आजकल ग्वालियर (मप्र) के चप्पे चप्पे घूम कर पुरातत्विक महत्व के भवनों का छायाचित्र उतार रहा हूं. इस दौरान डबरा इलाके में कई बार जाना हुआ.
डबरा गन्ना-खेती एवं शक्करनिर्माण का एक बहुत बडा केंद्र है. आजकल ईख कटाई चालू हो गई है अत: सुबह से शाम तक गन्ने से भरी कई बैलगाडियां एवं ट्रेक्टर इस इलाके में आतेजाते दिखेंगे. मैं कई बार अपनी गाडी से उतर कर कच्ची सडकों पर फंसी बैलगाडियों में धक्का लगा चुका हूँ, लेकिन इस दौरान किसानों से जो जानकारी मिली है उससे मुझे धक्का अधिक लगा है.
महीनों की कडी मेहनत, पानी की भारी कमी, मौसम की अनिश्चितता, खेती के लिये साहूकार से लिया गया कर्जा आदि से दबा मजदूर जब गन्ना बेचने जाता है तो उसे न तो मुनासिब कीमत मिलती है, न ही समय पर पैसा मिलने की आस होती है.
फलस्वरूप इस इलाके में आज भी कई “बंधुआ” किसान मौजूद हैं जो अपना सब कुछ खोने के बाद अपनी आजादी भी साहूकार को गिरवी रख चुके हैं. ऐसे मजदूर जब तक अपना कर्जा कौडी कौडी चुका न दें तब तक सिर्फ अपने साहूकार के लिये काम कर सकता है जो सामान्य से सिर्फ आधी मजदूरी देता है. बाकी आधे का कोई हिसाब नहीं होता है. इस तरह उस मजदूर का दुगना शोषण होता है. मेरे एक मित्र ने एक बंधुए मजदूर को छुडाने में मदद की जिसने सालों पहले 10,000 रुपये का कर्ज लिया था. इतने साल पैसा चुकाने एवं बंधुआ के रूप में आधी मजदूरी पर काम करने के बाद उसका कर्जा “सिर्फ” 27,000 रुपया बचा था.
यह कैसी विडंबना है कि जो हमको भोजन देते हैं उनके जीवन में जो वे बोते हैं उसे भोगते गैर लोग हैं.
एक तरफ हम ईश्वर को अन्नदाता कहकर उसकी पूजा करते हैं दूसरी तरफ असली अन्नदाता का शोषण करते हैं. धन्य है हमारी संस्कृति
इस असली समस्या से अब कहां किसी को लेना-देना है। मनमोहन-चिदंबरम तो, 60,000 करोड़ रुपए का कर्ज माफकर बैंकों की बैलेंसशीट सुधार रहे हैं।
जगत असंवेदनशील हो उठा है.
shashtri jee,
aapne sach kaha ye is desh kaa sabse bada durbhagya hai ki kisanon ke desh mein aaj hamare anndaataa hee bhookhe hain.
इस से पता लगता है कि हमारी ग्रामीण अर्थव्यवस्था की स्थिति क्या है? नगरों में तथा औद्योगिक क्षेत्रों में भी इस प्रकार के लोग मिल जाएंगे। किसी संस्था को इस बात का सर्वेक्षण करना चाहिए कि कितने प्रतिशत लोग ऐसे हैं जो उन की संपत्ति से अधिक कर्ज में डूबे हुए हैं। संपत्ति में रहने लायक घर को सम्मिलित न किया जाए।
ये तो सरासर शोषण है।
शास्त्री जी ,
डबरा-दतिया वैसे भी पानी के घोर संकट से जूझ रहे हैं , शायद मैने सुना है कि इन जगहों का भूजल स्तर भारत में सबसे नीचे है..
क्या ये सच है? अगर है तो क्या आप इस सच्चाई को पोस्ट के माध्यम से प्रकाशित करेंगें?
आपका
कमलेश मदान
शास्त्री जी झंझोड़ कर रख दिया आपने, यह वास्तविकता कितनी खतरनाक है, इसका अनुमान भी लगना मुश्किल है…… आपकी लेखनी आजकल नए अंदाज़ लिए हुए है…..
क्या आपको cd मिली ? कृपया बताएं