बहुत से लोग हैं जो किताबें लिख सकते हैं, एवं जो लिखना भी चाहते है. लेकिन वे एक बात पर आकर अटक जाते हैं. सवाल यह है कि उनकी किताब कौन छापेगा. हिन्दीजगत में तो यह समस्या बहुत विकराल है क्योंकि लेखकों के अनुपात में प्रकाशक नहीं हैं, एवं जिनकी किताबें छप जाती हैं उन के पीछे कुछ न कुछ जुगाड रहता है जो आम लेखक से हो नहीं पाता है और उसकी किताब कभी छप नहीं पाती है.
असल समस्या यह है कि आम लेखक अपनी किताब छपने, उसके हाथों हाथ बिकने, एवं लाखों रुपये कमाने के दिवास्वप्न देखता रहता है. यह वास्तविकता से परे है एवं यह सपना उनको लेखक बनने से आजीवन वंचित रखता है. लाखों कमाने के लिये हिन्दी में अभी उपयुक्त बाजार नहीं है. हजार प्रतियों की एक अच्छी पुस्तक पांच से दस साल में बिकती है, एवं वहां लाखों के सपने देखना पराजय की गारंटी है.
आपको मालूम होना चाहिये कि अंग्रेजी बाजार में, जहां दस हजार से एक लाख प्रतियां बिकती हैं, दस में से सिर्फ एक पुस्तक पर प्रकाशक को सही आर्थिक फायदा होता है. उन में से भी सैकडो फायदेमंद किताबों में से सिर्फ एक किताब “बेस्टसेलर” हो पाती है.
अत: यदि आप आर्थिक लाभ की बात को भूलने को तय्यार हों तो ही पुस्तकलेखन कर सकेंगे. बल्कि यदि अर्थ आपका लक्ष्य नहीं है तो आजकल की नई तकनीकों द्वारा आप आसमान छू सकते हैं. मैं ने जब से अर्थलाभ को त्याग दिया है तब से इंटरनेट द्वारा मेरी पुस्तकों को लाखों प्रतियां हर साल वितरित होने लगी हैं. अगले लेखों में इन बातों का खुलासा करूंगा.
आपकी अगली कड़ी का इंतिज़ार रहेगा… आशा है कि आप सुझवा और प्रकाशकों की सूची एवं उनके पते भी सम्मिलित करेंगे… वह पुस्तक छापें या न छापें परन्तु contact address व phone तो सभी को पता होना चाहिए…
shashtri jee,
jaankaaree ke liye dhanyavaad.waise yahan dilli se ek pustak vishwa patrakarita kosh mein bhee is vishay mein kaafee jaankaaree dee gayee hai.
अगली कड़ी का तो इन्तजार रहेगा ही। लेकिन यह जानकारी कहाँ मिलेगी कि आप की पुस्तकें कौन सी है और कहाँ से उपलब्ध हो सकती हैं।
ह्म्म, इंतजार है अगली किश्त का
बहुत अच्छा किया आपने आर्थिक पक्ष पर निरर्थक मोह भंग कर। लेखन स्वांत: सुखाय ही हो तो ठीक।
किताब लिखने और छपवाने पर आपकी पोस्ट जानकारी ही नहीं रास्ता भी दिखाती है. सच कहा आपने कि आर्थिक पक्ष भूल कर ही इस दिशा की ओर बढ़ा जा सकता है.
बहुत खूब! हमें आगे भी इंतजार रहेगा.