्दा पकड़ा है । बड़ी अजीब दुनिया है ये। इसीलिए बिंदु नंबर दो ज्यादा महत्वपूर्ण है। इस बार की बदमज़गी से कई सबक सीखे हैं मैने ।
सारे विवादों में एक बात कॉमन है कि किसी मुद्दे पर बहस शुरू तो होती है लेकिन फिर मुद्दे को छोड़कर व्यक्तियों पर केंद्रित हो जाती है. यही सबसे बड़ी विडंबना है. मुद्दों पर आधारित बहस हो तो किसे पसंद ना आए पर छीछालेदर करने के लिए हो तो इसका क्या फायदा. मूक दर्शक बने रहने में ही भलाई है.
आपके लेख से पूर्णता सहमत हूँ.यह अच्छा किया जो हर पहलू को इतने सुलझे तरीके से रख दिया.यह वैसे भी आपकी विशिष्टता है जो हर लेख में दिखती है…सुलझे विचार और परिपक्वता
आप की सभी बातों से सौ प्रतिशत सहमत हूँ। मैं ने भी अपनी टांग इस में जा फंसाई थी। मगर चिट्ठा माध्यम में कुछ ब्लॉग तो ऐसी हरकतें करते ही रहेंगे। बाद में सब से माफियाँ भी मांगेंगे लेकिन शर्मसार होकर नहीं। उन्हें यह चिन्ता भी सताती है कि लोग उन पर व्यक्तिगत टिप्पणियाँ क्यों कर रहे है।
मेरा मानना है कि इस तरह के घमासान के बीच कुछ सुधी चिट्ठाकारों को हस्तक्षेप अवश्य करना चाहिए। और ऐग्रीगेटरों को भी ऐसे चिट्ठों को एडल्ट कन्टेन्ट में तभी दिखाना चाहिए जब कोई एडल्ट कंटेन्ट को देखना ही चाहे।