जैसा मैं ने अपने पिछले लेख में कहा था, मेरे पेशाई सफलता से त्रस्त एक आदमी पिछले दो महीनों से मुझे परेशान किये जा रहा था. चाहे शारीरिक हो या मानसिक, दर्द कभी भी एक सामान्य व्यक्ति को आनंद नहीं देता है. इसके बावजूद जीवन में कभी कभी ऐसा होना अच्छा है क्योंकि:
दु:ख में सुमिरन सब करे,
सुख में करे न कोई.
सुख में सुमिरन सब करे तो,
दु:ख काहे को होय!!
इस अनुभव के कारण कई बातें सीखने को मिलीं. इन में से दो एतिहासिक बातें हैं. पहली बात एक किताब से मिली जो आज ही संयोग से मेरे हाथ पड गई. इसमें पिछले 200 सालों में स्त्रियों का जो शोषण हुआ है उसका अच्छा खासा चित्र खीचा गया है. इसमें सबसे ताज्जुब की बात यह लगी कि स्त्रीशोषण की जिम्मेदारी के लिये पुरुष का नाम सबसे अधिक लिया जाता है, लेकिन स्त्री का हिस्सा किसी तरह से कम नहीं है.
मेरे विश्वविद्यालय के एक साथी हमेशा मुझे याद दिलाया करते थे कि सास भी कभी बहू थी. लेकिन जब अधिकार उसके हाथ में आ जाता है तो पीडित की मदद करने के बदले एवं पीडा के मूल कारणों को दूर करने के बदले वह अगली पीढी को पीडित करने लगती है.
आजकल जाल पर स्त्रीविरोध एवं स्त्रीशोषण पर काफी कुछ लिखा जा रहा है. उसमें अधिकतर लेखक हमेंशा पुरुषों को दोषी मानते हैं. लेकिन इतिहास पर एक नजर डालें तो पता चलेगा कि स्त्रीपीडन के लिये स्त्रियां उतनी ही जिम्मेदार हैं जितना पुरुष. यदि कोई फरक है तो वह सिर्फ उन्नीसबीस का है.
स्त्रीपीडन के लिये स्त्रियां उतनी ही जिम्मेदार हैं जितना पुरुष. यदि कोई फरक है तो वह सिर्फ उन्नीसबीस का है.
100 % right
so the whole system is baised toward woman
and we need to change the system
now if the system is baised towards woman then it means it favours man
so lets make a system which favours both man and woman equally
@Rachna
Good suggestion. So where shall we make the beginning. Some proposals?
आप ने सही कहा काफ़ी हद्द तक स्त्रियों की त्रासदी का कारण खुद महिलाएं ही बनती हैं। हांलाकि पुरुष को भी इस दोष से मुक्त नहीं किया जा सकता।
chaliye ab aap aa hi gaye hain to ummid hai ki lagatar aako padhne ko milega..
शास्त्री जी
गोस्वामी जी ने कहा है ‘प्रभुता पाई काहि मद नाहीं’. असल में मामला कुल मिला कर इतना ही है. चाहे स्त्री हो या पुरूष, जब वह कमजोर होता/होती है तो उस हिसाब से सोचता/सोचती है और जैसे ही मजबूत होता/होती है उस हिसाब से सोचने लग जाता/जाती है. दलितों, मजदूरों, किसानों का मुद्दा भी कमोबेश ऐसा ही है. देखिए न, चुनाव नजदीक आते ही सरकार और विपक्ष को महंगाई और बेकारी दिखने लगती है. सत्ता में आते ही हर तरफ़ फील गुड होने लगता है. दुनिया के सारे धर्मग्रंथों में बार-बार मनुष्य को इसी प्रवृत्ति से बचने के लिए कहा गया है, पर किसने माना? काश! लोग यह मान पते तो वास्तव में पूरी दुनिया में राम राज्य हो जाता.
काफी कुछ तो इष्टदेव ने कह ही दिया है पर स्त्री शोषण में स्त्री शामिल हैं ये कहना सरलीकरण है सच्चाई ये है कि स्त्री शोषण में पित्सत्तात्मक सोच शामिल होती है तथा लंबे समाजीकरण के चलते ये सोच स्त्री पुरुष में घर कर जाती है, पर ये है पितृसत्तात्मक ही तथा चूंकि पितृसत्ता का अंतिम ध्येय लिंग आधारित भेद के स्त्री विरोधी रूप को बनाए रखना है इसीलिए ये गलतफहमी आम हो जाती है कि स्त्रीवाद, पुरुषों भर को जिम्मेवार मानता है।
make rules of society which are equal for both man and woman . why is a man not punished when he rapes a woman and a woman has to bear the stigma of rape life long ,
why does a judge ask the rape victim to marry the rapist
why cant woman travel alone at night where as man can
why should womans mind speak be treated as rebel
why should there be sexual haarasment in society
why should every thing that a woman writes or does is thought to be a challenge or critsim of man ??
does this mean that “man” thinks he the authority and any thing that someone says is challange to that authrority
who has given man this authoriy ?? and why ?? what does a man do that a woman does not so when a woman writes why should the man feel they are writing against man .
atrocracys can happen against any one why does man then feel that any comment coming from a woman is coming from a enemy they need to crsuh and establish the authority
woman are not seeking feminism neither we are shouting that feminism has arrived , it has been there since the begining of universe with the birth of feminine gender we are all only wanting equal rights in terms of not legality but the mind set of “so called man ”
if you can help in creating that awareness in the man , since you are a man yourself you can wrtie it better , then the society will improve sir , it surely will , make a beginging write things on the humatarian level and not on gender level
बात इतनी थी की स्त्री के शोषण में स्त्री का ही हाथ होता है -अब बलात्कारी को क्यों दण्डित नही किया जाता है और महिला जिंदगी भर उस कलंक को साथ लिए फिरती है महिला कुछ लिखती है तो आलोचना की जाती है यह तो बात ही प्रथक हो गई = जहाँ तक में समझता हूँ किसी जज ने किसी महिला से नही कहा होगा की वह उसी अपराधी से शादी करले जिसने कुकृत्य किया है =पुरूष समाज ने स्त्री को अव्ला -दीन हीन -दयनीय -शोषित -कुपोषित -डरपोक रखा की चूहे से भी डर जाए -तलवार लेकर घोडे पर बैठी पुरानी रानियों की तरफ -मजाल थी कोई आँख उठा कर देख जाए =पुतली -फूलन =में अतीत दी बात नहीं कर रहा तब वो अबला थीं बाद में बंदूक लेकर बीहड में उतरी तब की बात करता हूँ थी किसी शहरी लडके में हिम्मत की निगाह भर देख सके =किसी महिला थानेदार या मिलिट्री अधिकारी के सामने बलात्कारी के हाथ पांव क्यों ढीले पड़ जाते हैं =दो सौ साल पुरानी बात ही नहीं दो दिन पुरानी बात ही की घटना के तह में जाओ तो सताई गई स्त्री के पीछे किसी स्त्री का ही हाथ मिलेगा -अच्छा बताइये बेटे की शादी में ज़्यादा दहेज़ की कामना किसकी होती है -गरीब घर की बेटी आजाये तो उलाहने सास ननद ही देती है ऐसे घर की कुलच्छनी आई है साथ तो कुछ लाई नही कौन कहता है जागरूक किसको करोगे सास को -बहू को -ननद को =जेठानी को
महिलाओं पर दमन के लिए महिलाएं कितनी जिम्मेदार हैं? यह एक महत्वपूर्ण प्रश्न है। माताएं ही अपनी बेटियों को दब्बू बनाने के लिए शिक्षा देती हैं। सारी पाबन्दियाँ उन के रहते ही बेटियों पर आयद होती हैं। यहाँ यह कहा जा सकता है कि उन पर शायद सामाजिक दबाव होता है, ऐसा करने के लिए। लेकिन आज के समाज में दहेज प्रताड़ना के जितने मामले सामने आते हैं उनमें परिवार की महिलाओं का हाथ ही क्यों प्रमुख होता है? क्यों सास और ननदें ही बहू के लिए यातना प्रमुख का काम करती हैं? अनेक प्रश्न हैं।
मानव समाज में मात्र सत्तात्मक अवस्था भी रही है। पितृसत्तात्मक अवस्था में हम जी रहे हैं। दोनों ही अवस्थाएं समाज के विकास की आवश्यक कड़ियाँ थी। आज स्थिति भिन्न है। हमारे देश में समाज विकास के अनेक स्तर एक साथ चल रहे हैं। इस कारण से अनेक विविधताएं देखने को मिलती हैं। एक समय तर्क पूर्ण तरीके यह भी सिद्ध किया जा चुका है कि स्त्री केवल तभी स्वतंत्र होती है जब वह तन बेचने निकलती है, लेकिन यह केवल सामन्ती समाज तक ही सत्य था। सामन्ती समाज का सत्य आज भी यही है। हमारे देश में समाज व्यवस्था एक संक्रमण के दौर में है। जैसे ही समाज विकास के अगले स्तर पर पहुँचेगा स्त्री-पुरुष समानता भी पूर्णतः स्थापित हो कर रहेगी। रचना जी का तेवर उस की पूर्व सूचना है। जैसे जैसे स्त्रियाँ आत्मनिर्भरता प्राप्त करती जाएंगी समानता भी बढ़ेगी। मूल बात है स्त्रियों का आत्मनिर्भर होना।
शास्त्री जी की यही खूबी है। वे केवल सूत्र वाक्य कहते हैं। फिर सूत्र वाक्य अपना रास्ता खुद तलाश कर लेते हैं। उन की कमी वाला दिन खलता है।
@brijmohan
जहाँ तक में समझता हूँ किसी जज ने किसी महिला से नही कहा होगा की वह उसी अपराधी से शादी करले जिसने कुकृत्य किया है
apni ignorance please door karlayae
aur is link ko daekhae
http://indianwomanhasarrived.blogspot.com/2008/04/blog-post_08.html
फूलन =में अतीत दी बात नहीं कर रहा तब वो अबला थीं बाद में बंदूक लेकर बीहड
jo mahilaa phulan nahin bannaa chatee woh kya karey , aur phoolan kyon phoolan bani , kyo ek naabalik ladkii kii shadi uskae pitaa sae bhi badey vyktii sae hui ,
bikul kisi istri nae hee karaayee hogee ab shadi mae stri kaa kitna haath haen aur us samja ka kitna jo ek ladki ko swantnatr ho kar apni jindgii nahin jeenae daene chahtaa
स्त्रियों का आत्मनिर्भर होना। iskae allawa jaruri haen kii har samvaad ko behas naa mana jaaye , mat lae purush samuday use ek chunauti kee tarah ek andolan ki tarah crsuh karney kae liyae
femnisim koi fasion nahin haen kii aaj kal mae badal jaayega
दिनेशराय द्विवेदी
“लेकिन आज के समाज में दहेज प्रताड़ना के जितने मामले सामने आते हैं उनमें परिवार की महिलाओं का हाथ ही क्यों प्रमुख होता है? क्यों सास और ननदें ही बहू के लिए यातना प्रमुख का काम करती हैं? ”
yae bhi samaj kii hee daen haen , saas bahu laayee kaun sii saas aur kaun saa year ?? koi farak nahin . bahu ghar mae aayee , saas kae pati nae saas ko samjhaya ” ab bahu per sakhtee rakhna . dusrae ghar kii ladkii haen , mae bolugaa to alag tarah kae doshaa ropan hogey ” saas kae liyae uskaa pati permaeshwar haen , bachpan sae yahii to sunaa haen so lagii bahu ko sambhalney . bahu apne ghar mae apni maa ko sadaa sae dabtey daekhtee aayee so usney socha mae dab kar rahee to mae bhi apni maa jaise ban jaaugee
result saaas bahu mae ladaaii aur sasur aur baetey kii pau baarah
jindgi kae kadve sach ko aap jis tarah chahey daekhae . sabkey tarak apney haen per saath dena hoga sahii kaa . badlna hoga galat soch ko
आपके १८ अप्रिल के आदेश के पालन में वह रिपोर्ट पढी वार्ड बॉय वाली -शर्मिन्दा हूँ की उसकी जानकारी नही थी यदि ऐसा हुआ है तो दुर्भाग्य पूर्ण है -तुलसी या संसार में भांति भांति के लोग-जज साहेब ने विधान के विपरीत आदेश दिया तो इसका मतलब वह सार्वजनिक रूप से समाज पर या देश पर लागू हो गया यह तो नहीं माना जावेगा यदि किसी महिला या पुरूष द्वारा विपरीत आचरण किया जाता है तो ये तो नही कहा जायेगा की उक्त समाज में तो महिला या पुरूष ऐसा आचरण करते हैं
दूसरा निवेदन करूं मैंने तो एक उदाहरण दिया था महिला को हिम्मत वाली होना चाहिए {फूलन बनना चाहिए यह नहीं } आन्दोलन का आपने सुझाव दिया बिल्कुल आवश्यक है यह सही है की रोम वाज नोट बिल्ट इन ऐ डे= लेकिन इब्तिदा तो हो ही जाना चाहिए मेरा तो केवल यही निवेदन और विचार था की लडकियां निडर व स्ट्रोंग बने ऐसा क्यों है की रात को जरा सी आवाज़ होने पर महिला डर जाती है और साथ में आठ साल का बच्चा सो रहा हो तो उनको हिम्मत रहती
aapne sahi kaha hai..ki striyon ke shoshan ke liye wo khud bhi jimmedaar hai.agar hum khud aour apni aas paas ki mahilao ko is baare me jagruk karein to bahut achha hoga.