परसों के लेख में मैं ने ग्वालियर किले के सहस्त्रबाहू मंदिर की एक मूर्ति का चित्र दिया था. इसे देख कर डा अरविंद मिश्रा ने एक दिलचस्प प्रश्न उठाया: "भित्ति शिल्प चित्र मे कौन है -क्या शिव और पार्वती" ? बाद में उनको लगा कि ये दोनो हीं नहीं है, लेकिन कई पत्रों के आदान प्रदान के बावजूद हम दोनों किसी ठोस निष्कर्ष पर न पहुंच सके.
समस्या यह है कि ग्वालियर किले से संबंधित बहुत कम शिलालेख या प्राचीन लेख बचे हैं. जो बचे हैं उन में काम की जानकारी बहुत कम है. अत: इन बातों को कई व्यक्तियों के सहयोग से ही पहचाना जा सकता है.
मैं ने कई बार ऐसे देवता की मुर्तियां देखी हैं जिसमें उनकी दाडी दिखाई गई है. यह परंपरागत मूर्तियों से भिन्न शैली है एवं कोई भी व्यक्ति इसका कारण एवं इस मूर्ति की सही पहचान नहीं बता पाया है. पाठकगण यदि किसी प्रकार की जानकारी दे सकें तो हम दोनों खोजियों को दिशा मिल जायगी.
यहां एक बात और याद दिलाना चाहता हूँ कि भारत के प्राचीन शिल्पों के बारे में काफी अधिक अनुसंधान/लेखन जरूरी है. जो लोग अपनी विरासत को भुला देते हैं उनको गुलामी में जाते देर नहीं लगती.
टिप्पणीकारों में से दिनेश जी ने निम्न दिशा दी है: यह मूर्ति शिव-पार्वती की ही है। यहाँ कोटा में दाढ़ी वाली शिव मूर्तियाँ अनेक हैं। पुरुष विग्रह के दाएँ एक हथियार प्रदर्शित है यह ब्रह्मा का नहीं है और विष्णु का भी नहीं। शिव को पार्वती के रुप में सती ने दुबारा प्राप्त किया था इस बीच एक लम्बी अवधि गुजर चुकी थी शिव वैरागी हो कर तपस्या में चले गए थे। उन की तपस्या को भंग करने के लिए कामदेव को भी भस्म होना पड़ा था। इस आयु के अंतर और तपसी रुप के साथ अल्प वय सुंदरी पार्वती को दिखाने के लिए शिव के दाढ़ी और उन के साथ पार्वती को सुकन्या के रुप में प्रदर्शित किया जाता है। पक्का अनुमान आस पास की प्रतिमाओं को देख कर लगाया जा सकता है। दिनेशराय द्विवेदी
मेरे ख्याल से ग्वालियर के पुरातत्व अधिकारी इस संबंध में ठीक से बता सकेंगे.
दाढ़ी क्या ब्रह्मा की नहीं होती ?
घुघूती बासूती
सिर खुजाने को अच्छी सामग्री दे दी है आपने!
मुझे तो विष्णु-लक्ष्मी जी लगते हैं!
shashtri jee,
mujhe to lagtaa hai ki ye shiv parvati ka chitra ho saktaa hai , halanki iskaa koi kaaran to nahin hai mere paas magar mujhe aisa lagtaa hai.
प्रथम दृष्टी में शिव पार्वती लगते है. हालाकी हाथ में कलश देख लगता है, लक्ष्मी है. मगर विष्णू की ऐसी वेश-भूषा नहीं होती.
ब्रह्मा सरस्वती का भी विकल्प खुला रखें !
ध्यान से देखें शायद दायें बाएँ दो और सिरों का आभास हो रहा है -चौथा पीछे होना लाजिमी हैं .
सॉरी, आपने मेरे लिये इतनी बड़ी पोस्ट लिखी, और मैं दीगर व्यस्तताओं के कारण आपकी मदद नहीं कर पा रहा हूँ. वैसे भी मुझे मालूम नहीं तो मेरे जबाब के इन्तजार में मत रहियेगा. 🙂
वैसे एक तो ब्र्ह्मा विष्णु महेश की है ही…
स्पष्टत: इस विषय में कुछ कह पाना तो मुश्किल है पर क्या प्राचीन मन्दिरों में सभी मूर्तियाँ (विशेषत: बाह्य दीवारों व स्तम्भों पर) देवी-देवताओं की ही होतीं थीं.
– अजय यादव
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यह मूर्ति शिव-पार्वती की ही है। यहाँ कोटा में दाढ़ी वाली शिव मूर्तियाँ अनेक हैं। पुरुष विग्रह के दाएँ एक हथियार प्रदर्शित है यह ब्रह्मा का नहीं है और विष्णु का भी नहीं। शिव को पार्वती के रुप में सती ने दुबारा प्राप्त किया था इस बीच एक लम्बी अवधि गुजर चुकी थी शिव वैरागी हो कर तपस्या में चले गए थे। उन की तपस्या को भंग करने के लिए कामदेव को भी भस्म होना पड़ा था। इस आयु के अंतर और तपसी रुप के साथ अल्प वय सुंदरी पार्वती को दिखाने के लिए शिव के दाढ़ी और उन के साथ पार्वती को सुकन्या के रुप में प्रदर्शित किया जाता है। पक्का अनुमान आस पास की प्रतिमाओं को देख कर लगाया जा सकता है।
कहीं यम् -यमी तो नहीं -पुरुषाकृति के बायीं और यमदंड तो नही है ?
शास्त्री जी, यदि ध्यान से देखें तो पुरुषाकृति के दांये पैर में एक
सांप जैसी आकृति लिपटी हुई लगती है। संभवत: ये मूर्ति
शिव पार्वती की ही है।
ye shankar bhagwan ka hi hai