आज ग्वालियर से कुछ दूर एक किले का चित्र लेने गया तो उस गांव के एक पढे लिखे युवा से मुलाकात हुई जिसने किले के बारे में कुछ जानकारियां दीं. बातबात में मैं ने उसकी गर्दन के ऊपरी सिरे पर कुछ निशान देखे जो दो चित्रों द्वारा यहां आपकी जानकारी के लिये दिये जा रहे हैं.
पूछने पर उन्हों ने बताया कि बाल्यकाल में उनको टान्सिलाईटिस की तकलीफ रहती थी, अत: गांव के किसी नीम ह्कीम या ओझे के कहने पर उनकी मां ने तपते लोहे के सांचे से उनके दुखते स्थान पर छ: “निशान” लगा दिये. माचिस की जलती काडी से उंगली जल जाये तो क्या हालत होती है यह हम सब जानते हैं, अत: तपते लोहे से छ: बार जला दिये जाने के बाद उस बालक की क्या हालत हुई होगी यह हम सब सोच सकते हैं.
एक बात पक्का है — अगले एक महीने तक जले निशानों के दर्द, पीप, रोज की सफाई-दवाई में टान्सिलाईटिस के दर्द को बालक जरूर भूल गया होगा!! नीम हकीम का कहना सच था कि टान्सिलाईटिस के दर्द का “इलाज” हो जायगा. एक इलाज जो मर्ज से सौ गुना अधिक भयानक था!!
[चित्र कापीराईट शास्त्री जे सी फिलिप एवं उपाचार्य जिजो. आप जनशिक्षा या जनचेतना जाग्रत करने के लिये सारथी के नाम सहित चित्र का उपयोग कर सकत हैं]
चित्रों के माध्यम से आप ने सारी कहानी सहज ही कह दी। यह केवल अज्ञानता का मामला ही नहीं है। इस के पीछे परिवार की आर्थिक स्थिति और चिकित्सा सुविधाओं के ग्रामीण क्षेत्रों तक नहीं पहुँच पाना भी है। ग्वालियर का इलाका तो बहुत पिछड़ा रहा ही है। आज भी मध्य प्रदेश का पिछड़ापन अन्य प्रदेशों से अधिक ही है और राज्य सरकार को इस की फिक्र भी नहीं है।
द्विवेदी जी की बात से मैं भी इत्तेफ़ाक रखता हूँ. कुछ समय पहले तक हमारे गाँवों में (और कहीं कहीं शायद अब भी) इस तरह के भयानक इलाज़ प्रचलन में थे. वैसे कोई इलाज़ न करा कर जादू-टोने और ओझाओं के चक्कर में पड़ने से तो शायद ये भी बेहतर ही था.
– अजय यादव
http://merekavimitra.blogspot.com/
http://ajayyadavace.blogspot.com/
http://intermittent-thoughts.blogspot.com/
वाकई बहुत भयानक है.
भीषण!!
शिक्षा का आभाव ,उफ्फ यह तकलीफ …दुखद।
shashtri jee,
saadar abhivaadan . graameen kshetron mein abhee bhee aise ilaaz hote hain jo akapneeya aru sach kahoon to amaanveey hote hain.
ग्रामीण परिवेश में अन्धविश्वास का बोल-बाला है। ये तरीका राजस्थान के कई गांवों में अब भी प्रचलन में है।इस प्रक्रिया को यहां “दाजना” कहते हैं । अलग-अलग बीमारियों में शरीर के अलग-अलग भागों को तपते लोहे से जलाया जाता है।
अंधविश्वास की हद है।
यह आलेख दूसरी बार ब्लॉगवाणी पर आ गया है..कृप्या तरकीब का जनहित में खुलासा करें. 🙂